11/22/2008

"कहाँ जाऊँ.."



"कहाँ जाऊँ.."

बिलबिला के इस दर्द से,
किस पनाह मे निजात पाऊं...
तुने वसीयत मे जो दिए,
कुछ रुसवा लम्हे,
सुलगती तनहाई ,
जख्मो के सुर्ख नगीने...
इस खजाने को कहाँ छुपाऊं ...
अरमानो के बाँध किरकिराए,
अश्कों के काफिले साथ हुए,
किस बंजर भूमि पर बरसाऊ ...
जेहन मे बिखरी सनसनी,
रूह पे फैला सन्नाटा ,
संभावना की टूटती कडियाँ ,
किस ओक मे समेटूं , कहाँ सजाऊ...







38 comments:

!!अक्षय-मन!! said...

एक बार को प्यर छुपाया जा सकता है
दर्द को नही वो चहरे से ख़ुद बा ख़ुद बयां
हो जाता है.....सच कहा आपने ये तो
वसीयत मे मिले हैं प्यार के साथ, इन्हे कहीं नही छुपा सकते
नही कहीं बरसा सकते नही कहीं सजा सकते
ये कैद हैं दिल की गहराइयों मे बस इनका घर वहीँ हैं
ये वहीँ तक जा सकते हैं.... अक्षय-मन

Arvind Mishra said...

एक बात बताएं -ये रचनाएं क्या आपके किसी संग्रह से हैं ?यदि हाँ तो पता दे- मंगा कर एक साथ पढ़ ली जायं -यह रोज आपकी गहरी दर्द की अनुभूति कुछ हमें भी ग़मगीन कर देती है और यदि ये रचनाएं बिल्कुल ताजा तरीन हैं तोकैसे इतनी प्रोलिफिक हैं आप ? गकल के शेर कहाँ रोज रोज होते हैं ? लुब्बे लुआब यह कि जरूर आपका कोई संग्रह है .किसकी जानकारी दें .

seema gupta said...

@ Respected Arvind jee,

मेरा संग्रह सिर्फ़ मेरा दिल है , किसी को गमगीन करने का मेरा कोई इरादा भी नही है..., जो भाव या शब्द उपजते हैं उन्ही को आकार दे देती हूँ....और पता ही नही चलता की ये इतना गमगीन हो गया है....मेरी ये धारणा रही है की सब खुशिओं से ही प्यार करते हैं, दुःख दर्द को सिर्फ़ दुत्कार दिया जाता है, कोसा जाता है, कोई उसे गले नही लगाना चाहता , बेचारा अकेला रह जाता है , और बस यही एक सोच मुझे दुःख दर्द पर लिखने को प्रेरित करती है , कवि का ह्रदय शायद ऐसा ही होता होगा की बस जिस राह पर चल निकले तो उसी राह पर चलता रहता है.., आप हमेशा मुझे पढतें है , प्रोत्साहित भी करते हैं मै आभारी हूँ. मगर आपको दुःख पहुंचा है तो मै क्षमाप्राथी हूँ...,

Regards
seema

Anonymous said...

"tune vaiyat me diye kuch rusva lamhe", Seema aapki likhi ye line vishesh pasand aayi.

ताऊ रामपुरिया said...

तुने वसीयत मे जो दिए,
कुछ रुसवा लम्हे,
सुलगती तनहाई ,
जख्मो के सुर्ख नगीने...
इस खजाने को कहाँ छुपाऊं ...

ओ हो हो ... आज तो अब शब्द ही नही रह गए हैं कुछ तारीफ़ करने को !
सारे शब्दों को लगता है आपकी ये रचना लूट के ले गई ! वाकई लाजवाब !
हतप्रभ हूँ ! मेरे पास अब शब्द नही बचे हैं ! जब दुबारा पढने आऊंगा तब
कुछ शब्द मिले तो अवश्य लिखूंगा ! अभी तो बस पढ़ रहा हूँ एक नायाब रचना ! शुभकामनाएं !

Rakesh Kaushik said...

owesome mind blowing .........

fantastic..............


very touchie......... thoughtfull.......... feelingfull..........


keep it on

Rakesh Kaushik

Smart Indian said...

अश्कों के काफिले साथ हुए,
किस बंजर भूमि पर बरसाऊ?
Sundar abhivyakti!

भूतनाथ said...

बेहद शानदार रचना ! जवाब नही ! धन्यवाद !

Gyan Dutt Pandey said...

किस ओक मे समेटूं , कहाँ सजाऊ...

अगर मैं कहूं कि इस उहापोह से मैं भी दो-चार होता हूं; तो कहीं भावों की नकल का आरोप न लगे!

gsbisht said...

