9/14/2009

"धरातल की थालियाँ"


"धरातल की थालियाँ"

नैनो के पलक द्वार पर
दस्तक देती रही सिसकियाँ
कांपते अधर बोल ना पाए
अंगारे बन धधकती रही हिचकियाँ

तेरे दर्श का मेघ आकर
प्रत्यक्ष में बरसा नहीं
शून्य के प्रचंड प्रहार से
बुझ गयी आशाओं की दिप्तियाँ

यथार्थ के धरातल की थालियाँ
शोर कर चोकन्नी हो गयी
मिलन ना तुमसे हो सका
बेडियों का सेतु बनी न कोई युक्तियाँ...

http://latestswargvibha.blog.co.in/2009/09/21/सीमा-गुप्ता-2/