2/16/2012

"Dr zakir hussain college mushaira dt 15/02/2012"


"Moments at Dr zakir hussain college mushaira dt 15/02/2012"





















Ghazal



वही फुरक़त के अँधेरे वही अंगनाई हो

तेरी यादों का हों मेला ,शब् -ए -तन्हाई हो


मैं उसे जानती हूँ सिर्फ उसे जानती हूँ

क्या ज़ुरूरी है ज़माने से शनासाई हो


इतनी शिद्दत से कोई याद भी आया ना करे

होश में आऊं तो दुनिया ही तमाशाई हो


मेरी आँखों में कई ज़ख्म हैं महरूमी के

मेरे टूटे हुए ख़्वाबों की मसीहाई हो


वो किसी और का है मुझ से बिछड कर सीमा

कोई ऐसा भी ज़माने में न हरजाई हो