10/31/2008

"दिल"


"दिल"
मुहब्बत से रहता है सरशार ये दिल,
सुबह शाम करता है बस प्यार ये दिल.
कहाँ खो गया ख़ुद को अब ढूँढता है,
कहीं भी नहीं उसके आसार-ऐ-दिल.
अजब कर दिया है मोहब्बत ने जादू,
सभी डाल बैठा है हथियार ये दिल.
यही कह रहा है हर बार ये दिल,
बस प्यार-ऐ-दिल बस प्यार-ये दिल.
युगों से तड़पता है उसके लिये ही,
मुहब्बत में जिसकी है बीमार ये दिल
उसकी है यादों में खोया हुआ वो,
ज़रा सोचो है कितना बेकरार ये दिल.
अब अपने खतों में यही लिख रहा है,
तुम्हारा बस तुम्हारा कर्जदार ये दिल

10/30/2008

तेरा ख्याल

"तेरा ख्याल"

तेरा ख्याल था जेहन मे या नाम लबों पर,
आँखों की नमी को तब्दील मुस्कान कर गयी

10/24/2008

"दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं"












"दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं"


दीप मल्लिका दीपावली - आपके परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली एवं नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं



















10/22/2008

ख्वाब








''ख्वाब"

बिलख्ती आँखों मे बसे ख्वाब कुछ यूँ टिमटिमाते हैं,
गोया कांच के टुकड़े हैं जो आंख मे चुभे जाते हैं...

10/20/2008

मौत की रफ़्तार






"मौत की रफ़्तार"

आज कुछ गिर के टूट के चटक गया शायद ..

एहसास की खामोशी ऐसे क्यूँ कम्पकपाने लगी ..

ऑंखें बोजिल , रूह तन्हा , बेजान सा जिस्म ..

वीरानो की दरारों से कैसी आवाजें लगी...

दीवारों दर के जरोखे मे कोई दबिश हुई ...

यूँ लगा मौत की रफ़्तार दबे पावँ आने लगी...


http://hindivani.blogspot.com/2008/10/blog-post_23.html

10/13/2008

विरह का रंग




"विरह का रंग"


आँखों मे तपीश और रूह की जलन,

बोजिल आहें , खामोशी की चुभन,

सिमटी ख्वाईश , सांसों से घुटन ,

जिन्दा लाशों पे वक्त का कफ़न,

कितना सुंदर ये विरह का रंग


(विरह का क्या रंग होता है यह मैं नही जानती . लेकिन इतना ज़रूर है की यह रंग -हीन भी नही होता और यह रंग आँखें नही दिल देखता है)
http://hindivani.blogspot.com/2008/10/blog-post_23.html

10/11/2008

झूमती कविता


'झूमती कविता'

बड़ी झूमती कविता मेरे आगोश में आयी है,
शायद तेरे साए से यह धूप चुरा लाई है..

हम तेरे तसव्वुर में दिन रात ही रहते हैं,
कातिल है अदाएं तेरी कातिल ये अंगडाई है..

सूरज जो उगा दिल का, दिन मुझमें उतर आया,
तुम साथ ही थे लेकिन देखा मेरी परछाईं है..

साथ मेरे रहने है कोई चला आया ,
तन्हा कहाँ अब हम पास दिलकश तन्हाई है..

खामोशी से सहना है तूफ़ान जो चला आया,
दिल टूटा अगर टूटा , कहने मे रुसवाई है..

अब रात का अंधियारा छाने को उभर आया,
एहसास हुआ पुरवा तुमेह वापस ले आयी है


http://rachanakar.blogspot.com/2008/11/blog-post_25.html

10/10/2008

"वहीं पर तुम जहाँ हो काग़जों पर"



"वहीं पर तुम जहाँ हो काग़जों पर"


वहीं पर तुम जहाँ हो काग़जों पर,
वहीं मैं आजकल रहने लगा हूँ .......

जिगर के दिल के हर एक दर्द से मैं,
रवां दरिया सा इक बहने लगा हूँ .......

सुना दी आईने ने दिल की बातें,
तुम्हे मैं आजकल पहने लगा हूँ .........

तुम्हारे साथ हूँ जैसे अज़ल से,
तुम्हारी बात मैं कहने लगा हूँ........

सुनी सीमा हमारे दिल की बातें ???
तुम्हीं से तो मैं सभी कहने लगा हूँ..........



http://swargvibha.freezoka.com/kavita/all%20kavita/Seema%20Gupta/lagu%20hai.html (http://www.swargvibha.tk/)
http://vangmaypatrika.blogspot.com/2008/09/blog-post_15.html

10/07/2008

'खैरात'



'खैरात'


कुछ ऐसे बदल गये हैं वो हालात की तरह,
बददुआ भी देतें हैं, तो खैरात की तरह .....

10/03/2008

"सवाल"

"सवाल"

जवाब न बना , रहा एक उलझा सा सवाल बनके ,
बहता रहा मुझमे वो हर लम्हा दर्द-ऐ-ख्याल बनके,
आने से पहले ही जो गुजर जाए बिन कुछ कहे,
वो रहा ऐसे गुजरे वक्त की एक मिसाल बनके

10/01/2008

'दो फूल'


'दो फूल'

मेरी कब्र पे दो फूल रोज आकर चढाते हैं वो,
हाय , इस कदर क्यों मुझे तडपाते हैं वो.
मेरे हाथों को छुना भी मुनासिब न समझा,
आज मेरी मजार से लिपट के आंसू बहाते हैं वो.
हाले यार समझ ना सके अब तलक जिनका,
मेरे दिल पे सर रख कर हाले दिल सुनाते हैं वो.
जिक्र चलता है जब जब मोहब्बत का जमाने मे,
मेरा नाम अपने लब पर लाकर बुदबुदाते हैं वो.
मुझसे मिलने मे बदनामी का डर था जिनको,
छोड़ कर हया मेरी कब्र पे दौडे चले आतें हैं वो.
उनके गम का सबब कोई जो पूछे उनसे ,
दुनिया को मुझे अपना आशिक बतातें हैं वो,
कहे जो उनसे कोई पहने शादी का जोडा वो,
मेरी मिट्टी से मांग अपनी सजाते है वो.
मेरी कब्र पे दो फूल रोज आकर चढाते हैं वो,
हाय , इस कदर क्यों मुझे तडपते हैं वो