"ख्वाबो की बरसाते बुनती हुं"
रात के पहरों की सोगातें चुनती हुं
उलझे से ख्वाबो की बरसाते बुनती हुं
घुप अँधियारा , नींद उचटती ,
करवट करवट रूह तडपती,
दीवारों की गुप चुप आवाजे सुनती हुं
उलझे से ख्वाबो की बरसाते बुनती हुं
छत पर सरकते धुंधले साये
अनबुझ आक्रति का आभास दिलाये
भय के तीखे भालो की पद्चापे सुनती हुं
उलझे से ख्वाबो की बरसाते बुनती हुं
अनबुझ आक्रति का आभास दिलाये
भय के तीखे भालो की पद्चापे सुनती हुं
उलझे से ख्वाबो की बरसाते बुनती हुं