12/28/2009

"ख्वाबो की बरसाते बुनती हुं"


"ख्वाबो की बरसाते बुनती हुं"

रात के पहरों की सोगातें चुनती हुं
उलझे से ख्वाबो की बरसाते बुनती हुं
घुप अँधियारा , नींद उचटती ,
करवट करवट रूह तडपती,
दीवारों की गुप चुप आवाजे सुनती हुं
उलझे से ख्वाबो की बरसाते बुनती हुं

छत पर सरकते धुंधले साये
अनबुझ आक्रति का आभास दिलाये
भय के तीखे भालो की पद्चापे सुनती हुं
उलझे से ख्वाबो की बरसाते बुनती हुं


12/01/2009

" मन की ओस की गर्म बुँदे "

" मन की ओस की गर्म बुँदे "

एक लम्हा जुदा होने से पहले,

उँगलियों के पोरों के

आखिरी स्पर्श का

वही पे थम जाता

तेरा एहसास बन

मुझ में समा जाता
अपनी पूर्णता के साथ


मै कुछ देर और
जी लेती....

11/12/2009

मौन करवट बदलता नहीं

"मौन करवट बदलता नहीं "

शब्द कोई गीत बनकर
अधरों पे मचलता नही
सुर सरगम का साज कोई
जाने क्यूँ बजता नहीं.....

बाँध विचलित सब्र के
हिचकियों मे लुप्त हो गये ,
सिसकियों की दस्तक से भी,
द्वार पलकों का खुलता नहीं....

रीती हुई मन की गगरिया,
भाव शून्य हो गये,
खामोशी के आवरण मे ,
मौन करवट बदलता नहीं....

10/26/2009

"किस्मत का उपहास"


"किस्मत का उपहास"

हर बीता पल इतिहास रहा,
जीना तुझ बिन बनवास रहा
ये चाँद सितारे चमके जब जब
इनमे तेरा ही आभास रहा

चंचल हुई जब जब अभिलाषा,

तब प्रेम प्रीत का उल्लास रहा,
तेरी खातिर कण कण पुजा
पत्थरों में भगवन का वास रहा

विरह के नगमे गूंजे कभी
कभी सन्नाटो का साथ रहा
गुजरे दिन आये याद बहुत
"किस्मत" का कैसा उपहास रहा.




















http://swargvibha.freevar.com/oct2009/Gazal/list.html
http://vangmaypatrika.blogspot.com/2009/11/blog-post.html

10/16/2009

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं


"दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं"

झिलमिलाते दीपो की आभा से प्रकाशित , ये दीपावली आप सभी के घर में धन धान्य सुख समृद्धि और इश्वर के अनंत आर्शीवाद लेकर आये. दीप मल्लिका दीपावली -समस्त ब्लॉग परिवार के लिए सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए.."






10/05/2009

तुम चुपके से आ जाना


'तुम चुपके से आ जाना "

सूरज जब मद्धम पड़ जाये
और नभ पर लाली छा जाये
शीतल पवन का एक झोंका
तेरे बिखरे बालों को छु जाए
चंदा की थाली निखरी हो
तारे भी सो कर उठ जाए
चोखट की सांकल खामोशी से
निंदिया की आगोश में अलसाये
बादल के टुकड़े उमड़ घुमड़
द्वारपाल बन चोक्न्ने हो जाये
एकांत के झुरमुट में छुप कर
मै द्वार ह्रदय का खोलूंगी
तुम चुपके से आ जाना
झाँक के मेरी आँखों मे
एक पल में सदियाँ जी जाना

http://vangmaypatrika.blogspot.com/2009/10/blog-post.html

9/14/2009

"धरातल की थालियाँ"


"धरातल की थालियाँ"

नैनो के पलक द्वार पर
दस्तक देती रही सिसकियाँ
कांपते अधर बोल ना पाए
अंगारे बन धधकती रही हिचकियाँ

तेरे दर्श का मेघ आकर
प्रत्यक्ष में बरसा नहीं
शून्य के प्रचंड प्रहार से
बुझ गयी आशाओं की दिप्तियाँ

यथार्थ के धरातल की थालियाँ
शोर कर चोकन्नी हो गयी
मिलन ना तुमसे हो सका
बेडियों का सेतु बनी न कोई युक्तियाँ...

http://latestswargvibha.blog.co.in/2009/09/21/सीमा-गुप्ता-2/

8/31/2009

"याद तो फिर भी आओगे "


"याद तो फिर भी आओगे "

