"चांदनी पीती रही"
आँखे सुराही घूंट घूंट
चांदनी पीती रही
इश्क की बदनाम रूहें
अनकहे राज जीती रही
रात रूठी बैठी रही
नाजायज ख्वाब के पलने झुला
नींद उघडे तन लिए
पैरहन खुद ही सीती रही
हसरतों के थान को
दीमक लगी हो वक़्त की
बेचैनियों के वर्क में
उम्र ऐसी बीती रही
आँखे सुराही घूंट घूंट
चांदनी पीती रही