6/22/2009

"मौन जब मुखरित हुआ "

"मौन जब मुखरित हुआ "

मौन जब मुखरित हुआ
और सुर मे आने लगा,
प्रियतम तेरी यादो का झरना
फुट फुट जाने लगा..

भूली बिसरी बातो के
सोए खंडहर सहसा जाग उठे,
पीडा के बोझ से दबा
हर पल लडखडाने लगा...

बिखरे हुए संबंधो की कडियाँ
छोर भी न कोई पा सकी,
अपनत्व का अस्तित्व
दर दर ठोकरे खाने लगा...
नैनो की शाखों पे
जम गये जो सुख कर
मृत अश्को मे प्राण
जैसे अंकुरित हो जाने लगा...

http://latestswargvibha.blog.co.in/

41 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर और सशक्त अभिव्यक्ति. शुभकामनाएं.

रामराम.

डॉ .अनुराग said...

dilchasp !

रंजन said...

मौन की भाषा पढ़ ली आपने.. बहुत सुन्दर..

अमिताभ भूषण"अनहद" said...

बिखरे हुए संबंधो की कडियाँ

छोर भी न कोई पा सकी,
अपनत्व का आस्तित्व
दर दर ठोकरे खाने लगा...
वाह ,बहुत खूब,प्रभावी सृजन

दिगम्बर नासवा said...

भूली बिसरी बातो के
सोए खंडहर सहसा जाग उठे,
पीडा के बोझ से दबा
हर पल लड़खाने लगा...


बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है........... यादों के खंडहर ........... सचमुच यादें खंडहर ही होती हैं.........

aarya said...

Soch ki gaharaiyo ko chhua hai aapane,
Sadhuvad.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर गज़ल,
अच्छे शब्द।
बधाई।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

आज वाकई मौन मुखरित हुआ है.

Birds Watching Group said...

tadapane ki darkhwast ke baad
milaa apno ka saya
aur maun mukhrit hua
surya grahan se
chand ka jharna bahaa
jhilmilaaye sitare
suhaag chinh darshit hua
kaise maane
aadi ke janam din baad
tabiyat thi bigdi
andaaz bayaani ka
thamaa nahi tha thaamaa
seema ne kahi baat viram se
aur ham hanse ha ha

ओम आर्य said...

bahut hi sundar .........moun se nikali gayi kawitaa ........jisake shabda mukharita ho rahe hai...atisundar

ओम आर्य said...

bahut hi sundar .........moun se nikali gayi kawitaa ........jisake shabda mukharita ho rahe hai...atisundar

Arvind Mishra said...

भाव प्रवण !

राज भाटिय़ा said...

मन भावन, अति सुंदर.

मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे

मीत said...

मौन जब मुखरित हुआ
और सुर मे आने लगा,
प्रियतम तेरी यादो का झरना
फुट फुट जाने लगा..
सुंदर....
आपको वापस देख अच्चा लगा
मीत

M VERMA said...

पीडा के बोझ से दबा

हर पल लड़खाने लगा...
sunder bhavabhivyakti.

Udan Tashtari said...

बड़ा अच्छा लगा पूरे जोश खरोश से वापस आना. आशा है अब नियमित लेखन होगा.

!!अक्षय-मन!! said...

welcome back........
bahut accha likha aapne itna sundar geet ..........
man main khushboo ki tarhaan samaa gaya........
khusboo pholon bagon ki khushboo pehli barsaat ki sundhi soundi mitti ki........
usi tarhaan aapka ye geet bahut accha laga............dhanywaad

योगेन्द्र मौदगिल said...

मौन जब मुखरित हुआ.... वाह... पहली पंक्तिं ने ही छू लिया सीमा जी..

Abhishek Ojha said...

दिल को छूने वाले रचना !

राकेश कुमार said...

सीमा जी,

बहुत सुन्दर रचना और उतने ही सुन्दर चित्र का आपके द्वारा चयन.

बधाई आपको.

इतने कम समय मे इतनी ढेर सारी प्रतिक्रियाये जैसे आपके लेखनी का लोहा मानने को मुझे विवश करती है.

प्रथम चार पन्क्तियो मे किसी विरहन के मुखरित होते मौन के फलस्वरूप उत्पन्न भावो को वयक्त करने की आपकी चेष्टा आपकी लेखन कुशलता को प्रतिबिम्बित करती है.विरह वेदना को महसूस करती किसी स्त्री का मौन जब मुखरित होता होगा तो निश्चय ही भावनाओ का हिम शिखर पिघलता होगा जो रह रह कर आन्सुओ के रूप मे गिरते हुये एक स्त्री के ह्र्दय की धधकती ज्वाला को शान्त करने का नाकाम प्रयत्न करती होन्गी.वे आन्सू गर्म तवे पर गिरते पानी की कुछ बून्दो की तरह उस अत्रिप्त प्यास को और उद्वेलित करती होन्गी.मातमी गीत सुरो मे सज कर स्पन्दित होती धडकनो के साथ लय और ताल मिला किसी तरह जी लेने का पथ प्रशस्त करती होन्गी.

बीच के दोनो पेराग्राफ्स बहुत सुन्दर, जैसे उन्ही मौन को मुखर स्वरूप प्रदान करने के लिये वे यादे हेतु बनती होन्गी.

