
"परिचय"
सन्नाटा श्रृंगार कर रहा,
पल-पल दिन और रैन का
सरिता भी निस्पंद हुई अब,
चिन्ह ना कोई बैन का
सन्नाटा श्रृंगार......
संध्या की हर साँस है घायल,
गुमसुम तारों की है झिलमिल,
कोपभवन जा छिपी चांदनी,
आँगन सूना नैन का
सन्नाटा श्रृंगार......
खुशियों का बाजार लुटा,
निष्प्राण हुआ मन का मुख्यालय,
रीती भावों की गागरिया................
'परिचय' क्या सुख-चैन का ?
सन्नाटा श्रृंगार कर रहा,
पल-पल दिन और रैन का
(बैन = वार्ता, बातचीत
रीती = खाली)