10/19/2011

दुनिया वालों से डर न जाए कहीं


दुनिया वालों से डर न जाए कहीं
इश्क तेरा बिखर न जाए कहीं

डूबता जा रहा है जिसमें तू
वो नदी भी उतर न जाए कहीं

जिस तरफ से पलट के आई मैं
खौफ है तू उधर न जाए कहीं

राह तकती रहूंगी मैं लेकिन
फ़िक्र है तू मुकर न जाए कहीं

दर्द ही दर्द का मुहाफ़िज़ है
दर्द हद से गुज़र न जाए कहीं

सर झुका तो दिया है क़दमों में
बंदगी बे-असर न जाए कहीं

इश्क की बारगाह में "सीमा"
हुस्न खुद ही संवर न जाए कहीं