"फर्ज निभाने को" तन्हाइयों ने फ़िर बीज तेरी यादो के रोपे मन के बंजर खलिहानों मे घावो की पनीरी अंकुरित हुई बीते लम्हों की फसल उगाने को तिल तिल जल के राख़ हुए अरमान उर्वरक बन बिखर गये दिल दरिया अश्रु बह निकले
विद्रोह कर आंसुओ ने, नैनो मे ढलने से इंकार किया ओर सिसकियाँ भी कंठ को अवरुद्ध करके सो गयी स्वर का भी मार्गदर्शन शब्दों ने किया नही भाव भंगिमाएं भी रूठ कर लुप्त कहीं हो गयी अनुभूतियों का स्पंदन भी तपस्या में विलीन हुआ वेदना के वृक्ष की ऊँचाइयों को स्पर्श दिल ने जब किया .......