बहुत अच्छी रचना के लिये वाह !!
व दर्द की गहरी अनुभूति के लिए आह !!
आपकी रचनाएँ मुझे हमेशा आकर्षित करती हें.

vijay kumar sappatti said...

Dear Seema,

आज पढ़कर दर्द को भी सकून पहुँचा है .

" तुने वसीयत मे जो दिए,
कुछ रुसवा लम्हे,
सुलगती तनहाई ,
जख्मो के सुर्ख नगीने...
इस खजाने को कहाँ छुपाऊं ..."

बहुत अच्छे अल्फाज़ , बहुत गहराई.
मेरी आपको बहुत बहुत बधाई !!

आज मैंने भी कुछ लिखा है .. कुछ comments मेरी झोली में भी डाल दीजियेगा

शुक्रिया

विजय
www.poemsofvijay.blogspot.com

"अर्श" said...

जख्मो के सुर्ख नगीने...

ग़ज़ब की थिंकिग सीमा जी ,ये लाइन तो कहर वरपा रहा है पुरे कविता में बहोत खूब उम्दा सोंच ... आपको ढेरो बधाई देने के लिए मेरे पास शब्द नही है ....

Anil Pusadkar said...

कभी तो खिंचाई का मौका देना चाहिये। हमेशा तारीफ़ करना अच्छा नही लगता।

Vinay said...

शब्द खनकते हैं सूखे पत्तों की तरह!

makrand said...

किस ओक मे समेटूं , कहाँ सजाऊ...
regards

ताऊ रामपुरिया said...

मेरा कमेन्ट कहाँ गया सीमाजी ? कही मेरा नेटवर्क तो बंद नही है ! मैं तो दुबारा पढने आया था ! :)

फ़िर से कहूंगा आज की रचना लाजवाब ! शब्द नही है तारीफ़ के लिए ! शुभकामनाएं !

seema gupta said...

@ ताऊ jee, आपका कमेन्ट आदर सहित वहीं हैं, शायद मेरे नेटवर्क मे कुछ गडबड थी, जो ब्लॉग पर नही दिखा..मैंने ठीक कर लिया है , आपकी शुभकामनाओ और प्रोत्साहन के लिए दिल से आभारी हूँ..

Regards

मीत said...

अरमानो के बाँध किरकिराए,
अश्कों के काफिले साथ हुए,
किस बंजर भूमि पर बरसाऊ ...
nice...

Anonymous said...

Seema,

Tumhen padh dil ne ek ghazal utha dee ..........abhee likhee hai..ummeed hai kuch kahogi humse bhee:
अजीब मंजिलें मेरी हैं कोई राह नही
पनाह ढूंढ रहा हूँ कहीं पनाह नहीं

बयान-ऐ-दर्द को अपने जुबां नहीं मिलती
ग़ुज़ार गोश जो तेरे हो मेरी आह नहीं

चमन में किसने बिछाएं हैं फूल ज़ख्मों के
निगाह-e-शोक़ है हरसू पे वाह वाह नहीं

उठा है दर्द लिए जा रहा है जां कों भी
बताएं किसको के सुनता कोई कराह नहीं

किसी उम्मीद से देखा है टिकटिकी से तुझे
शिकस्ता दिल है के देखा तेरी निगाह नहीं

बड़ी उम्मीद से निकला था तेरे घर को ‘सखी ’
लगी हो आग् जहाँ वो पनाह गाह नहीं

Anonymous said...

dil ki baat jab shabd ke libas mein baahar aaati hai to zakhmon ke dhabbe vastra ki seemaaon ko paar kar ooper ubhar aatay hain aur tumhaari kavita bun jate hain.....................

seema gupta said...

@ Anonymous jee,
maire is poem ne aapke ek nayab gazal ko janm diya hai....or apne us gazal ko mujhe comment ke rup mey daiker mujhe jo samaan diya uske liye dil se aabhari hun.."

regards

राज भाटिय़ा said...

सीमा जी बहुत ही सुंदर गलज लिखी है आप ने तारीफ़ भी करे तो फ़ीकी लगती है, ्धन्यवाद.

सचिन मिश्रा said...

Bahut khub.

BrijmohanShrivastava said...

