"आतंकवाद"
आतंकवादीयों को मुह तोड़ जवाब ,
अखीर कब दिया जाएगा,
क्या यूँही देखते रहेंगे हम ???
और वक्त निकल जाएगा...........
भगवान ने तो बस इंसान बनाये ,
फ़िर ये आतंकवादी कहाँ से आए???
इस सवाल का जवाब कब
और किस्से लिया जाएगा .......
गुमराह करके नौजवानों को
आतंक का जहर पिलाते हैं जो
उन्हें प्रेम की धारा का अम्रत
आखिर कब पिलाया जाएगा???
जिस्म पर बम लगाकर,
हमे बर्बाद करते है जो,
हमे बर्बाद करते है जो,
उन्हें जिन्दगी का सबक,
आखिर कब दिया जाएगा???
आखिर कब दिया जाएगा???
ह्थीयारों हथगोलों से ,
खून की होली खेल रहें है जो,
खून की होली खेल रहें है जो,
उन्हें इंसानीयत का मतलब,
कब समझाया जाएगा ???
कब समझाया जाएगा ???
रोकना होगा हमे
इस बढ़ती हुई बीमारी को
इस बढ़ती हुई बीमारी को
वरना ये आतंकवाद का सांप
हम सबको डस जाएगा ..........
हम सबको डस जाएगा ..........
20 comments:
सही कहा जी आपने
वाह! क्या बात कही है आप ने। आज-कल हो रही घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में आप ने आतंकवाद पर जो ताना-बना बुना है वो वाकई काबिले-तारीफ़ है।
...रवि
bahut achchi kavita likhi hai,
atankvad se hame milkar ladana hoga
हम सब के मन की पीड़ा को शब्दों में सटीक ढंग से बयां किया.
"जिस्म पर बम लगाकर,
हमे बर्बाद करते है जो,
उन्हें जिन्दगी का सबक,
आखिर कब दिया जाएगा???"
बहुत खूब, दरअसल इन आतंकियों को भी नहीं मालूम नहीं होता कि वो कितना बड़ा पाप कर रहे हैं, वो तो यही मान करते हैं कि उनका धर्म यही है...इसलिए इनके पीछे की ताकतों को जो एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं, उनको पहचानना होगा।
क्या कहे दिमाग कुंद है सब देख सुनकर
भगवान ने तो बस इंसान बनाये ,
फ़िर ये आतंकवादी कहाँ से आए???
bada hi jimmedarana sawal hai,par iska javab kahan se layen Seema Ji kahan se, kaun dega iska javab,aatankvad ek antarrastriya smasya hai...har rastr is smasya se prabhavit hai,iska dard har insaan ko hai, terrorism se prabhavit sabhi jano ko meri aur se smvedna,aur is smasya ke smool vinash ke liye bhagvan ji se prarthna.
par aapko kya ho gaya seema ek dum se aise subjects par likhna shuru kar diya...its really a new subject .bahut hairani ho rahi hai.bhagvan kare aapka socha hua prem amrit sabhi bad elements ko sahi kar de.
वाह क्या बात है सीमा जी आपने आतंकवाद को किस तरह से कविता के रूप में पेश किया है काबिलेतारीफ मगर जैसा कि हम देख पा रहे हैं कि जो जितना तरक्की की राह पर चलता है उतना ही दुश्मन भी हजार बनाता है ऐसा ही अपने हिंदुस्तान के साथ है हम तरक्की कर रहे हैं तो कुछ पडोसी देश इस उपलब्धि से जलकर ऐसा घिनौना काम कर रहे हैं लेकिन मेरा मानना है कि आप जैसे बडे बडे लेखक अगर ऐसी रचनाएं लिखें तो शायद कभी न कभी और हो सकता है बहुत जल्दी ही उनके कानों में जब ये कविताएं पडेंगी तो शायद वो अधखुली आंख से सोने वाले जाग जाएंगे फिर देखेंगे कि ये हमने क्या अनर्थ कर दिया और शायद वो ही फिर प्यार की जोत से जोत जलाएं भगवान करे ये शब्द मेरे शीघ्र अति शीघ्र पूरें हों आमीन
सीमा जी इस बार आप बिल्कुल अलग रंग में नजर आयीं हैं...आज की ज्वलंत समस्या पर बहुत अच्छा लिखा है आपने...
नीरज
bhut sahi kaha hai. jari rhe.
ha bilkul thik kah rhi hai seema ji. achha likha hai.
bahut sundar kavita . deshaprem se otprot.badhai.
bahot khub seema ji ,bahot sundar kahi magar is bat ko kaun samjhe ise samaj jane ke bad koi aantakwadi nahi hoga,mere kavitawo ko protsahit karne ke liye v shukriya .......badhiya prayas hai ,,,,,,
regards
सीमा जी
प्रश्न जो उठाया आपने है अभी
जानते तो हैं उत्तर उसका सभी
पर विडम्बना ही इसे कहें कि
कोई कुछ है करता क्यूं नही
हर आदमी चाहे वह कोई हैवान हो, इन्सान हो , बिना मकसद कुछ नही करता.
