4/30/2014

"उस रात की बात.... "


"उस रात की बात.... "


चांदनी की सरगोशियाँ में


नहा कर मचलता


सियाह रात का हुस्न


उसपे बेख़ौफ़ होकर तेरे बाजुओं में


रुसवाइयों की थकन का पनाह पा जाना


लबों की चुप्पियों में दफ़न


इश्क का वो अंगारा


अचानक से


जिस्म की सरहदों से


झाँकने लगा है


कब तक छुप सकेगी


जमाने से आखिर


"उस रात की बात.... "

4/23/2014

"दुष्यंत की अंगूठी "


"दुष्यंत की अंगूठी "

मेरी ठिठकी हुई पलकों में 
सदियों से उलझा एक लम्हा 
जिसे अपनी आँखों से छु कर
तुने मेरे नाम कर दिया था
और तेरे अश्क के एक कतरे ने
तुझसे छुप कर
मेरी आँखों में पनाह ली थी
इश्क की अधूरी चांदनी का
हिसाब मांगने ज़िद पे उतर आया है
सिसकने लगा है मेरी हथेली पे
वो बदनसीब कतरा भी
दुष्यंत की अंगूठी की तरह