11/12/2008

"दर्द हूँ मैं "



"दर्द हूँ मैं "

अश्कों से नहाया,
लहू से श्रृंगार हुआ,
सांसों की देहलीज पर कदम रख,
धडकनों से व्योव्हार हुआ,

लबों की कम्पन से बयाँ..
जख्म की शक्ल मे जवान हुआ..
कभी जिस्म पे उकेरा गया,
सीने मे घुटन की पहचान हुआ,
रगों मे बसा,
लम्हा लम्हा साथ चला,
कराहों के स्वर से विस्तार हुआ,
हाँ, दर्द हूँ मै , पीडा हूँ मै...
मेरे वजूद से इंसान कितना लाचार हुआ....



http://hindivangmay1.blogspot.com/2008/11/blog-post_1957.html

33 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!! वाह!

ताऊ रामपुरिया said...

हाँ, दर्द हूँ मै , पीडा हूँ मै...
मेरे वजूद से इंसान कितना लाचार हुआ....
दर्द और पीडा की अभिव्यक्ती को बहुत ही लाजवाब कहूंगा ! चित्र बड़े सामयीक हैं !

Smart Indian said...

बहुत खूब!
मुझे दर्द-ए-दिल से गिला नहीं
इक यही तो मेरा हबीब है!

भूतनाथ said...

महसूस करने लायक भाव ! नमन आपको !

Anonymous said...

Full of PAIN.. To read this poem was a hair raising experience for me!
Do you notice that Seema, how well you imagine this PAIN in your writings these days..

gsbisht said...

हाँ, दर्द हूँ मै , पीड़ा हूँ मै...
मेरे वजूद से इंसान कितना लाचार हुआ.... !!

परन्तु दर्द और पीड़ा का यह वजूद ही तो है जो हमें उस परमशक्ति के करीब भी ला देता है जिस प्रकार मीराबाई को .
मीराबाई ने अपने दुखों को स्वीकार कर दुःख व निराशा को भक्ति की ओर मोड़ दिया व ख़ुद को प्रभु को समर्पित कर परम आनन्द को प्राप्त किया .

'sakhi' 'faiyaz'allahabadi said...

Seema,
mujhe ek sher yaad aa raha hai:

"ehsaas ki shiddat se Allah bachaye,
maare hai koi phool to patthar sa lage hai"

kaon hai aisa jo dard ke tajurbay se se guzra na ho. lekin dard ko personification de dena kisi atyant sanvedan sheel, hassaas aur abhivyakti ko madhyam banaane waale ka hi ilaaqa ho sakta hai , aur aap isper raaj karti nazar aati hain.
Mubarak ho.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

वाह-वाह, बहुत खूब, पूरी कविता ही उम्दा है

संगीता पुरी said...

वाह ! बहुत अच्‍छा।

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया!!

seema gupta said...

@' 'sakhi' 'faiyaz'allahabadi jee ... jee aapka comment pdha or pdh kr abheebhut hun.....mai apne ko ek behad sadharn sa inssan smejtee hun or patee hun, magar jis man samman se aapne muje nvaja hai maire pass uske avej mey shabd hee nahe hain......mai kya likhun smej nahee arha....siva iske ke dil se aapke shukurgujar hun.....
10/03/2008 "सवाल" pr likhe @ ताऊ रामपुरिया je kee kuch panktiya yad dila dee aapne aaj. us din bhee maire pass shabd nahee thy or aaj bhee nahee hain....

Vinay said...

दर्द का ऐसा व्याख्यान की रुएँ सिहर उठे!

"अर्श" said...

कभी जिस्म पे उकेरा गया,

सीने मे घुटन की पहचान हुआ,

bhavbibhor kar diya aapne to seema ji, bahot hi gahari bat kahi aapne ,umda lekhan ek bar fir se..

dhero badhai aapko...

BrijmohanShrivastava said...

दर्द पीड़ा का बहुत बिस्तार किया गया बहुत दूर तक उसकी पहुँच बतलाई गई जिस्म में ,सीने में ,रगों में उपस्थिति के साथ जख्म की शक्ल में जबान होना / पीड़ा रुलाती ही हो ऐसा भी नहीं है हंसाती भी है हर इंसान इसके बजूद से लाचार हो ऐसा भी नहीं है कुछ लोग ऐसा सोचते है और हौसला रखते hain एक उम्मीद रखते हैं एक अरमान रखते हुए कहते भी हैं कि ""में पीडा का राजकुवर हूँ तुम शहजादी रूपनगर की ,मेरा कुरता सिला दुखों ने बदनामी ने काज समारे ,तुम जो आँचल ओडे उसमें नभ ने सब तारे जड़ डाले (इस रचना में आगे इज़हार है ) ये आपने ""करहाटों के स्वर ""पांचवीं लाइन " में लिखा है इसे या तो कराहों करदो या ब्रेकिट में इस शब्द का मानी लिख दो /कुल मिला कर दर्द की रचना बहुत दर्दीली बन गई है /बैसे अपनी बात दर्द में कहने से लोग मन करते हैं ""गर अपनी बात कह तो सभी दर्द मत उंडेल,बरना कहेंगे लोग गजल है के मर्सिया /मगर चूंकि ये दर्द की ही गजल है इसलिए दर्दीली है

seema gupta said...

