"अश्को के घुंघरू " धडकनों के अनगिनत जुगनू कहाँ सब्र से काम लेते हैं चारो पहर खुद से उलझते हैं तेरे ही किस्से तमाम होते हैं लम्हा लम्हा तुझको दोहराना यही एक काम उल्फत का हवाओं के परो पर लिखे इनके पैगाम होते हो कभी बेदारियां खुद से कभी शिकवे शिकायत भी तेरी यादो की शबनम में मेरे अश्को के सब घुंघरू तबाह सुबह शाम होते हैं धडकनों के अनगिनत जुगनू कहाँ सब्र से काम लेते हैं