"वीरानो मे"
खामोश से वीरानो मे,
साया पनाह ढूंढा करे,
गुमसुम सी राह न जाने,
किन कदमो का निशां ढूंढा करे..........
लम्हा लम्हा परेशान,
दर्द की झनझनाहट से,
आसरा किसकी गर्म हथेली का,
रूह बेजां ढूंढा करे..........
सिमटी सकुचाई सी रात,
जख्म लिए दोनों हाथ,
दर्द-ऐ-जीगर सजाने को,
किसका मकां ढूंढा करें ...........
सहम के जर्द हुई जाती ,
गोया सिहरन की भी रगें ,
थरथराते जिस्म मे गुनगुनाहट,
सांसें बेजुबां ढूंढा करें................
http://rachanakar.blogspot.com/2008/11/blog-post_25.html
36 comments:
लम्हा लम्हा परेशान, दर्द की झनझनाहट से,
आसरा किसकी गर्म हथेली का, रूह बेजां ढूंढा करे...
बहुत प्रभावशाली!
Seema,
Kisi kee talaash thee wo mil gaya.
talaash ki justujoo ki mushkil se niklay to khud ko swarg ke dwaar par khade paaya .wo mil gaya.
uska haath thaame swarg mein pravesh kar gaye. lekin usko jana tha...aur wo chala gaya...uske jaane say ehsaas hua talaash khatm huee to zindigi ka khaalipan nayee tamannaon se bhar gaya. ab sirf wo naheen jiski talaaash thee balki uska saath hi chahiyay...........swarg chaahiye jo uske saath mein nihit hai.
"tum aaye they to bahaaron ki baat hoti thee
zubaan pe chand sitaron ki baat hoti thee
gaye jo aake tammanaayen saath chod gaye
naheen milay they sahaaron ki baat hoti thee"
लम्हा लम्हा परेशान, दर्द की झनझनाहट से,
आसरा किसकी गर्म हथेली का, बहुत प्रभावशाली!
it's nice feeling
Rakesh kaushik
बहुत दिनों बाद आपको पढने का मौका मिल रहा है। और हमेशा की तरह इस बार भी बस इतना ही कहना है,सुन्दर रचना।
Mano, Rohani Kashmakash ko, tumne ek sharir de diya ho!........
सहम के जर्द हुई जाती ,
गोया सिहरन की भी रगें ,
थरथराते जिस्म मे गुनगुनाहट,
रूमानियत की श्रेष्ठ
रचनाओं में इसे शामिल किया जाता है
अच्छी रचना के लिए बधाइयां
खामोश से वीरानो मे,
साया पनाह ढूंढा करे,
गुमसुम सी राह न जाने,
किन कदमो का निशां ढूंढा करे..........
बहुत ख़ूब...
खामोश से वीरानो मे,
साया पनाह ढूंढा करे,
गुमसुम सी राह न जाने,
बहुत भावप्रवण रचना ! शुभकामनाएं !
बहुत लाजवाब रचना !
पढ़ने और टिप्पणी करने को मजबूर करने वाली रचना ही तो अच्छी कही जाती है। आपकी यह रचना अच्छी ही नही बहुत अच्छी है। अब अगली रचना का इंतजार।
गुमसुम सी राह न जाने,
किन कदमो का निशां ढूंढा करे..........
आपकी इस लाइन ने आँखों में आंसूं ला दिए...
लग रहा है जैसे मेरे लिए ही लिखी गयी है...
शुक्रिया...
आसरा किसकी गर्म हथेली का,
रूह बेजां ढूंढा करे..........
सिमटी सकुचाई सी रात,
जख्म लिए दोनों हाथ,
दर्द-ऐ-जीगर सजाने को,
किसका मकां ढूंढा करें ...........
सहम के जर्द हुई जाती ,
गोया सिहरन की भी रगें ,
थरथराते जिस्म मे गुनगुनाहट,
सांसें बेजुबां ढूंढा करें............
सीमा जी ....आज जैसा लिखेगी तो सच में बात कुछ ओर हो जायेगी...बहुत खूब.
सुंदर रचना. लगता है दीवाली क़ी व्यस्तता रही है. आभार.
वीराने खामोश हैं मगर ज़िन्दगी के लिए पनाह तो हैं
रूह बेजां ढूंढेगी मकां ,क़दमों के निशाँ से राह तो हैं
हमेशा की ही तरह-बेहद उम्दा!!
