7/12/2017

वस्ल के परिंदे

Nazm
WASL KE PARINDEY
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Uski shiri'N baato'N ki
TehniyoN par
Wasl ke parindey chehkeNgey
Or.......
Bepanah ishq ke naghmey
Is fiza meiN guNjeNge
Hijr ki siyah ratoN meiN
Jugnu se raks karte ashq
Dhalak aayeNge labo'N ke
Tapte regzaroN tak
Zamzame mohabbat ke
Apni palko'N ko muNde
Aisi neeNd soyeNge
Jo khwaab se parey hogi
Jo khwaab se parey hogi
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उसकी शीरीं बातों की
टहनियों पर
वस्ल के परिंदे चहकेंगे
और .....
बेपनाह इश्क के नग़मे
इस फ़िज़ा मे गूंजेंगे...
हिज्र की सियाह रातों में
जुगनू से रक़्स करते अश्क
ढलक आएँगे लबों के
तपते रेगज़ारों तक...
ज़मज़मे मोहब्बत के
अपनी पलकों को मूंदे
ऐसी नींद सोएंगे
जो ख्वाब से परे होगी...
जो ख्वाब से परे होगी....
(seema gupta)