"भ्रम"
कल्पना की सतह पर आकर थमा,
अनजान सा किसका चेहरा है.....
शब्जाल से बुनकर बेजुबान सा नाम,
क्यूँ लबों पे आकर ठहरा है....
एहसास के अंगारे फ़िर जलने लगे,
उदासी की चांदनी ने किया घुप अँधेरा है....
क्षतिज के पार तक नज़र दौड़ आई,
किसके आभास का छाया कोहरा है......
वक्त की देहलीज पर आस गली,
कितना बेहरम दर्द का पहरा है.....
साँस थम थम कर चीत्कार कर रही,
साँस थम थम कर चीत्कार कर रही,
कोई नही.. कोई नही ..ये भ्रम बस तेरा है.....
http://vangmaypatrika.blogspot.com/2008/11/blog-post_8266.html
25 comments:
क्षतिज के पार तक नज़र दौड़ आई,
किसके आभास का छाया कोहरा है......
अक्सर ये भी जिन्दगी का हिस्सा होता है ! सशक्त अभिव्यक्ति ! शुभकामनाएं !
..ये भ्रम बस तेरा है.....
great again
regards
बहुत खूब !
Kya baat hai vah vah Seemajee bahut umda ghazal kahee.
निहायत खूबसूरती से सफलतापूर्वक भाव व्यक्त किए हैं आपने ! धन्यवाद !
बहुत खूब लिखा आपने.. पर यह भ्रम जिन्दगी के लिये जरूरी है... और असल में होता क्या है
जिनके आने की उम्मीदों पर गुजारी कितनी रातें
सामने ही से जब वो गुजरे तो बुलाया न गया
kya khoob khaka kheencha hai aapne
एहसास के अंगारे फ़िर जलने लगे,
उदासी की चांदनी ने किया घुप अँधेरा है....
क्षतिज के पार तक नज़र दौड़ आई,
किसके आभास का छाया कोहरा है......
बहुत ख़ूब...
Seema,
shabdjaal mein khayaalat ko phansaakar jaise jazbaat ke smandar mein whale machlee ko pakad lene kee kashmakash hai aur uos se logon ke dilo dimagh ko janjhlor kar rakh dene ki kalaatmak shakti kaa adbhut pradarshan kiya hai aap ne
ये भ्रम बस तेरा है.....
बहुत ख़ूब...
गहरा दिल में उतर गया आपकी कविता में बसा 'एहसास'...
कोई नही.. कोई नही ..ये भ्रम बस तेरा है.....
bahut achhe ...
बहुत बढीया कविता,
ये भ्रम कीसका है
महा महा अच्छा कवीता।
संजीवनी सी कविता ..
कोई नही.. कोई नही ..ये भ्रम बस तेरा है.....
बेहद उम्दा है आप की ग़ज़ल .बहुत खूब आगे भी सिलसिला बस जारी रहे
पढ़कर सहसा जिस कवि की ये पन्क्ति याद आ गयी -छाया मत छूना माह होगा दुःख दूना मन -सब भ्रम ही तो है छाया मात्र !
एहसास के अंगारे फ़िर जलने लगे,
उदासी की चांदनी ने किया घुप अँधेरा है....
क्षतिज के पार तक नज़र दौड़ आई,
किसके आभास का छाया कोहरा है......
behatrin rachana ke liye aapko badhai seema ji
वक्त की देहलीज पर आस गली,
कितना बेहरम दर्द का पहरा है.....
बहोत सुंदर रचना सीमा जी बहोत खूब ये लाइन शायद रचना की जान है ... आपको ढेरो बधाई ,स्वीकारें ..
हमेशा की तरह...लाजवाब...
नीरज
सीमा जी,
सच कहा आपने कि
साँस थम थम कर चीत्कार कर रही,
कोई नही.. कोई नही ..ये भ्रम बस तेरा है.....
इन्सान के अहम् का भ्रम कब टूटेगा ?
चीत्कार कर उसे कौन बताएगा ?
ऐसा भय कौन पैदा करेगा ?
चन्द्र मोहन गुप्त
बहुत अच्छा िलखा है आपने । किवता में भाव की बहुत संुदर अिभव्यिक्त है ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
एक खुब सुरत भ्रम बना रहै....
धन्यवाद सुंदर गजल के लिये
माफी चाहूँगा मगर मेरे मन में प्रेरणा हुई कि ;
कल्पना की सतह पर थमा,
शब्जाल सा किसका चेहरा है.....
अनजान सा बेजुबान सा नाम,
क्यूँ लबों पे आकर ठहरा है....
एहसास के अंगारे फ़िर जलने लगे,
चांदनी की उदासी ने किया सवेरा है
क्षतिज के पार तक नज़र दौड़ आई,
किसके आभास का छाया कोहरा है......
वक्त की देहलीज पर आस गली,
कितना बेहरम दर्द का पहरा है.....
साँस थम थम कर चीत्कार कर रही,
कोई नही.. कोई नही ..ये भ्रम बस तेरा है.....
बधाई सीमा जी
इस खूबसूरत भ्रम के लिये
शुभकामनाएं
एहसास कितने खरे खरे
भ्रम से बहुत परे परे
Post a Comment