ह्रदय के जल थल पर अंकित
बस चित्र धूमिल कर जाओगे
याद तो फिर भी आओगे

हंसना रोना कोई गीत पुराना
सुर सरगम का साज बजाना
शब्द ताल ले जाओगे
याद तो फिर भी आओगे
सुनी राहे, दिल थाम के चलना
साथ बिताये पलो का छलना
सब खाली कर जाओगे
याद तो फिर भी आओगे

कांधे पर सर और स्पर्श का घेरा
रात के मुख पर चाँद का सेहरा
तुम विराना कर जाओगे
याद तो फिर भी आओगे


http://vangmaypatrika.blogspot.com/2009/09/blog-post_13.html

8/17/2009

जब कश्ती लेकर उतरोगे


"जब कश्ती लेकर उतरोगे "

झील के कोरे दामन पे,

चन्दा की उजली किरणों से

चाहत का अंश है मैंने लिख डाला

थाम के ऊँगली प्रियतम की

दुनिया की नज़रों से छुप कर

मुझे नभ के पार है उड़ जाना

तारो को झोली में भर कर

तेरे प्यार के बहते सागर में

दूर तलक है तर जाना

जब कश्ती लेकर उतरोगे

तुम झील के गहरे पानी में

इन उठती गिरती लहरों को

चुपके से अधरों से छु जाना

8/03/2009

"अंतर्मन"

"अंतर्मन"

अंतर्मन की ,

विवश व्यथित वेदनाएं

धूमिल हुई तुम्हे

भुलाने की सब चेष्टाएँ,

मौन ने फिर खंगाला

बीते लम्हों के अवशेषों को

खोज लाया

कुछ छलावे शब्दों के,

अश्कों पे टिकी ख्वाबों की नींव,

कुंठित हुए वादों का द्वंद ,

सुधबुध खोई अनुभूतियाँ ,

भ्रम के द्वार पर

पहरा देती सिसकियाँ..

आश्वासन की छटपटाहट

"और"

सजा दिए मानसपट की सतह पर

फ़िर विवश व्यथित वेदनाएं

धूमिल हुई तुम्हे

भुलाने की सब चेष्टाएँ,

7/06/2009

"तेरे जाने के बाद"

"तेरे जाने के बाद"

आँखों मे जलजले ,
मरुस्थल दिल की जमीन .
भावनाओ की साजिश ,
संभावनाओ का जलना .
धधकते अंगारों से पल,
दर्द का विकराल रूप ,
म्रत्यु से द्वंद ,
पथराये जिस्म का गलना . 
तेरे जाने के बाद......

http://latestswargvibha.blog.co.in/
http://vangmaypatrika.blogspot.com/2009/07/blog-post_20.html

6/22/2009

"मौन जब मुखरित हुआ "

"मौन जब मुखरित हुआ "

मौन जब मुखरित हुआ
और सुर मे आने लगा,
प्रियतम तेरी यादो का झरना
फुट फुट जाने लगा..

भूली बिसरी बातो के
सोए खंडहर सहसा जाग उठे,
पीडा के बोझ से दबा
हर पल लडखडाने लगा...

बिखरे हुए संबंधो की कडियाँ
छोर भी न कोई पा सकी,
अपनत्व का अस्तित्व
दर दर ठोकरे खाने लगा...
नैनो की शाखों पे
जम गये जो सुख कर
मृत अश्को मे प्राण
जैसे अंकुरित हो जाने लगा...

http://latestswargvibha.blog.co.in/

6/09/2009

"अपनों का साया "

" आज फिर आप सब के बीच अपने को देख पाना बडा ही सुखद एहसास है. आदरणीय ताऊ जी और अरविन्द मिश्र जी की दिल से आभारी हूँ जिन्होंने मेरी अस्वस्थता को अपने ब्लॉग पर स्थान देकर मेरे लिए इस ब्लॉग परिवार के हर सदस्य से मंगल कामनाओ का एक वीशाल भंडार अर्जित किया. उन्ही दुआओं और शुभकामनाओ का असर है की अब मै कुछ हद तक ठीक होकर फिर अपने इस ब्लॉग परिवार मे आप सब के साथ अपने को देख पा रही हूँ. हैरान हूँ इतना अपनापन और स्नेह पाकर इतने बडे ब्लॉग परिवार से...लगा ही नहीं की लगभग एक महीने से ब्लॉग से दूर हूँ.....कितने ही ब्लॉग के वरिष्ट सदस्य ईमेल, फ़ोन , और अपनी टिप्पणीयों के द्वारा मुझ से मेरे इस कठिन समय मे जुड़े रहे और अपनेपन का एहसास दिलाते रहे. आप सब के हर शब्द , हर दुआ, हर शुभकामनाओ की दिल से आभारी हूँ. उम्मीद है आने वाले और दो चार दिनों मे ब्लॉग पर नियमित हो जाउंगी. इस ब्लॉग परिवार का शुक्रिया कहना बहुत छोटा शब्द है .....ये कुछ पंक्तियाँ आप सब के लिए आभार सहित..."

