4/27/2009

"बारिशों ने घर बना लिए "

"बारिशों ने घर बना लिए "


यादे तेरी अश्रुविहल हो
असहाय कर गई
आँखों मे कितनी
बारिशों ने घर बना लिए

गूंजने लगा ये मौन
तुझको पुकारने लगा
व्यथित हो सन्नाटे ने भी
सुर से सुर मिला लिए

बिखरने लगे क्षण प्रतीक्षा के
अधैर्य हो गये
टूटती सांसो ने
दुआओं मे तेरे ही
हर्फ सजा लिए ............

http://swargvibha.0fees.net/june2009/Kavita/barish%20ko.htm

4/20/2009

निरुत्तर लौटे संदेश सभी

" निरुत्तर लौटे संदेश सभी "

सुनी लगती है ये धरती...
अगन ये नभ बरसाता है
तुमको खोजे कण कण मे
ये मन उद्वेलित हो जाता है...

अरमानो के पंख लगा
एक स्पर्श तुम्हारा पाने कों
सेंध लगा रस्मो की दीवारों मे
दिल बैरागी हो जाता है.....
हर आस सुलगने लगती है
उम्मीद बोराई जाती है
ये कसक है या दीवानापन
सुध बुध को समझ ना आता है...

पानी की बूंदों से बाँचे
और पवन के रुख पे सजों डाले
निरुत्तर लौटे वो संदेश सभी
हर प्रयास विफल हो जाता है...

4/13/2009

"वक़्त की लाचारी"

"वक़्त की लाचारी"

हाँ वो लाचार वक़्त हूँ मैं
छटपटाता हुआ बदहवास सा
ठहरा हूँ मै तब से
दो दिलो के वादों का
साक्ष्य बना था जब से
व्याकुल हो विरह में
अश्कों में डुबे सिसकते
एक दिल न कहा था
" जब अंत समय आये और
ये सांसे बोझ बन जाये
एक बार मुझसे कह देना
मै भी साथ चलूँगा ..."

उस रिश्ते पर मेरा ही
कफ़न पड़ गया शायद
अब मै गुजर जाना चाहता हूँ
मुक्त हो जाना चाहता हूँ
साक्ष्य के उस बोझ से
काश मेरे सीने से कोई
उस लम्हे के अंश को
चीर के जुदा कर दे
हाँ वही लाचार वक़्त हूँ मै .....

4/06/2009

"कैसे जान पाओगे"


"कैसे जान पाओगे"

खामोश खडे हैं स्वर ये सारे
शब्द बेबस हैं नजर चुराने को
ऑंखें भी प्रतिज्ञाबद्ध हो रही
अश्को को कोरो तले छुपाने को

भाव भंगिमा ने श्रृंगार कर लिया
दाग-ऐ-दर्द मिटाने को
हरकते भी चंचल हो गयी कुछ

झूठी उमंग लहर दर्शाने को

बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है

जख्म कौन सा सिल जाने को ?..........


http://swargvibha.freevar.com/may2009/Kavita/seemagupta.html