1/24/2011
"युध्भूमि" त्रेमासिक पत्रिका का "सिसकती इंसानियत"
"युध्भूमि" त्रेमासिक पत्रिका का "सिसकती इंसानियत" का अंक मिला, किन शब्दों में आदरणीय प्रदीप जी का आभार प्रकट करूं समझ ही नहीं आ रहा. मेरी ताशकंत की यात्रा को आदरणीय शास्त्री जी की प्रतिमा और विवरण सहित जिस सुन्दरता से निखार कर युध्भूमि में अनुपम स्थान मिला है बस अभिभूत हूँ. कभी कभी कुछ कहने को शब्द भी कम पड़ जाते हैं, आज वही स्थिति मेरे सामने है.
सच में बेहद ही अनूठी प्रस्तुती है ये "युध्भूमि" , कितने सवाल कितने जवाब.....कितने संकल्प और न जाने साहित्य की कितनी सर्द गर्म आहटे समेटे अपने आप में एक सम्पूर्ण पत्रिका है.
आदरणीय सलीम प्रदीप जी और उनकी पूरी टीम को हार्दिक बधाई इतनी शानदार पेशकश पर. आप सभी का ये प्रयास अत्यंत सराहनीय है , नये पुराने साहित्य से परिचय कराने उनसे जुडी विस्तृत जानकारी देने में जो मेहनत आप लोग करते हैं अपना कीमती समय लगाकर उसके लिए शुक्रिया शब्द बेहद ही छोटा सा है. .युध्भूमि दिन बा दिन उचाईयों के नये आयाम स्थापित करे इन्ही शुभकामनाओ के साथ ..
"युध्भूमि" पत्रिका का वार्षिक शुल्क १००/- रूपये है. इस पत्रिका को यहाँ संपर्क कर के प्राप्त किया जा सकता है.
"बी-२, मानसरोवर पार्क, शाहदरा , दिल्ली -110032"
दूरभाष - 9312034120
ईमेल- yudhbhumi@gmail.com
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15 comments:
Badhai............post ko thora zoom karke lagati to aur kuchh bhi kahta..:)
@ Mukesh ji,
please click on image to read it,
regards
seema ji..
maine to zoom kar ke padh lee...
acha laga...
aapka swaagat hai...
"andheron ka ehsaas na ho" pe...
http://shayarichawla.blogspot.com/
युध्भूमि पत्रिका के बारे में उम्दा जानकारी दी है ...आभार
बहुत बहुत बधाई.
पत्रिका परिचय के लिए आभार और दिलकश चित्र के लिए भी जिसे सहेज लिया है !
बहुत बधाई.
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.
रामराम.
आप को बधाई जी
Patrika ki jaankaari dene ka shukriya ...
aapko bhi bahut bahut badhaai ....
पत्रिका की जानकारी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आपके साथ-साथ हम भी घूम आए ताशकंद।
Gantantr diwas kee dheron badhayi!
बधाई...उसी समझौते के नाम से जाना जाता है ताशकंद....बड़ा अहम समझौता था.......
बहुत अच्छी जानकारी है पत्रिका के बारे मे। लेकिन मै तो आपकी कविता पढ रही हूँ और पढे जा रही हूँ
आँखे सुराही घूंट घूंट
चांदनी पीती रही
कहाँ से ऐसे एहसास ढूँढ कर लाती हैं?
दीमक लगी हो वक़्त की
बेचैनियों के वर्क में
उम्र ऐसी बीती रही
वाह बहुत भावमय रचना है बधाई।
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