"अपनों का साया "

जीवन मे अब क्या मै मांगु,
बिन मांगे सब कुछ पाया है,
एकांत रहे जब कुछ दिन मेरे,
इर्द गिर्द देखा अपनों का साया है...

आभारी हूँ मै हर उस दिल की,
कठिन समय में जिसने साथ नीभाया है
स्नेह आशीष और दुआओ का ...
वीशाल भंडार मुझ पर बरसाया है...

कोई जान नहीं पहचान नहीं,
सबसे मिलने के आसार नहीं..
मंगल कामनाओ मे मगर...
सबने एक जुट होकर शीश नवाया है ...

एकांत रहे जब कुछ दिन मेरे,
इर्द गिर्द देखा अपनों का साया है...

(With Regards)

5/11/2009

तड़पने की दरखास्त

"तड़पने की दरखास्त"

कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है

विचलित मन ने बेबस हो
प्रतीक्षा की बिखरी
किरचों को समेट

बीते लम्हों से कुछ बात की है..
यादो के गलियारे से निकल
ख्वाइशों के अधूरे प्रतिबिम्बों ने
रुसवा हो उपहास की बरसात की है

धुली शाम के सौन्दर्य को
दरकिनार कर उड़ते धुल के
चंचल गुब्बार ने दायरों को लाँघ
दिन मे ही रात की है


http://swargvibha.0fees.net/july2009/Kavita/tarapne%20ki.html

5/02/2009

"आदि ”



आदित्य रंजन (आदि ) के पहले जन्म दिवस पर असीम स्नेह प्यार , आशीर्वाद और ढेरो दुआओं के साथ ये कुछ पंक्तियाँ आज आदि के नाम....

"आदि ”

हम सब की दुआओं का आदि
तुम कुछ ऐसे फल पाना
इश्वर के हर आशीर्वाद का
तुएक हिस्सा बन जाना

थाम के ऊँगली बाबा की
और माँ के आंचल की छाया में
नन्हे नन्हे पग रख कर
जीवन पथ पर आगे बढ़ते जाना

कोई कष्ट तुम्हे ना छु पाए
कोई आंच भी तुम पर ना आये
खुशियों के मोती बिखरे हो
जिस दिशा में भी तुम मुड जाना

ये स्नेह प्यार और आशीर्वाद
तुम पर सबने बरसाया है
एक भोली मुस्कान से तुम
यूँही सब के दिल को भरमाना

हर कामना इच्छा और लक्ष्य
सब पुर्ण तुम्हारे हो जाये
देव मंदिर में आरती की
बस प्रार्थना तुम बन जाना

(स्नेह सहित)

5/01/2009

"बरसात हो"





"बरसात हो"

"काश" आज फ़िर ऐसी झूम के बरसात हो ,
उनसे फ़िर एक हसीन दिलकश मुलाकात हो ,
इस कदर मिलें तड़प के दो दिल आज की,
धरकनो पे न कोई अब इख्त्यार हो …..

एक एक बूंद से सजी सारी कायनात हो ,
आगोश मे फ़िर मेरी शरीके -हयात हो ,
खामोश लबों की दास्ताँ मौसम भी सुने ,
निगाहों से मोहब्बत ऐ -सूरते -बयाँ हो


http://swargvibha.freezoka.com/kavita/all%20kavita/Seema%20Gupta/barsaat%20ho.html (http://www.swargvibha.tk/)

4/27/2009

"बारिशों ने घर बना लिए "

"बारिशों ने घर बना लिए "


यादे तेरी अश्रुविहल हो
असहाय कर गई
आँखों मे कितनी
बारिशों ने घर बना लिए

गूंजने लगा ये मौन
तुझको पुकारने लगा
व्यथित हो सन्नाटे ने भी
सुर से सुर मिला लिए

बिखरने लगे क्षण प्रतीक्षा के
अधैर्य हो गये
टूटती सांसो ने
दुआओं मे तेरे ही
हर्फ सजा लिए ............

http://swargvibha.0fees.net/june2009/Kavita/barish%20ko.htm

4/20/2009

निरुत्तर लौटे संदेश सभी

" निरुत्तर लौटे संदेश सभी "

सुनी लगती है ये धरती...
अगन ये नभ बरसाता है
तुमको खोजे कण कण मे
ये मन उद्वेलित हो जाता है...

