9/21/2010

"हाँ तुम मेरी धडकनों में महफूज रह सकती हो"

"हाँ तुम मेरी धडकनों में महफूज रह सकती हो"

"आदरणीय सलीम प्रदीप जी की पुस्तक " महबूबा से महबूब तक " तक पढने का मौका मिला , और उस पर अपने कुछ विचार व्यक्त किये, जिन्हें "युध्भूमि" के ताजा अंक " उफ़! ये मोहब्बत " में स्थान मिला, अपने इस गौरव और सम्मान को आप सभी से बाँट रही हूँ"