8/27/2008

तमन्ना

"तमन्ना"

दिल की तमन्ना फ़िर कोई हरकत ना करे,
यूँ न सितम ढा के फ़िर कोई सैलाब रुख करे,
किस अदा से इजहारे जज्बात हम करते,
की एक इशारे से भी जब चेहरा तेरा शिकन करे....

http://vangmaypatrika.blogspot.com/2008/08/blog-post_28.html

16 comments:

Rakesh Kaushik said...

oh! my goodness.

mindblowing
faburlous.
outstanding

bahut achche

yahan milan sukh ki kami hai
virah vedna to hai.
isliye guzarish karta hun ki apne andaz me ek adh kavita gazal ya shayari milan sukh par bhi likhen.

dhanyavaad

अभिन्न said...

किस अदा से इजहारे जज्बात हम करते,
की एक इशारे से भी जब चेहरा तेरा शिकन करे....
bahut achchhe jajbat hai aur utni hi achchhi shayri bhi

मीत said...

किस अदा से इजहारे जज्बात हम करते,
की एक इशारे से भी जब चेहरा तेरा शिकन करे....

bahut khub likha hai..
badhai ho..

Mukesh Garg said...

bahut kuhb seema ji


badhiya

Nitish Raj said...

सीमा जी, वाह क्या खूब लिखा है
किस अदा से इजहारे जज्बात हम करते,
की एक इशारे से भी जब चेहरा तेरा शिकन करे..
सुंदर रचना

Advocate Rashmi saurana said...

vah bhut khubsurat. ati uttam.

siddheshwar singh said...

bhut khoob!

Sanjeet Tripathi said...

शैदाई हो जब तेरा कोई
तो हरकत कैसे न करे दिल
इजहार के लिए और क्या करें
तेरे चेहरे की हर शिकन को
सर-माथे पे लिया करें।
:)

नीरज गोस्वामी said...

बहुत खूब सीमा जी....हमेशा की तरह.
नीरज

नीरज गोस्वामी said...

बहुत खूब सीमा जी....हमेशा की तरह.
नीरज

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत खूब ! खुबसूरत रचना !
शुभकामनाएं !

Udan Tashtari said...

आनन्द आ गया.

वाह!

Vinay said...

दो किनारे मिल तो गये मगर
कुछ फ़ासला अब भी बाक़ी रहा!

महेन्द्र मिश्र said...

दिल की तमन्ना फ़िर कोई हरकत ना करे,
यूँ न सितम ढा के फ़िर कोई सैलाब रुख करे.
वाह..सुंदर रचना.

kabira said...

तमन्ना जब काफिर निकल जाये
कमान से कोई तीर निकल जाये
हरकत क्या करे कबीरा फिर
हंसा जब छोड़ सरीर निकल जाये
आपकी कविता में इतना दर्द क्यों है ?

मोहन वशिष्‍ठ said...

दिल की तमन्ना फ़िर कोई हरकत ना करे,
यूँ न सितम ढा के फ़िर कोई सैलाब रुख करे,
किस अदा से इजहारे जज्बात हम करते,
की एक इशारे से भी जब चेहरा तेरा शिकन करे

वाह सीमा जी अतिसुंदर मजा आ गया