9/06/2008

सजा


"सजा"

आज ख़ुद को एक बेरहम सजा दी मैंने ,
एक तस्वीर थी तेरी वो जला दी मैंने
तेरे वो खत जो मुझे रुला जाते थे
भीगा के आंसुओं से उनमे भी,
" आग लगा दी मैंने ..."

http://vangmaypatrika.blogspot.com/2008/09/blog-post_06.html

21 comments:

Anonymous said...

jawab nahi

Anonymous said...

awesome yaar.....bahut hi badhiya ...... after alimit of love and sacrifice...this is the thought and feel......

ताऊ रामपुरिया said...

तेरे वो खत जो मुझे रुला जाते थे
भीगा के आंसुओं से उनमे भी,
" आग लगा दी मैंने ..."

बाप रे ! इतना गुस्सा ? पहले बार देखा ! और
वो भी सिर्फ़ छोटी सी ५ लाइनों में ! काबिले
तारीफ़ रचना ! बहुत बधाई और शुभकामनाएं !

Rakesh Kaushik said...

aap itni gehrai se sochti hai ke hume majboor hona padta hai comment dene ke liye



bahut hi achcha likha hai aapne.

दीपक "तिवारी साहब" said...

आग लगा दी मैंने ..."
भाव व्यक्त करने में आपका जवाब नही !
बहुत बधाई ! सुंदर रचना !

मीत said...

भीगा के आंसुओं से उनमे भी,
" आग लगा दी मैंने ..."


सच में आप ने ब्लॉग मैं आग लगा दी
सुंदर

बालकिशन said...

aaj kai dinon bad aa paya.
aur aate hi aapki ye rachana padh kar man me utal-puthal mach gayi.
jawab nahin aapka.
shukriya.

'sakhi' 'faiyaz'allahabadi said...

वो मेरे ख़त थे तेरे पास तो हम रहते थे
वरना क्या और था ख़ुद को जो जिला दी मैंने
तूने तस्वीर जलाई के जला डाला मुझे
फिर भी हर ज़ुल्म पे तेरे है दुआ दी मैने

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुन्दर कविता, सही किया यह कम्बख्त यादे किसी हाल मे जीने नही देती...
धन्यवाद

जितेन्द़ भगत said...

nice

डॉ .अनुराग said...

भीगा के आंसुओं से उनमे भी,
" आग लगा दी मैंने ..."

बहुत खूब.......

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

hamesha ki tarah wah tajmahal

seema gupta said...

Thanks everybody for ur presence shown n droping ur valueable thoughts. Regards

Anonymous said...

beautiful words!

Udan Tashtari said...

बहुत सही!!!

आपका मंच बिना पूछे सार्वजनिक निवेदन के लिए इस्तेमाल कर रहा हूँ:

------------------


निवेदन

आप लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.

ऐसा ही सब चाहते हैं.

कृप्या दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें.

हिन्दी चिट्ठाकारी को सुदृण बनाने एवं उसके प्रसार-प्रचार के लिए यह कदम अति महत्वपूर्ण है, इसमें अपना भरसक योगदान करें.

-समीर लाल
-उड़न तश्तरी

योगेन्द्र मौदगिल said...

भई वाह... क्या आग लगाई है सीमा जी..
आपका शब्द-चित्रण लाजवाब है..
बधाई....

Anonymous said...

three words for this

W O W

vipinkizindagi said...

अच्‍छी पोस्ट.......

Arvind Mishra said...

स्वप्नभंग या मोहभंग ?

प्रदीप मानोरिया said...

आज ख़ुद को एक बेरहम सजा दी मैंने ,
एक तस्वीर थी तेरी वो जला दी मैंने
तेरे वो खत जो मुझे रुला जाते थे
भीगा के आंसुओं से उनमे भी,
" आग लगा दी मैंने ..."
बेहतरीन

Mukesh Garg said...

आज ख़ुद को एक बेरहम सजा दी मैंने ,
एक तस्वीर थी तेरी वो जला दी मैंने
तेरे वो खत जो मुझे रुला जाते थे
भीगा के आंसुओं से उनमे भी,
" आग लगा दी मैंने ...



in lino main pyar bhi hai gusha bhi