10/27/2010
"नसीब"
"नसीब"
कुछ सितारे
मचल के जिस पहर
रात के हुस्न पे दस्तक दें
निगोड़ी चांदनी भी लजाकर
समुंदर की बाँहों में आ सिमटे
हवाओं की सर्द ओढ़नी
बिखरे दरख्तों के शानों पे
उस वक़्त तू चाँद बन
फलक की सीढ़ी से फिसल जाना
चुपके से मेरी हथेलियों पर
वो नसीब लिख जाना
जिसकी चाहत में मैंने
चंद साँसों का जखीरा
जिस्म के सन्नाटे में
छुपा रखा है ...
10/11/2010
"हथेली पे उतारा हमने"
एक खुबसूरत रूहानी से मंजर की कल्पना करते हुए, उस चाँद को जो न जाने कितनी दूर है मगर हर पल उतना ही करीब होने का एहसास करा जाता है , अगर अपने सामने आपने पास अपनी हथेलियों की कम्पन में महसूस कीया जाए तो कैसा लगता होगा ना. इस दिलनशीन पल की कल्पना को मेरे साथ यहाँ सुनिए.....
"हथेली पे उतारा हमने"
रात भर चाँद को चुपके से
हथेली पे उतारा हमने
कभी माथे पे टिकाया
कभी कंगन पे सजाया
आँचल में टांक के मौसम की तरह
अपने अक्स को संवारा हमने
रात भर चाँद को चुपके से
हथेली पे उतारा हमने
सुना उसकी तन्हाई का सबब
कही अपनी दास्तान भी
तेरे होटों की जुम्बिश की तरह
पहरों दिया सहारा हमने
रात भर चाँद को चुपके से
हथेली पे उतारा हमने
अपने अश्को से बनाके
मोहब्बत का हँसीं ताजमहल
तेरी यादों की करवटों की तरह
यूँ हीं एक टक निहारा हमने
रात भर चाँद को चुपके से
हथेली पे उतारा हमने
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