सीमा जी आपकी लगभग सभी रचनाएं संवेदना के कई स्तरों को गहरे संस्पर्श करती हैं बल्कि वे कहीं कहीं तो मिस्टीक अनुभूति को भी कुरेदने /दुलराने लगती हैं तब डर लगने लगता है -लगता है कहीं आपकी बेखुदी /बेहोशी संक्रामकता में न तब्दील होकर हमें भी अपने आगोश में न ले ले !
आप सचमुच यूनीक हैं !
सिमटी सकुचाई सी रात,
जख्म लिए दोनों हाथ,
दर्द-ऐ-जीगर सजाने को,
किसका मकां ढूंढा करें
बहोत खूब सीमा जी बहोत ही सुंदर लिखा है आपने.. ढेरो बधाई आपको...
हमेशा की तरह...लाजवाब.
नीरज
aapke pass itna ekelapan, tanhai,virag, virah vrdna aati kahan se hai.or fir inse sabdon kee mala banana, us par ek ek photo se char chand lagana, shayd chand bhee jalta hoga in sab combination se
kisi ne kaha tha
"shokhiyon me ghola jaye fulon ka sabab, usme fir milai jaye thodi se sarab, hoga fir nasha jo tayar wo payar hai
main to janta nahi ye bat kitani sahi hai
govind goyal
हम हर जगह क्या-क्या ढूंढा करें !!
हम हर जगह क्या-क्या ढूंढा करें....
किसी के भी पास में सहारा ढूँढा करें !!
मालुम है कि ख्वाब टूट जाते हैं मगर ,
दिन-रात कोई-न-कोई ख्वाब सब बुना करें !!
अच्छा जो भी है अपनी जगह वो पायेगा ,
अच्छा हो कि हम अच्छों को चुना करें !!
आदमियों के बीच भी वीराना लगता है ,
बेहतर हो कि हम तनहा ही घूमा करें !!
सबसे बड़ा खुदा है...और खुदा ही रहेगा ,
क्यों बन्दों में हम बड़प्पन के गुण ढूंढा करें !!
सद्गुण ही काम आयेंगे तुमको ऐ "गाफिल" ,
जो गुण हम इक इंसान में हरदम ढूंढा करें !!
बहुत उम्दा लिखा है इस बार आपने, भई वाह्!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !
कोई सानी ही नहीं है सीमाजी आपका, बापरे क्या सुखन है ? क्या लहजा है ? ओफ्फोह ! बहुत खूब ! बहुत बेहतर !
सांसें बेजुबां ढूंढा करें................
बेहतरीन रचना...भावप्रवण..!!
सीमा जी आप की कलम ओर चित्रो का कया कहना बस दिल से खुदबखुद तारीफ़ निकलती है.
धन्यवाद
Bahut badiya.
बहुत खूब, मासाअल्लाह।
सहम के जर्द हुई जाती ,
गोया सिहरन की भी रगें ,
थरथराते जिस्म मे गुनगुनाहट,
आपकी रचनाओं में शब्दों का जो खिलंदडपन है, वह अदभुत है। बधाई।
bahut sundar v prabhai rachna hai
अच्छा लगा इस ब्लौग पर आकर
सुंदर रचनायें और मनभावन सजावट
maaf karna aapko jitna padta hui ....utna hi sochta hui...kya dunia main shif dard ki bacha hai ....mujhe nahi lagta....
why dont u try to write a happy moment of ur life its good...4 u and ur wellwishar....its just my thought ...
i always believes tht life is toooooo short so keep Yenjoy !! in my style....
सीमा जी आपकी हर रचना में कविता में यहां तक कि आपके हर एक शब्द में जान होती है तारीफ करें तो किस की करें सब कुछ तो काबिलेतारीफ होता है वाकई लाजवाब रचना
very touching....सांसें बेजुबां ढूंढा करें................ i like it :)
ये कवीता मूझपर अभी बैठ रहा है।
जब से नैनीताल(उधम सीह नगर) से घूम के आया हूं तब से।
बहुत बढीया लीखती हैं कभी कभी कोई कविता कीसी के उप्पर एक दम फीट हो जाता है
आसरा किसकी गर्म हथेली का,
रूह बेजां ढूंढा करे..........
wonderful,beautiful ......a perfect verse...
bahut hi kuhbsurat
sansee bejuba dundha kare
bahii waha
ati sunder
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