11/26/2008

एक शाम और ढली




"एक शाम और ढली"

राह पे टकटकी लगाये ..
अपने उदास आंचल मे
सीली हवा के झोकें ,
धूप मे सीके कुछ पल ,
सूरज की मद्धम पडती किरणे,
रंग बदलते नभ की लाली ,
सूनेपन का कोहरा ,
मौन की बदहवासी ,
तृष्णा की व्याकुलता,
अलसाई पडती सांसों से ..
उल्जती खीजती ,
तेरे आहट की उम्मीद ,
समेटे एक शाम और ढली ....

http://hindivangmay1.blogspot.com/2008/11/blog-post_26.html

32 comments:

Anonymous said...

शाम ढली। बेचारी थी बड़ी भली। :)

सुन्दर पोस्ट!

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

Seemaji,
Ek Sham aur dhali..bahut sundar panktiyan han.padhne se lagta ha ki shbdon se khelne kee kala men aap mahir han.Bhavnaen koi bhee hon unhen shbdon men bandhna ap bakhoobee jantee han.aise hee likhtee rahiye.
Hemant Kumar

Udan Tashtari said...

सीली हवा के झोकें ,
धुप मे सिके कुछ पल ,
सूरज की मद्धम पड़ती किरणें,
रंग बदलते नभ की लाली ,

-वाह, बहुत खूब बात कही..कैसे कैसे शाम ढली!!

ताऊ रामपुरिया said...

एक शाम और ढली ....

खूबसूरत शब्द संयोजन, शीर्षक के अनुरूप
एक एक शब्द मोती की तरह इस रचना में पिरोया गया है !
लाजवाब ! शुभकामनाएं !

Anil Pusadkar said...

सुन्दर पोस्ट, हमेशा की तरह.

Anonymous said...

WoW

This is You, at your BEST
(I thought sitting on a evening-beach & happening all this to me)

Rakesh Kaushik said...

एक एक शब्द मोती की तरह इस रचना में पिरोया गया है खूबसूरत शब्द संयोजन,लाजवाब,हमेशा की तरह सुन्दर.



Rakesh Kaushik

Manuj Mehta said...

वाह बहुत खूब लिखा है आपने.

नमस्कार, कैसी हैं आप? उम्मीद है की आप स्वस्थ एवं कुशल होंगे.
मैं कुछ दिनों के लिए गोवा गया हुआ था, इसलिए कुछ समय के लिए ब्लाग जगत से कट गया था. आब नियामत रूप से आता रहूँगा.

संगीता-जीवन सफ़र said...

सुंदर भाव अभिव्यक्ति!बधाई!

Anonymous said...

Seema,
arsay se inteazaar ko bardasht kar gaye...
naa jane kis ummeed pe aaye they tere paas...
dil ka sukoon jee ka sahara tha tere paas...
llekin..
phir se udas kar gayee baatein teri hamein..
aur shaam leke aayi andhere hamaare paas..
yaadon ki shammein phir se jagaane lugee humein

makrand said...

good composition
regards

मीत said...

इस शाम का दर्द नज़र आता है...
सुंदर
---मीत

डॉ .अनुराग said...

तेरे आहट की उम्मीद ,
समेटे एक शाम और ढली ..

bahut khoob......

बवाल said...

एक शाम और ढली. अहा ! कितनी रूहानियत से व्यक्त कर दी आपने भावनाएँ सीमाजी.
काश ये शाम ढलने के बजाय खिल जाए !

Dr. Neha Srivastav said...

बहुत ही सुंदर रचना है लाजवाब

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

rachna hamesha ki tarah sundar, lekin kahin-kahin maatraon me trutian hain, jinhen sudhar den to aur bhi acchcha ho, mujhe lagta hai ki yeh galtian sambhavt: kisi hindi tool ke kaaran hain, kripya ise theek awashya karen.

Mukesh Garg said...

bahut hi sunder bhaw


ati sunder rachna hai


badhiyan

भूतनाथ said...

सुन्दरतम !आपमें बैठे शायर को नमन ! धन्यवाद !

admin said...

आपकी कविता में मोहब्‍बत की रूमानियत और जमाने की आपाधापी दोनों को बडी खूबसूरती से सजा दिया गया है। बधाई।

admin said...

ढलती शाम का सुन्‍दर चित्रण।

Unknown said...

sundar..atisundar....
ur poem and ur selected picture....very goood.........

Gyan Dutt Pandey said...

आप तो एक शाम गिन ले रही हैं। यहां मोनोटोनी में हफ्ते दर हफ्ते निकल जाते हैं! :(

Arvind Mishra said...

मुझे इसमे भी आशा की किरणे दीख रही हैं -भवितव्यता से मिलन की एक बेकसी !

मोहन वशिष्‍ठ said...

सीमाजी कौन कौन से शब्‍द की तारीफ करूं कविता तो दूर की बात है बस यही कहूंगा

चांद को निहार रहा है चकोर

जाए कैसे
रास्‍ता है कठोर
बस दीदार कर लिया

पा लिया उसे
हो गया भाव भिवोर

मोहन वशिष्‍ठ said...

ढलती हुई शाम का अति उत्‍तम चित्रण।

अविनाश said...

राह पे टकटकी लगाये ..
अपने उदास आंचल मे
सिली हवा के झोकें ,
धुप मे सीके कुछ पल ,
सुंदर भाव अभिव्यक्ति!

"अर्श" said...

"एक शाम और ढली"

ye line hi bahot hai puri kavita ko kahane ke liye ,.... bahot hi badhiya kavita likha hai aapne ... dhero badhai apko...

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

seema jee evening dalegi tabhee to savera hoga. kaha gya hai " koi aisi rat nahi hai jiska hota nahi savera" narayan narayan

राज भाटिय़ा said...

सीमा जी....राह पे टकटकी लगाये ..आंके पत्थरा जाती है कई बार, कई बार.
आप की कविता बहुत ही सिली सिली सी लगी ,जेसे कोई इन्तजार मै आंखे बिछाये बेठा हो.
धन्यवाद

प्रदीप मानोरिया said...

तृष्णा की व्याकुलता,
अलसाई पडती सांसों से ..
उल्जती खीजती ,
तेरे आहट की उम्मीद ,
समेटे एक शाम और ढली ....
हमेशा की तरह सुंदर

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

aur subah phir aayegi.......!!

अभिन्न said...

बहुत ही हृदय स्पर्शी रचना
एक शाम और ढली .....लेकिन सूर्य
फिर से उग आया है देखो न ...
आपके शब्द शिल्प का कमाल .....एक एक पंक्ति ऐसे लगती मानो सुमित्रानंदन पन्त,या जय शंकर प्रसाद जी की रचनाओं को पढ़ रहे हो.