मौन जब मुखरित हुआ
और सुर मे आने लगा,
प्रियतम तेरी यादो का झरना
फुट फुट जाने लगा..
भूली बिसरी बातो के
सोए खंडहर सहसा जाग उठे,
पीडा के बोझ से दबा
हर पल लडखडाने लगा...
बिखरे हुए संबंधो की कडियाँ
छोर भी न कोई पा सकी,
अपनत्व का अस्तित्व
दर दर ठोकरे खाने लगा...
अपनत्व का अस्तित्व
दर दर ठोकरे खाने लगा...
नैनो की शाखों पे
जम गये जो सुख कर
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