6/22/2009

"मौन जब मुखरित हुआ "

"मौन जब मुखरित हुआ "

मौन जब मुखरित हुआ
और सुर मे आने लगा,
प्रियतम तेरी यादो का झरना
फुट फुट जाने लगा..

भूली बिसरी बातो के
सोए खंडहर सहसा जाग उठे,
पीडा के बोझ से दबा
हर पल लडखडाने लगा...

बिखरे हुए संबंधो की कडियाँ
छोर भी न कोई पा सकी,
अपनत्व का अस्तित्व
दर दर ठोकरे खाने लगा...
नैनो की शाखों पे
जम गये जो सुख कर
मृत अश्को मे प्राण
जैसे अंकुरित हो जाने लगा...

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6/09/2009

"अपनों का साया "

" आज फिर आप सब के बीच अपने को देख पाना बडा ही सुखद एहसास है. आदरणीय ताऊ जी और अरविन्द मिश्र जी की दिल से आभारी हूँ जिन्होंने मेरी अस्वस्थता को अपने ब्लॉग पर स्थान देकर मेरे लिए इस ब्लॉग परिवार के हर सदस्य से मंगल कामनाओ का एक वीशाल भंडार अर्जित किया. उन्ही दुआओं और शुभकामनाओ का असर है की अब मै कुछ हद तक ठीक होकर फिर अपने इस ब्लॉग परिवार मे आप सब के साथ अपने को देख पा रही हूँ. हैरान हूँ इतना अपनापन और स्नेह पाकर इतने बडे ब्लॉग परिवार से...लगा ही नहीं की लगभग एक महीने से ब्लॉग से दूर हूँ.....कितने ही ब्लॉग के वरिष्ट सदस्य ईमेल, फ़ोन , और अपनी टिप्पणीयों के द्वारा मुझ से मेरे इस कठिन समय मे जुड़े रहे और अपनेपन का एहसास दिलाते रहे. आप सब के हर शब्द , हर दुआ, हर शुभकामनाओ की दिल से आभारी हूँ. उम्मीद है आने वाले और दो चार दिनों मे ब्लॉग पर नियमित हो जाउंगी. इस ब्लॉग परिवार का शुक्रिया कहना बहुत छोटा शब्द है .....ये कुछ पंक्तियाँ आप सब के लिए आभार सहित..."

"अपनों का साया "

जीवन मे अब क्या मै मांगु,
बिन मांगे सब कुछ पाया है,
एकांत रहे जब कुछ दिन मेरे,
इर्द गिर्द देखा अपनों का साया है...

आभारी हूँ मै हर उस दिल की,
कठिन समय में जिसने साथ नीभाया है
स्नेह आशीष और दुआओ का ...
वीशाल भंडार मुझ पर बरसाया है...

कोई जान नहीं पहचान नहीं,
सबसे मिलने के आसार नहीं..
मंगल कामनाओ मे मगर...
सबने एक जुट होकर शीश नवाया है ...

एकांत रहे जब कुछ दिन मेरे,
इर्द गिर्द देखा अपनों का साया है...

(With Regards)