12/31/2008

" नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं"



" नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं"

दुखदायी जो पल थे उन्हें भुलाएं
मधुर स्म्रतियों से नव वर्ष को गले लगायें ,
करते है दुआ हम रब से सर झुकाके ...
इस साल के सारे सपने पुरे हो आपके.
"नव वर्ष २००९ - आप सभी ब्लॉग परिवार और समस्त देश वासियों के परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं "

12/30/2008

"यादों की पालकी"





"यादों की पालकी"

उनीदीं आँखों को मलते
धुली शाम सी निखरी
खामोशी के साये तले
आकाँक्षाओं की ऊँगली थामे
अनजानी ख्वाइशों से सवंरी
भावनाओ के आँगन में
लरजती उतर आती है
तेरी यादों की पालकी
और कुछ अधूरे शब्दों के
आँचल मे लिपटी तेरी बातें
किरच किरच बिखरने लगती हैं....
" रोप लूंगा तुम्हे अपनी आँखों मे
जमीन पे बिखरने से पहले..."




12/27/2008

"हाल-ऐ-दिल"


"हाल-ऐ-दिल"

पलकों पे आए और भिगाते चले गए,
आंसू तुम्हारे फूल खिलाते चले गए..

तुमने कहा था हाल-ऐ-दिल हम बयाँ करें
हम पूरी रात तुम को बताते चले गए...

मुद्द्त के बाद बोझिल पलकें जो हो रही,,
हम लोरियों से तुम को सुलाते चले गए...

तुम्ही को सोचते हुए रहने लगे हैं हम,
तुम्ही के अक्स दिल में बसाते चले गए....

अब यूँ सता रहा है हमें एक ख़याल ही,
हम तुम पे अपना बोझ बढाते चले गए ........


http://vangmaypatrika.blogspot.com/2008/08/blog-post_27.html

12/24/2008

'मन की अभिलाषा"



"मन की अभिलाषा"

मन की अभिलाषा
दिशाहीन , आवारा
कभी किसी पथ
कभी उस डगर
चंचल चपल निर्भीक
बेबाकी की चुनर ओढ़
इतराती, इठलाती
अनुशासन की देहरी लाँघ
दायरों की हँसी उडा
अधीरता को निमंत्र्ण दे
"ना जाने"
क्या पाने को मचल रही...
मन की अभिलाषा
दिशाहीन , आवारा

12/22/2008

"फिर उसी शाख़ पर"




"फिर उसी शाख़ पर"

गीत कोई आज, यूँ ही गुनगुनाया जाए,
शब्दों को सुर-ताल से सजाया जाए
बेचैनियों को करके दफ़्न
दिल के किसी कोने में,
रागिनियों से मन को बहलाया जाए
ख़ामोशी के आग़ोश से
दामन को छुड़ा कर, ज़रा,
स्वर को अधरों से छलकाया जाए
शक्वों के मौसम को
करके रुख़सत दर से
मोहब्बत की चाँदनी में नहाया जाए
उजालों के आँचल में
सज कर सँवर कर
आईने में ख़ुद से ही शरमाया जाए
परदए-नाज़ो-अंदाज़
उनको दिखलाकर,
ख़िरामा ख़िरामा चल कर आया जाए
बर्क़ को न देकर के
ज़रा भी मोहलत,
फिर उसी शाख़ पर नशेमन बनाया जाए

(शक्वों = शिकायतों
ख़िरामा = आहिस्ता
बर्क़ = बिजली
नशेमन = घोंसला )

12/20/2008

"परिचय "


"परिचय"

सन्नाटा श्रृंगार कर रहा,
पल-पल दिन और रैन का
सरिता भी निस्पंद हुई अब,
चिन्ह ना कोई बैन का
सन्नाटा श्रृंगार......
संध्या की हर साँस है घायल,
गुमसुम तारों की है झिलमिल,
कोपभवन जा छिपी चांदनी,
आँगन सूना नैन का
सन्नाटा श्रृंगार......
खुशियों का बाजार लुटा,
निष्प्राण हुआ मन का मुख्यालय,
रीती भावों की गागरिया................
'परिचय' क्या सुख-चैन का ?
सन्नाटा श्रृंगार कर रहा,
पल-पल दिन और रैन का
(बैन = वार्ता, बातचीत
रीती = खाली)

12/18/2008

'"नवभारत टाईम्स का आभार "

'"नवभारत टाईम्स का आभार "

" मेरी रचना "ख्वाबों के आँगन " को नवभारत टाईम्स ने १७/१२/२००८ अपनी साइट http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3846072.cms#write पर जगह देकर मुझे जो मान सम्मान दिया है, उसके लिए मैं सम्पादक जी की दिल से आभारी हूं." अपने अभी पाठको का तहे दिल से शुक्रिया जिन्होंने इस रचना को पढ़कर मुझे एक बार फ़िर से प्रोत्साहन और आशीर्वाद दिया है"

