7/02/2011

"तबियत कुछ बहलने सी लगी है "



हवा पुर कैफ चलने सी लगी है
तबियत कुछ बहलने सी लगी है

नया सा ख्वाब आँखों में सजा है
पुरानी रुत बदलने सी लगी है

है उसका ज़िक्र लेकिन वो नहीं है
कमी हर वक़्त खलने सी लगी है

रखा है एक दिया चौखट पे हम ने
उम्मीद -ए -शाम ढलने सी लगी है

सुनी है चाप जब से उसकी "सीमा"
मेरी भी साँस चलने सी लगी है