11/07/2008

"भ्रम"



"भ्रम"

कल्पना की सतह पर आकर थमा,
अनजान सा किसका चेहरा है.....
शब्जाल से बुनकर बेजुबान सा नाम,
क्यूँ लबों पे आकर ठहरा है....
एहसास के अंगारे फ़िर जलने लगे,
उदासी की चांदनी ने किया घुप अँधेरा है....
क्षतिज के पार तक नज़र दौड़ आई,
किसके आभास का छाया कोहरा है......
वक्त की देहलीज पर आस गली,
कितना बेहरम दर्द का पहरा है.....
साँस थम थम कर चीत्कार कर रही,
कोई नही.. कोई नही ..ये भ्रम बस तेरा है.....

http://vangmaypatrika.blogspot.com/2008/11/blog-post_8266.html

25 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

क्षतिज के पार तक नज़र दौड़ आई,
किसके आभास का छाया कोहरा है......
अक्सर ये भी जिन्दगी का हिस्सा होता है ! सशक्त अभिव्यक्ति ! शुभकामनाएं !

makrand said...

..ये भ्रम बस तेरा है.....

great again

regards

दीपक "तिवारी साहब" said...

बहुत खूब !

बवाल said...

Kya baat hai vah vah Seemajee bahut umda ghazal kahee.

भूतनाथ said...

निहायत खूबसूरती से सफलतापूर्वक भाव व्यक्त किए हैं आपने ! धन्यवाद !

Mohinder56 said...

बहुत खूब लिखा आपने.. पर यह भ्रम जिन्दगी के लिये जरूरी है... और असल में होता क्या है

जिनके आने की उम्मीदों पर गुजारी कितनी रातें
सामने ही से जब वो गुजरे तो बुलाया न गया

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

kya khoob khaka kheencha hai aapne

फ़िरदौस ख़ान said...

एहसास के अंगारे फ़िर जलने लगे,
उदासी की चांदनी ने किया घुप अँधेरा है....
क्षतिज के पार तक नज़र दौड़ आई,
किसके आभास का छाया कोहरा है......


बहुत ख़ूब...

'sakhi' 'faiyaz'allahabadi said...

Seema,
shabdjaal mein khayaalat ko phansaakar jaise jazbaat ke smandar mein whale machlee ko pakad lene kee kashmakash hai aur uos se logon ke dilo dimagh ko janjhlor kar rakh dene ki kalaatmak shakti kaa adbhut pradarshan kiya hai aap ne

विवेक सिंह said...

ये भ्रम बस तेरा है.....

बहुत ख़ूब...

Vinay said...

गहरा दिल में उतर गया आपकी कविता में बसा 'एहसास'...

डॉ .अनुराग said...

कोई नही.. कोई नही ..ये भ्रम बस तेरा है.....

bahut achhe ...

कुन्नू सिंह said...

बहुत बढीया कविता,

ये भ्रम कीसका है

महा महा अच्छा कवीता।

!!अक्षय-मन!! said...

संजीवनी सी कविता ..

अमिताभ भूषण"अनहद" said...

कोई नही.. कोई नही ..ये भ्रम बस तेरा है.....
बेहद उम्दा है आप की ग़ज़ल .बहुत खूब आगे भी सिलसिला बस जारी रहे

Arvind Mishra said...

पढ़कर सहसा जिस कवि की ये पन्क्ति याद आ गयी -छाया मत छूना माह होगा दुःख दूना मन -सब भ्रम ही तो है छाया मात्र !

मोहन वशिष्‍ठ said...

एहसास के अंगारे फ़िर जलने लगे,
उदासी की चांदनी ने किया घुप अँधेरा है....
क्षतिज के पार तक नज़र दौड़ आई,
किसके आभास का छाया कोहरा है......

behatrin rachana ke liye aapko badhai seema ji

"अर्श" said...

वक्त की देहलीज पर आस गली,
कितना बेहरम दर्द का पहरा है.....

बहोत सुंदर रचना सीमा जी बहोत खूब ये लाइन शायद रचना की जान है ... आपको ढेरो बधाई ,स्वीकारें ..

नीरज गोस्वामी said...

हमेशा की तरह...लाजवाब...
नीरज

Mumukshh Ki Rachanain said...

सीमा जी,
सच कहा आपने कि

साँस थम थम कर चीत्कार कर रही,
कोई नही.. कोई नही ..ये भ्रम बस तेरा है.....

इन्सान के अहम् का भ्रम कब टूटेगा ?
चीत्कार कर उसे कौन बताएगा ?
ऐसा भय कौन पैदा करेगा ?

चन्द्र मोहन गुप्त

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

बहुत अच्छा िलखा है आपने । किवता में भाव की बहुत संुदर अिभव्यिक्त है ।

http://www.ashokvichar.blogspot.com

राज भाटिय़ा said...

एक खुब सुरत भ्रम बना रहै....
धन्यवाद सुंदर गजल के लिये

अनुपम अग्रवाल said...

माफी चाहूँगा मगर मेरे मन में प्रेरणा हुई कि ;
कल्पना की सतह पर थमा,
शब्जाल सा किसका चेहरा है.....
अनजान सा बेजुबान सा नाम,
क्यूँ लबों पे आकर ठहरा है....
एहसास के अंगारे फ़िर जलने लगे,
चांदनी की उदासी ने किया सवेरा है
क्षतिज के पार तक नज़र दौड़ आई,
किसके आभास का छाया कोहरा है......
वक्त की देहलीज पर आस गली,
कितना बेहरम दर्द का पहरा है.....
साँस थम थम कर चीत्कार कर रही,
कोई नही.. कोई नही ..ये भ्रम बस तेरा है.....

योगेन्द्र मौदगिल said...

बधाई सीमा जी
इस खूबसूरत भ्रम के लिये
शुभकामनाएं

अभिन्न said...

एहसास कितने खरे खरे
भ्रम से बहुत परे परे