"फर्ज निभा
ने को"तन्हाइयों ने फ़िर
बीज तेरी यादो के रोपे
मन के बंजर खलिहानों मे
घावो की पनीरी अंकुरित हुई
बीते लम्हों की फसल उगाने को
तिल तिल जल के राख़ हुए
अरमान उर्वरक बन बिखर गये
दिल दरिया अश्रु बह निकले
सींच उन्हें अपना "फर्ज निभाने को "
"हाँ खैरात हूँ मै"
"मर्यादा कौन सी निभा रहे हो"
"प्रेम"