2/16/2012

"Dr zakir hussain college mushaira dt 15/02/2012"


"Moments at Dr zakir hussain college mushaira dt 15/02/2012"





















Ghazal



वही फुरक़त के अँधेरे वही अंगनाई हो

तेरी यादों का हों मेला ,शब् -ए -तन्हाई हो


मैं उसे जानती हूँ सिर्फ उसे जानती हूँ

क्या ज़ुरूरी है ज़माने से शनासाई हो


इतनी शिद्दत से कोई याद भी आया ना करे

होश में आऊं तो दुनिया ही तमाशाई हो


मेरी आँखों में कई ज़ख्म हैं महरूमी के

मेरे टूटे हुए ख़्वाबों की मसीहाई हो


वो किसी और का है मुझ से बिछड कर सीमा

कोई ऐसा भी ज़माने में न हरजाई हो






2/02/2012

Ghazal published in Aalamisahara E magzine in Feb 2012 ediiton


Ghazal published in Aalamisahara E magzine in Feb 2012 ediiton



हजारों ख्वाब आँखों में हमारी मुस्कुराये हैं

तेरे मिलने की बेताबी ने क्या क्या गुल खिलाये हैं


तसव्वुर ने तेरे फिर रात भर मुझको जगाया है

तेरी चाहत ने मेरी नींद पर पहरे लगायें हैं ......


लबों पर प्यास रखी है मिलन की आस रखी है

वही यादों का दरया है वही ठंडी हवाएं हैं


ये मंज़र शाम ढलने का , ये भीगी रात का दामन

तेरी यादों ने ऐ जानम यहीं खेमे लगाये हैं


ये तन्हाई , ये खामोशी , ये 'सीमा' हिज्र के लम्हे

रुपहली चांदनी रातों में , हम खुद को जलाएं हैं



Courtesy : Ali Abidi Amrohavi