अन्तिम चार पन्क्तियो मे जैसे आपने निचोड ही कह डाला, सचमुच उन सुखे अश्रुओ मे प्राण का सन्चार तो तभी होता होगा जब वे अतीत की यादे टीस बनकर फिर से उन घावो को हरा करती होन्गी, और यमुना की निश्छल जल धारा की तरह कोई विरहा अपने आन्सुओ के प्रवाह से उन यादो के सतह पर जमे धूल धुसरित आवरण को निर्मल कर सहेजती होगी.

बहुत सुन्दर रचना

पुन: बधाई आपको

राकेश

Amit Verma said...

Superbly Amazing :)
It was like I was reading your lines and wandering within a distant land, at the same time..

You rock lady ..

Amit Verma

Science Bloggers Association said...

आपकी शब्‍द योजना अदभुत है, जिससे कविता में एक नया आकर्षण उत्‍पन्‍न हो जाता है।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

मुकेश कुमार तिवारी said...

सीमा जी,


बीमारी के बाद बड़ी चुस्ती से मैदान में हैं। यह जोश-ओ-खरोश बरकरार रहे, आपका ब्लॉग पढना एक सुखद अनुभव होता है।

सादर,


मुकेश कुमार तिवारी

Mumukshh Ki Rachanain said...

मौन जो बहुत लम्बा हो चला था...........उसे तो मुखरित होना ही था..............

मौन का मुखरित होना भले ही कडुआ लगे पर सच के बहुत ज्यादा करीब होता है कारण कि मौन तभी मुखरित होता है जब उसके हिसाब से सहन की पराकाष्ठा समाप्त हो चुकी होती है..........

सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति पर हार्दिक आभार.

चन्द्र मोहन गुप्त

प्रदीप मानोरिया said...

बहुत सुन्दर तरीके से आपने जिन्दगी के हालत को बयान किया है .. आपकी लेखनी को प्रणाम
प्रदीप मनोरिया
09425132060

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

"मौन जब मुखरित हुआ
और सुर मे आने लगा,
प्रियतम तेरी यादो का झरना
फुट फुट जाने लगा"
रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

सिमा गुप्ताजी,
"भूली बिसरी बातो के
सोए खंडहर सहसा जाग उठे,"
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है...* * * * *

आभार/मगलकामना
महावीर बी सेमलानी "भारती"
मुम्बई टाईगर
हे प्रभु यह तेरापन्थ

प्रकाश गोविंद said...

अपनत्व का अस्तित्व
दर दर ठोकरे खाने लगा...
नैनो की शाखों पे
जम गये जो सूख कर
मृत अश्को मे प्राण
जैसे अंकुरित हो जाने लगा..

बहुत भावपूर्ण कविता
मौन की भाषा की सुन्दर अभिव्यक्ति !


आज की आवाज

vijay kumar sappatti said...

seema ji ,

namaskar ...

aapki is kavita ne to maun ki bhaasha ko nayi abhivykati di hai .....

poori kavita ek lay me hai...

aapko bahut abhaar is post ke liye ..

bahut dino se aap ne meri poems ko apna aashirwad nahi diya ji ...
samay mile to dekhiyenga jarur..

dhanywad.

अभिन्न said...

मृत अश्को मे प्राण
जैसे अंकुरित हो जाने लगा..
बहुत ही उम्दा ओर स्तरीय रचना .आप की शैली सिर्फ आपकी है
ठीक आप के आने से भी ब्लॉग जगत में प्राण वापिस आ गए है
बेहतर स्वास्थ्य की कामना के साथ
sure

मोहन वशिष्‍ठ said...

बहुत सुंदर और सशक्त अभिव्यक्ति. शुभकामनाएं.

दिलीप कवठेकर said...

सकारात्मक!!

somadri said...

मुखरित हुए मौन ने दिल को छू लिया है

admin said...

मौन जब मुखरित हुआ,

काव्‍य का तब जन्‍म हुआ,

आपकी पढकर रचना

टिप्‍पणी मैंने किया।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Udan Tashtari said...

मौन जब मुखरित हुआ
और सुर मे आने लगा,
प्रियतम तेरी यादो का झरना
फुट फुट जाने लगा..


-वाह!! चलो, सुर मे आ गया,, वाकई, सुर में आ गया. बहुत खूब!

Sajal Ehsaas said...

behtareen vapsee huyee hai...balki shayad vaapsee kehna theek nahi,kyonki aap kabhi door nahi gaye they :)

aapki agli rachna ka intezaar hai

बवाल said...

बहुत ही लाजवाब कविता कही सीमाजी आपने। क्या कहना ! अहा ! मौन जब मुखरित हुआ।

Vinay said...

हृदयस्पर्शी रचना

---
विज्ञान । HASH OUT SCIENCE

Mukesh Garg said...

bahut kuhb seema ji very nice..


likhna bhi cahuu to kuch likh nahi pauu main uska naam ( apki poetry ki baat ki baat kar raha hu)

जितेन्द़ भगत said...

सुंदर पंक्‍ति‍यॉं-

अपनत्व का अस्तित्व
दर दर ठोकरे खाने लगा...

और सुंदर कल्‍पना-

नैनो की शाखों पे
जम गये जो सुख कर
मृत अश्को मे प्राण
जैसे अंकुरित हो जाने लगा...

Mukesh Garg said...

wah seema ji kya kuhb likha hai
मौन जब मुखरित हुआ
और सुर मे आने लगा,
प्रियतम तेरी यादो का झरना
फुट फुट जाने लगा.dhero badhiya savikar kare