"फर्ज निभाने को"
तन्हाइयों ने फ़िर
बीज तेरी यादो के रोपे
मन के बंजर खलिहानों मे
घावो की पनीरी अंकुरित हुई
बीते लम्हों की फसल उगाने को
तिल तिल जल के राख़ हुए
अरमान उर्वरक बन बिखर गये
दिल दरिया अश्रु बह निकले
सींच उन्हें अपना "फर्ज निभाने को "
1/28/2009
1/23/2009
"हाँ खैरात हूँ मै"
"हाँ खैरात हूँ मै"
रहमो करम खैरात हूँ मै
हाँ अपने दर से ठुकरा दो मुझे.
खरोंच के फैंक दो स्मृतियों को मेरी
हाँ जहन से अपने मिटा दो मुझे
मेरा अस्तित्व बोध भी सताये ना तुम्हे
हाँ बीती बात की तरह झुटला दो मुझे
मेरे साये से भी शिकवा तुमको
हाँ उड़ते धूल के गुबार में मिला दो मुझे
ख्वाबों मे भी आके सता जाऊँ न कभी
हाँ ऐसी कोई संगदिल सजा दो मुझे
हाँ ऐसी कोई संगदिल सजा दो मुझे
नज़र फेर के लेके शिकन इक चेहरे पे
हाँ गुजरी एक रात सा दगा दो मुझे
हाँ खैरात हूँ मै .....ठुकरा दो मुझे
1/19/2009
"मर्यादा कौन सी निभा रहे हो"
"मर्यादा कौन सी निभा रहे हो"
वेदना के वृक्ष को
अश्रुओं से सींच कर
सुख और स्वयं के मध्य
लक्ष्मण रेखा खिंच कर
मर्यादा कौन सी निभा रहे हो
मेरे लिए असंख्य वृक्ष
काँटों के लगा रहे हो
उग रहे है घने जंगल
दुःख के चंहू ओर मेरे
लुप्त हो रही प्रसन्न्ता ये
हृदय से क्षण क्षण मेरे
वृक्ष वेदना का उगा है
फल फूल भी आयेंगे
जख्मों के पुष्प खिलेंगे
ग़मों की बौर आयेगी क्या?
इस जंगल से सुरभि लेकर
हवा मेरी ओर आएगी क्या ?
1/15/2009
"प्रेम"
"प्रेम"
http://vangmaypatrika.blogspot.com/2009/01/blog-post_15.html
भावों से भी व्यक्त ना हो,
ना अक्षर में बांधा जाए
खामोशी की व्याकरण बांची
अर्थ नही कोई मिलपाये
अश्रु से भी प्रकट ना हो
ना अधरों से छलका जाए
मौन आवरण मे सिमटा
ये प्रेम प्रतिपल सकुचाये
http://vangmaypatrika.blogspot.com/2009/01/blog-post_15.html
1/12/2009
"विमुखता"
1/05/2009
"वेदना का वृक्ष"
1/02/2009
"कैसे तुम्हे भुलाऊ "
"कैसे तुम्हे भुलाऊ "
गर ऐसे याद करोगी मुझको,
कैसे मै जी पाउँगा ? ??
ये शब्द तुम्हारे ....
बाँध तोड़ संयम के सारे ,
बीते लम्हों के कालीन बिछाएं ,
बीते लम्हों के कालीन बिछाएं ,
मौन स्वरों के गलियारे मे ,
यादो के घाव पग धरते जायें,
सानिध्य का एहसास तुम्हारा
विचलित कर मन को भरमाये ,
संकल्प तुम्हारे नृत्य करे और ,
बोल गूंज कर प्रणय गीत सुनाये
"कैसे तुम्हे भुलाऊ "
http://hindivangmay1.blogspot.com/2009/01/blog-post_02.html
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