'आभार'

12/15/2008

"दृष्टि "

"दृष्टि"

अनंतकाल से ये दृष्टि
प्रतीक्षा पग पर अडिग ,
पलकों के आंचल से
सर को ढांक ,
आतुरता की सीमा लाँघ
अविरल अश्रुधारा मे
डूबती , तरती , उभरती ,
व्याकुलता की ऊँचाइयों को छु
प्रतीक्षाक्षण से तकरार करती
तुम्हारी इक आभा को प्यासी
अनंतकाल से ये दृष्टि
प्रतीक्षा पग पर अडिग




12/12/2008

मौन का उपवास



"मौन का उपवास"

अनुभूतियों का आचरण

शालीन सभ्य सह्रदय हुआ,

और भावः भी चुप चाप हैं,

अधरों पे आके थम गया

शब्दों का बढ़ता कारवां,

स्वर कंठ में लुप्त हुए,

क्या "मौन" का उपवास है


http://swargvibhaeditions.t35.com/jan2009/kavita/seema%20gupta.html

12/10/2008

"मायाजाल"

" मायाजाल"

ह्रदय के मानचित्र पर पल पल
तमन्नाओं के प्रतिबिम्ब उभरते रहे,
यथार्थ को दरकिनार कर
कुछ स्वप्नों ने सांसे भरी...
छलावों की हवाएं बहती रही
बहकावे अपनी चाल चलते रहे,
कायदों को सुला , उल्लंघन ने
जाग्रत हो अंगडाई ली..
द्रढ़निश्चयता का उपहास कर
संकल्प मायाजाल में उलझते रहे,
ह्रदय के मानचित्र पर पल पल
तमन्नाओं के प्रतिबिम्ब उभरते रहे...

12/08/2008

"ख्वाबों के आँगन "



"ख्वाबों के आँगन "

ख्वाबों के आँगन ने अपना
कुछ ऐसे फ़िर विस्तार किया,
वर्तमान ने हकीक़त ,
का दामन ठुकराया ,
अस्तित्व ने अपने,
सामर्थ्य से मुख फैरा,
शीशमहल का निर्माण किया...
विवशता का परित्याग कर ,
दर्पण मचला जिज्ञासा का,
भ्रम की आगोश मे,
मनमोहक श्रिंगार किया ...
बहते दरिया की भूमि पर ,
इक नीवं बना अरमानो की,
हर तर्ष्णा को पा लेने का,
निरर्थक एक प्रयास किया ...
ख्वाबों के आँगन ने अपना

कुछ ऐसे फ़िर विस्तार किया.........



http://vangmaypatrika.blogspot.com/2008/12/blog-post_8134.html

http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3846072.cms#write

12/06/2008

"तुम बिन "


"तुम बिन " हर गीत अधुरा तुम बिन मेरा,
साजों मे भी अब तार नही..
बिखरी हुई रचनाएँ हैं सारी,
शब्दों मे भी वो सार नही...
जज्बातों का उल्लेख करूं क्या ,
भावों मे मिलता करार नही...
तुम अनजानी अभिलाषा मेरी,
क्यूँ सुनते मेरी पुकार नही ...
हर राह पे जैसे पदचाप तुम्हारी ,
रोकूँ कैसे अधिकार नही ...
तर्ष्णा प्यासी एक नज़र को तेरी,
मिलने के मगर आसार नही.....


12/04/2008

शब्दों की वादियाँ



"शब्दों की वादियाँ"

शब्दों की वादियों मे
विचरता ये मन ,
खोज रहा कुछ ऐसे कण ,
जो सजा सके मनोभावों को,
चाहत के सुंदर साजों को,
लुकती छुपती अभिलाषा को,
नैनो मे दुबकी जिज्ञासा को,
सिमटी सकुचाई आशा को,
निश्चल प्रेम की भाषा को,
शब्दों की वादियों मे
विचरता ये मन ,
खोज रहा कुछ ऐसे कण............

12/01/2008

"सरहदे-इश्क़"



"सरहदे-इश्क़"

है ये शो'ला या के चिंगारी है,
आतश-अंगेज़ बेक़रारी है ...

यूँ निगाहों से ना गिराएँ हमें,
चोट ज़िल्लत से भी करारी है ...

के शिकन आपके चेहरे पे पड़े
दिल पे अपने ये बात भारी है ...

सरहदें इश्क़ की न ठहराएँ
इश्क़ से काइनात हारी है ....

हमने क्या कर दिया जो क़ाइल हैं
आप पर जान ही तो वारी है ...
(आतश-अंगेज़ - आग भड़काने, उत्तेजित करने वाली
ज़िल्लत - अपमान, तिरस्कार

काइनात - दुनिया
क़ाइल - अभिभूत
वारी - न्योछावर )