रुसवा लम्हे ,सुलगती तन्हाई जख्मों का खजाना बहुत सुंदर /किस बंजर भूमि पर अश्क बरसाऊँ /संभावनाओं की टूटती कडियाँ कहाँ सजाऊँ /एक एक शब्द चुन चुन कर माला में गूंथा गया है /जख्मों को सुर्ख नगीनों की उपमा इतनी वेहतर है कि कुछ कहते न बने /वास्तब में दर्द मानव के भीतरी संताप की ,व्यक्ति के भीतरी द्वंद की बाहरी परिधि है /जब भीतरी द्वंद बढ़ता है ,दिशाएँ बिलीन हो जाती है और सारी दशाएं बदल जाती हैं और दर्द से निजात पाने के सब रस्ते बंद हो जाते हैं तो स्व विनाश की भी चाहत होती है /स्व विनाश की मानवता की चाहत अकारण नहीं है /कुछ सुविधाएं है जो दर्द भूलने में मदद करती है लेकिन जब सुबिधाओं के आदी हो जाते हैं तो फिर दर्द की अनुभूति होने लगती है /इसलिए दर्द से किसी पनाह में निजात पाने की अभिलाषा व्यर्थ होती है /रचना बहुत ही गंभीर है तथापि शब्द सरल है /बधाई

sandeep sharma said...

तुने वसीयत मे जो दिए,
कुछ रुसवा लम्हे,
सुलगती तनहाई ,
जख्मो के सुर्ख नगीने
इस खजाने को कहाँ छुपाऊं ...

खुबसूरत है सीमा जी...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

I have no words in my Dictionary for writing a comment.

नीरज गोस्वामी said...

दर्द से निजात.????..आप भी सेहरा में मीठे पानी की झील तलाश रही हैं...खूबसूरत रचना...
नीरज

योगेन्द्र मौदगिल said...

बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकारें

Anonymous said...

lovely expressions

Alpana Verma said...

bahut hi dard bhari vyatha kahti kavita hai..

ek ghazal ---'dard se mera damaan bhar de ya allah--phir chahey diwana kar dey---]'-lata ji ki awaaz mein suni thi--aap ne apne comments mein dard ki ahmeeyat batayee to yah ghazal yaad aa gayee-

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

हमेशा की तरह अच्छी....उम्दा...दर्दपूर्ण....और...और...और..क्या कहूँ....!!

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

Seemaji,
Apko mere kavitaon ne prabhavit kiya ,tareef ke liye thanks.Apke is blog kee bhee kuchh kavitaen mane padhee.Over all apkee kavitaon men jo dard,kasak ha use shbdon men bandhna,yeh apkee ek badee uplabdhi ha.Sabse badh kar apkee kavitaon men koi goodhata naheen ha.Aur saral,pravahmayee bhasha hee kisi kavi kee bhavnaon ko sarthakta pradan kartee ha.
Meree shubhkamnaen.
Hemant kumar

प्रदीप मानोरिया said...

अद्भुत शब्द प्रवाह
हर बार की तरह लाज़बाब

बवाल said...

आदरणीय सीमाजी,
आपके तमाम बलॉगर साथियों ने एकदम बजा फ़र्माया है जी. बहुत अधिक दर्दीली ग़ज़ल लिख पड़ी. न लिखा कीजिये जी इतना बिलबिलाता हुआ दर्द. आपकी अभिव्यक्ती इतनी सजीव है जी के आपको पसंद करने वालों को ऐसा लग पड़ता है के शायरा के गिर्द ही ये भयंकर दर्द हिलोरें ले रहा है. थोड़ा संभालकर जी, क्योंके आपके सभी पाठक आपको बहुत अधिक पसंद करते हैं जैसा के उपरोक्त टिप्पणियों से परिलक्षित होता है और हम सब आपको दर्द से हटकर कभी कभी तबस्सुमों के हू-ब-हू भी देखना चाहते हैं. बुरा न मानियेगा. सदा ही आपका मुरीद.

एस. बी. सिंह said...

बड़ी भावपूर्ण रचना , बधाई

Anonymous said...

Kitna khoobsurat chitran kiya he tumne iss baar..
Har line mano apne aap me ek painting ho..

"Aarmano Ke Baandh Kirkiraye..."

Kehte hain na, "Aarman Beh Gaye".. to upper wali line ko padh ker lagta he mano, behne se pehle sare armaan ek baandh ke peeche ikathha ho rahe they aur jaise hi baandh kirkira ker toota, sare armaan beh gaye..

Tumhari har line ko main aise hi samajh samajh ker padhta hoon..
Aur tumhari hal line mano ek painting lagti hain.. jisme bahut kuch ukera (paint kiya) gaya hain..

Very Good

Mukesh Garg said...

jo mein apko har bar kehta tha aaj wahi baat aapne kuhd apni jubani keh di.

apki rachna ko padh kar ye shear ban pada jo kuch ish trha hai.....

har dil ka dard hum jane hai,
har jkhm ko hum pehchane hai,
tum lakh chupao anshu magar,
hum unki ahhat pehchane hai..

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

hamaari mushkil yahi hai...ki ham kahin jaa bhi to nahin sakte....