3/23/2010

"विरह के रंग (काव्य संग्रह)"




"विरह के रंग "


"(काव्य संग्रह) ISBN: 978-81-909734-1-०"


आज शिवना प्रकाशन के आदरणीय पंकज सुबीर जी के मार्गदर्शन के तहत "विरह के रंग"के साथ अपने पहले काव्य संग्रह को साकार रूप में देख हर्ष उल्लास और एक बैचनी का अनुभव कर रही हूँ.
" विरह का क्या रंग होता है ये मैं नहीं जानता लेकिन इतना ज़रूर है की है की ये रंगहीन भी नहीं होता और यह रंग ऑंखें नहीं दिल देखती हैं . " सहसा आज एक पाठक की मेरी एक कविता पर लिखी ये पंक्तियाँ मेरे मन मे कौंध गयी.......कितना सत्य है इन शब्दों में ......
"विरह जीवन का एक हिस्सा है एक अटूट हिस्सा जिसका कोई रंग नहीं सिर्फ उसे महसूस किया जाता है और जो पिघल कर एक उन्मुक्त गीत या कविता में ढल जाता है. "विरह का रंग" न जाने कितने मन की आँखों ने देखा होगा उसे जिया होगा, और वही एहसास जैसे लफ्जो से निकल कर कागज़ पर तड़प कर बिखर गये. कभी प्रकति की सुन्दरता ने हाथ में कलम थमा दी और कभी अंधियारी रातो ने एक रौशनी की खातिर दिल की शमा जला दी.


मुझे अपने आप को बहुत ज्यादा तो अभिव्यक्त करना नही आता बस इतना जानती हूँ " ना सुर है ना ताल है बस भाव हैं और जूनून है " लिखने का . और ये जूनून हिंद युग्म और ब्लॉगजगत से जुड़ने के बाद और भी बढ़ गया . ब्लागजगत के माननीय जनों के आशीर्वाद और अपने माता पिता के प्रोत्साहन ने कुछ हट कर भी लिखने को प्रेरित किया जैसे " बंजारा मन" "मन की अभिलाषा " "खाबो के आँगन" "मायाजाल" "फ़िर उसी शाख पर", "शब्दों की वादियाँ" जब कश्ती लेकर उतरोगे ", 'मधुर एहसास , "झील को दर्पण बना"" ये कुछ ऐसे रचनाएँ है जो दुःख दर्द से परे खुले आसमान मे उड़ते निश्च्छल बेपरवाह पक्षी के जैसी हैं....जिनका जन्म आप सब की प्रेरणा से ही हुआ........"अपने से बडो को आदर और छोटो को स्नेह के साथ मै इस ब्लॉगजगत के सभी सदस्यों के प्रति अपना आभार वयक्त करना चाहूंगी .
वरिष्ट कवि तथा सुप्रसिद्ध गीतकार श्रद्धेय श्री रमेश हठीला जी का आभार शब्दों में व्यक्त करना मेरे लिए असंभव है , उन्होंने जिस प्रकार से मेरी कविताओं का भाव पकड़ कर भूमिका लिखी है वो अद्युत है. श्री हठीला जी ने मेरी कविताओं को नये और व्यापक अर्थ प्रदान किये उनकी लेखनी को मेरा प्रणाम. शिवना प्रकाशन की टीम वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय श्री नारायण कासट जी , वरिष्ट कवी श्री हरिओम शर्मा दाऊ जी का आभार जिन्होंने संग्रह के लिए कविताओं के चयन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

आभार युवा डिजाइनर सुरेंद्र ठाकुर जी का जिन्होंने मेरी भावनाओ तथा पुस्तक के शीर्षक विरह के रंग को बहुत अच्छा स्वरूप देकर पुस्तक का आवरण प्रष्ट डिजाइन किया और
सनी गोस्वामी जी का जिन्होंने पुस्तक की आन्तरिक साज सज्जा तथा कम्पोजिंग का काम बहुत ही सुन्दरता से किया. आभार मुद्रण की प्रक्रिया से जुड़े श्री सुधीर मालवीय जी था मुद्रक द्रष्टि का भी जिन्होंने मेरी कल्पनाओ को कागज पर साकार किया.


अंत में फिर से आदरणीय पंकज सुबीर जी का बेहद आभार जिनके आर्शीवाद और सहयोग के बिना शायद ये काव्य संग्रह य सपना ही रह जाता.... ये काव्य रचना सिर्फ एक शुरुआत है , और आप सभी के सुझाव और प्रतिक्रिया मेरी आगे की मंजिल के साथी और पथ प्रदर्शक बनेगे.......
वैदेही की तड़प, उर्मिला की पीर, और मांडवी की छटपटाहट : विरह के रंग (काव्य संग्रह), समीक्षा श्री रमेश हठीला

मूल्य : 250 रुपये प्रथम संस्करण : 2010 प्रकाशक : शिवना प्रकाशन
http://shivnaprakashan.blogspot.com/2010/03/blog-post_22.html
http://subeerindia.blogspot.com/2010/03/blog-post_21.html
http://dreamstocometrue.blogspot.com/2010/03/blog-post.html



http://prosingh.blogspot.com/2010/03/blog-post_24.html



http://satish-saxena.blogspot.com/2010/04/blog-post_06.html


http://www.starnewsagency.in/2010/04/blog-post_16.html


http://www.punjabkesari.in/epapermain.aspx?queryed=16&subedcode=3&eddate=08/11/2010