अरमानो के पंख लगा
एक स्पर्श तुम्हारा पाने कों
सेंध लगा रस्मो की दीवारों मे
दिल बैरागी हो जाता है.....
हर आस सुलगने लगती है
उम्मीद बोराई जाती है
ये कसक है या दीवानापन
सुध बुध को समझ ना आता है...

पानी की बूंदों से बाँचे
और पवन के रुख पे सजों डाले
निरुत्तर लौटे वो संदेश सभी
हर प्रयास विफल हो जाता है...

4/13/2009

"वक़्त की लाचारी"

"वक़्त की लाचारी"

हाँ वो लाचार वक़्त हूँ मैं
छटपटाता हुआ बदहवास सा
ठहरा हूँ मै तब से
दो दिलो के वादों का
साक्ष्य बना था जब से
व्याकुल हो विरह में
अश्कों में डुबे सिसकते
एक दिल न कहा था
" जब अंत समय आये और
ये सांसे बोझ बन जाये
एक बार मुझसे कह देना
मै भी साथ चलूँगा ..."

उस रिश्ते पर मेरा ही
कफ़न पड़ गया शायद
अब मै गुजर जाना चाहता हूँ
मुक्त हो जाना चाहता हूँ
साक्ष्य के उस बोझ से
काश मेरे सीने से कोई
उस लम्हे के अंश को
चीर के जुदा कर दे
हाँ वही लाचार वक़्त हूँ मै .....

4/06/2009

"कैसे जान पाओगे"


"कैसे जान पाओगे"

खामोश खडे हैं स्वर ये सारे
शब्द बेबस हैं नजर चुराने को
ऑंखें भी प्रतिज्ञाबद्ध हो रही
अश्को को कोरो तले छुपाने को

भाव भंगिमा ने श्रृंगार कर लिया
दाग-ऐ-दर्द मिटाने को
हरकते भी चंचल हो गयी कुछ

झूठी उमंग लहर दर्शाने को

बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है

जख्म कौन सा सिल जाने को ?..........


http://swargvibha.freevar.com/may2009/Kavita/seemagupta.html

3/30/2009

अश्कों का दीया

"अश्कों का दीया"

रात गमगीन रही
दिल वीरान रहा
कितना खामोश ये आसमान रहा
सिसकियों की सरगोशियाँ उफ़
"अश्कों का दीया "
अंधेरों मे मेहरबान रहा

http://vangmaypatrika.blogspot.com/

3/23/2009

'मधुर एहसास "




"मधुर एहसास "

चंचल मन के कोने मे
मधुर एहसास
ने ली जब अंगडाई,

रेशमी जज्बात का आँचल
पर फैलाये देखो फलक फलक...
खामोशी के बिखरे ढेरो पर
यादों के स्वर्णिम प्याले से
कुछ लम्हे जाएँ छलक छलक...

अरमानो के साये से उलझे
नाजों से इतराते ख़्वाबों को
चुन ले चुपके से पलक पलक...
ये मोर पपीहा और कोयल
सावन में भीगी मस्त पवन
रास्ता देखे कब तलक तलक...

रात के लहराते पर्दों पे
नभ से चाँद की अठखेली
छुप जाये देके झलक झलक...

3/16/2009

"वादों के पुष्प"

"वादों के पुष्प"

बिखेरता रहा वादों के पुष्प वो
मै आँचल यकीन का बिछाये
उन्हें समेटती रही....

अपने स्पर्श की नमी से वो
उन पुष्पों को जिलाता रहा
मै मासूम शिशु की तरह
उन्हें सहेजती रही......

हवाओं को रंगता रहा वो

इन्द्रधनुषी ख्वाबो की तुलिका से
मै बंद पलकों मे
उन्हें बिखेरती रही ....

आज सभी वादों का वजूद
अपना आस्तित्व खोने लगा .......
मै अवाक टूटते मिटते हुए
उन्हें देखती रही........

http://swargvibha.0fees.net/july2009/Kavita/seema%20gupta.html

3/09/2009

"होली की शुभकामनाये "


"होली की शुभकामनाये "

रंग उडाये पिचकारी
रंग से रंग जाये दुनिया सारी
होली के रंग
आपके जीवन को रंग दे,
ये शुभकामनाये है हमारी.....

पिचकारी की धार
गुलाल की बौछार
अपनों का प्यार यही है
होली का त्यौहार