शब्द कोई गीत बनकर
अधरों पे मचलता नही
सुर सरगम का साज कोई
जाने क्यूँ बजता नहीं.....
बाँध विचलित सब्र के
हिचकियों मे लुप्त हो गये ,
सिसकियों की दस्तक से भी,
द्वार पलकों का खुलता नहीं....
रीती हुई मन की गगरिया,
भाव शून्य हो गये,
खामोशी के आवरण मे ,