इस अर्थ - प्रधान युग में पैसा ही महत्वपूर्ण रह गया है बाकी किसी चीज़ की कोई महत्वत्ता बची ही नही है.
अर्थ के मदहोशियों को होश तो तभी आता है जब उनके जैसे ही किसी बुरे कार्य से उनके अपने परिवार या ख़ुद को कोई क्षति पंहुचती है.
अपनी पीड़ा सभी को समझ आती है
इस अर्थ प्रधान युग में चिंता करने , चिल्लाने से कोई कुछ नहीं सुनाने और करने वाला है.
सुना होगा लोहा ही लोहे को काटता है.
वक्त आने पर ये भी ख़त्म होगा.
जैसा बोया गया है , अभी तो वसा ही फल मिलेगा और वैसा ही झेलना पड़ेगा.
जंहा सत्ता है, वो कुछ करते नही. कहते है किसे भी दोषी को बख्सा नही जाएगा पर कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद भी आज तक अफज़ल गुरू को सज़ा देने की हिम्मत नहीं जुटा पाए. जब देश के नेता ही स्वार्थी हैं तो फिर आदर्श कौन प्रस्तुत करेगा. कहने को कह दो तो हर कोई दिन रात कर सकता है पर उचित कर्म शायद बिरले लोग ही कर सकते हैं.
आज दुष्कर्म की कीमत ज्यादा अदा होती है इसीलिये दुष्कर्म योगी बहुतायत में पाए जाने लगे हैं ,
इमानदारों, कर्तव्य परायण लोगो का तो आज खून चूसा जा रहा है, कितना लड़ सकते हैं ये बेचारे बिगड़ी हुई व्यवस्था से , बिड हुए लोंगों से ..................................................................................
मानवता की भावना सच्चे अर्थों में जब तक नहीं आयेगी तब तक इन्सान कैसे मिल सकता है , यथा...
श्रद्धा
(२०)
हुए हादसे , उबले जन - आक्रोश
लाचार - प्रशासन के उड़े होश
रुके हिंषा-प्रतिहिंषा कैसे, हम जो
देते रहे एक - दूजे को ही दोष
भड़कीले वक्तव्यों ने जोश जगाये
जाति-धर्म में क्यों संतोष समाये
अरे अपनाओ मानवता श्रद्धा से
शान्ति - दूत सद्रश्य हरे सब रोष
चन्द्र मोहन गुप्त
"Thanks to all readers for encouragement , support and proper guiedence"
Regards
बिल्कुल सही लिखा है-
इस बढ़ती हुई बीमारी को
वरना ये आतंकवाद का सांप
हम सबको डस जाएगा ..........
सच है यदि आतंक्वाद इसी तरह बढता रहा तो एक दिन यद सारी दुनिया को लील जाएगा।
complete change of trend in you write??
A good surprise package for your devotee readers like us
A great dimension to Your writing as now You've introduced Yourself to some social issues as well..
This is Evolution..
भगवान ने तो बस इंसान बनाये ,
फ़िर ये आतंकवादी कहाँ से आए???
आपके ब्लॉग पर पहली बार आया
बहुत अच्छा लगा. वास्तव में आतंकवाद एक बड़ी समस्या बन चुकी है और हम सब को मिलकर ही इसे मिटाना होगा.
मैं भी ब्लॉग का नया खिलाडी हूँ
कभी मेरे ब्लॉग पर भी पधारियेगा
अमन और चैन का संगीत जाने कब गूँजेगा किसी को नहीं पता, लेकिन कहते हैं जब अपने पर पड़ती है तब समझ आता है!
तुम हिंदू हो कि मुसलमान हो कि ईसाई हो कि जैन हो इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता हिंदू मुसलमान या जैन के मुखोटे के पीछे जो असली व्यक्ति है वह वही रहता है। सिर्फ़ शब्दों का या वस्त्रों का भेद है । चाहे वह मन्दिर जाता हो कि मस्जिद हो, वह वही का रहता है। सिर्फ़ चेहरों का फर्क है और वे चेहरे झूठे हैं , वे मुखौटे भर हैं , मुखौटे के पीछे वही आदमी है - वही क्रोध , वही आक्रामकता , वही हिंसा , वही लोभ वही लिप्सा - सब कुछ वही का वही है । क्या मुस्लिम कामुकता हिंदू कामुकता से भिन्न है? क्या हिंदू हिंसा और ईसाई हिंसा में फर्क है? -ओशो
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