@ BrijmohanShrivastava jee aapke analysis or coment ka bhut bhut shukriya...aapke ek ek word ko smej rhee hun, maine 5th line mey correction kr diya hai...bake sach hai, dard ka bhkahn hai to dardila to hoga hee..."

Regards

मोहन वशिष्‍ठ said...

वाह सीमा जी क्‍या कहने लाजवाव कविता
सच दर्द और पीडा के सामने हर कोई कितना लाचार होता है असहनीय होता है बहुत अच्‍छी कविता लिखी है आपने

मीत said...

कराहों के स्वर से विस्तार हुआ,
हाँ, दर्द हूँ मै , पीडा हूँ मै...

मेरे वजूद से इंसान कितना लाचार हुआ....


tuoch my heart again again & again..!

योगेन्द्र मौदगिल said...

अहसासों का अहसास कराती वेदना... वाह.. सीमा जी...

राज भाटिय़ा said...

कितना दर्द है इस इंसान के जीवन मै, कितना लाचार है इसे सहने के लिये....
बहुत खुब धन्यवाद

जितेन्द़ भगत said...

दर्द की सुंदर परि‍भाषा।

कुन्नू सिंह said...

बहुत बढीया।

"दर्द को भूला दो
दर्द को दवा बना लो
कभी और आउंगा
अभी दर्द का कोई दवा लो"

वाह! वाह मैने तो सोचा ही नही था की मै भी कविता लीख सकता हूं :)

महावीर said...

हाँ, दर्द हूँ मै , पीडा हूँ मै...
मेरे वजूद से इंसान कितना लाचार हुआ....
बहुत सुंदर!

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

सीने में जो छुपा बैठा है..वो भी है दर्द......
आंखों में जो सजा बैठा है...वो भी है दर्द....!!
दर्द की मेरे साथ हो गई है आशिकी इतनी.....
सूखे आंसुओं से जो रोता है...वो भी है दर्द....!!
राहें आसान किया करता है सदा ही वो मिरी......
राहों में जो कांटे बिछा देता है...वो भी है दर्द....!!
जिस्म के छलनी हो जाने की आदत हो गई है....
दिल को जो छलनी करता है..वो भी है दर्द...!!
कभी तो ख़ुद से ख़ुद को भी ऐसा भुला देता है
और जो लाज़वाब कर देता है..वो भी है दर्द...!!
इक साँस को दूसरी पर अख्तियार नहीं रहता
हर साँस धौकनी-सी चला देता है वो भी है दर्द !!
दर्द ही जैसे इक जिन्दगी की तलाश है "गाफिल".
...अब जो मज़ा देने लगा है...वो भी है दर्द....!!

Dr. Aradhna said...

nice one mam

अविनाश said...

बहुत खूब!
Too good
Regards

अविनाश said...

Respected Mam
wud u like to contribute some hindi poems as co-author on my blog,just a request.
Regards
Avinash

अनुपम अग्रवाल said...

लबों की कम्पन से बयाँ..
जख्म की शक्ल मे जवान हुआ..
कभी जिस्म पे उकेरा गया,
सीने मे घुटन की पहचान हुआ,
ना एहतियात, ना हया, ना फ़िक्र किसी जमाने की,
बेबाक हो अपना इजहार-ऐ-दर्द करती ये जिन्दगी...

अविनाश said...

another gr8 creation of urs mam

Rakesh Kaushik said...

aisa lagta hai ki dard se aapka kafi gehra rishta hai jo Dard ke baare me aapne itna vistaar se likha. dard ko to hum bhi jante hai magar uske itne roopo se vakif na the . aapne dard ka jo vyakti karan kiya hai vo adbhut hai.

Bahut hi shandaar


Rakesh Kaushik

बवाल said...

दर्द हूँ मैं ....... आहा क्या बात है सीमाजी बहुत संजीदा खूबसूरती है इस पोस्ट में, बधाई ! दोनों हाथ सर पर रखे हुए जो पेंटिंग है उसे "अन्यमनस्का" नाम दिया जा सकता है. है ना.

अभिन्न said...

दर्द हूँ मैं...मेरे वजूद से इंसान कितना लाचार हुआ...क्या खूब कहा गया है पर क्या कभी दर्द के बिना इंसान की उत्पति,विकास और अस्तित्व की कल्पना की जा सकती है ....
दर्द नही तो क्या जीवन है
दर्द ही तो जीने की अनुभूति है .......
एक एक पंक्ति में यथार्थ है ...शुभकामनायें

अभिन्न said...

आपकी किसी भी रचना को पढ़ कर लगता है की साहित्य की क्लास लगा ली हो ...एक तो आपकी रचना इतनी सुंदर और शसक्त होती है उस पर पाठको के विचार ..सोने पे सुहागा .......

Mukesh Garg said...

sansho ki dehlij par kadam rakh dhadkno se pyar hua,


han dard hu main ,pida hu main...
mere bajud se insan kitna bebas hai

wah seema ji wah ati sunder