11/15/2010

"इश्क की इबादत "




"इश्क की इबादत "

बर्फीली पहाड़ियों से उठ कर
अधखुली आँखों से झांकती
भोर की निष्पक्ष किरणों से
कुनमुनाता है ठहरा सागर
नर्म घास की अंगड़ाइयों से
महकने लगती है फिजायें
धीमी गति से चुपचाप फिर
कहीं हवाएं लेती हैं करवटें
यूँ लगता है .....
कायनात की आगोश में सिमटा
पवित्र सौंदर्य का दिलकश मंजर
लिख रहा हो
धरती के अलसाये बदन पे
इश्क की एक नई इबादत