दुनिया वालों से डर न जाए कहीं
इश्क तेरा बिखर न जाए कहीं
डूबता जा रहा है जिसमें तू
वो नदी भी उतर न जाए कहीं
जिस तरफ से पलट के आई मैं
खौफ है तू उधर न जाए कहीं
राह तकती रहूंगी मैं लेकिन
फ़िक्र है तू मुकर न जाए कहीं
दर्द ही दर्द का मुहाफ़िज़ है
दर्द हद से गुज़र न जाए कहीं
सर झुका तो दिया है क़दमों में
बंदगी बे-असर न जाए कहीं
इश्क की बारगाह में "सीमा"
हुस्न खुद ही संवर न जाए कहीं