8/09/2008

“ऐतबार”



“ऐतबार”


वो पूछते हैं मुझसे किस हद तक प्यार है,
मैंने कहा जहाँ तक ये अनंत नीला आकाश है,

वो पूछते हैं किसका तुम्हारे दिल पे इख्तियार है ,
मैंने कहा जिसका दर्द मेरे दिल मे शुमार है

वो पूछते हैं किस तोहफे का तुमको इन्तजार है ,
मैंने कहा उसका तसुब्ब्र्र जिसके लिए दिल बेकरार है

वो पूछते है मेरा साथ कहाँ तक निभाना है ,
मैंने कहा जहाँ तक चमकते सितारों का संसार है

वो पूछते है , मैं किस तरह ऐतबार करू तुम पर ,
मैंने कहा मेरा वजूद ख़ुद मे एक ऐतबार है...!

16 comments:

नीरज गोस्वामी said...

आप कि रचना पढ़ना एक खूबसूरत गुलशन की सैर करने जैसा अनुभव है जिसमें रंग भी हैं फूल भी खुशबू भी और कांटे भी...वाह..
नीरज

नीरज गोस्वामी said...

आप कि रचना पढ़ना एक खूबसूरत गुलशन की सैर करने जैसा अनुभव है जिसमें रंग भी हैं फूल भी खुशबू भी और कांटे भी...वाह..
नीरज

'sakhi' 'faiyaz'allahabadi said...

Seema Ji,
aap hi bataiye ab koyee pooche kya..................sab kuch to aap ne puchwa liya.............aur jawab aisa ki lajawab kar day.............aap ki poetry ki tarah ..lajawab.....kya khoob andaaz hai..lajawab....
ek baat poonchoon aapse?....
ki kya poonchoon aap se.

aap khud hi sawaal hain aur khud hi jawab............mukammal hain aap...........mubarak ho.

kavita ki khubsoorti .....lajawab.


aap ka..................shubhchintak

बालकिशन said...

वाह! वाह!
सुंदर! अति सुंदर!
नीरज भइया ने सही कहा आपकी रचनाएँ पढ़ना गुलशन की सैर करने जैसा ही है.
बहुत खूब.

Anil Pusadkar said...

bahut accha likhti hain aap,badhai

Birds Watching Group said...

bahut khoobsurati se kaha hai.
magar "main" aur mera aitbaar hai hi esa - kahaan baaj aaega vo to sada bahataa rahaa, bahega, nirjhar banega, ke kapur aur paani ke tarah dikhe bina ud bhi to jaega.vajood ko bhi chhadm kahaa hai guruon ne.

मोहन वशिष्‍ठ said...

सीमाजी आपकी हर रचना बेहतरीन होती है निसंदेह और नीजर जी का कहना बिल्‍कुल उचित है बस एक बात और जोड दो कि
आप कि रचना पढ़ना एक खूबसूरत गुलशन की सैर करने जैसा अनुभव है जिसमें रंग भी हैं फूल भी खुशबू भी और कांटे भी... साथ में लगता है शायद उन्‍होंने जानबूझ कर या कैसे नहीं कहा कि उनकी महक पूरे जगत को ही महका देती है मुझे लगता है नीरज जी इस महक को अकेले ही अपने तक सीमीत रखना चाहते हें वाकई लाजवाव

pallavi trivedi said...

sundar rachna..

vipinkizindagi said...

खूबसूरत रचना ....

डॉ .अनुराग said...

bahut khoob....

Udan Tashtari said...

पुनः बेहतरीन!!

Vinay said...

दिल को बहलने का इससे बेहतर बहाना क्या है!

Vinaykant Joshi said...

बहुत अच्छी रचना * बधाई
'नीला आकाश' को 'व्योम आकार' पढ़ा |
saadar
vinay

Advocate Rashmi saurana said...

सीमा जी बहुत बढ़िया. जारी रहे.

Mukesh Garg said...

wah wah its too good,

ish ko bhi 1st no. dete hai

dher sari badhaiya

Raj said...

आदरणीय सीमा जी
आपकी रचना ने दिल को घायल ही कर दिया । आपकी लिये कुछ इस तरह पेश करते हैं:

....उसकी आंख में आंसू...

दुआओं के झमेलों में मेरी भी कुछ दुआ रखना,
अगर रंजिश है दिल में आज तो उसको भुला रखना,

करो कुछ यूं मेरी इस ज़िन्दगी की हर खुशी ले लो,
मेरी आंखों में अपनी आंख के आंसू सजा रखना,

अगर मुश्किल तुम्हें हो फ़ैसला मेरे लिये करना,
निगाहें बन्द कर लेना भले दिल को खुला रखना,

सभी तन्हाईयां अपनी मेरे कमरे में बन्द कर दो,
मेरे यारों को अपनी महफ़िलों में तुम बुला रखना,

भले तुम सब भुला दो नयी महफ़िल की चाहत में,
मेरी यादों को ठुकरा दो मगर पास-ए-वफ़ा रखना,

जो एक पौधा लगाया था कभी हम ने मुहब्बत का,
गुज़र ना हो बहारों से तो उसे फिर भी हरा रखना,

अगर तुम को सताती हों मेरी यादें कभी आ कर,
मुरव्वत तुम नही करना उन्हें खुद से जुदा रखना,

तुम्हारे हाथ पर एक रोज़ अपना नाम लिखा था
मैं मांगूंगा ना कुछ तुमसे उसे तुम लिखा रखना,

मिलें तुमको सभी खुशियां यही है अब दुआ मेरी,
सुनो!अपने तबस्सुम में कोई ना गम छुपा रखना,

मेरे मौला! हैं उस की आंख में आंसू अभी बाक़ी,
गर दामन पर गिर जाये उसे मोती बना के रखना.

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