"नहीं"
देखा तुम्हें , चाहा तुम्हें ,
सोचा तुम्हें , पूजा तुम्हें,
किस्मत मे मेरी इस खुदा ने ,
क्यों तुम्हें कहीं भी लिखा नहीं .
रखा है दिल के हर तार मे ,
तेरे सिवा कुछ भी नही ,
किस्से जाकर मैं फरियाद करूं,
हमदर्द कोई मुझे दिखता नही.
बनके अश्क मेरी आँखों मे,
तुम बस गए हो उमर भर के लिए ,
कैसे तुम्हें दर्द दिखलाऊं मैं ,
अंदाजे बयान मैंने सीखा नही.
नजरें टिकी हैं हर राह पर ,
तेरा निशान काश मिल जाए कोई,
कैसे मगर यहाँ से गुजरोगे तुम,
मैं तुमाहरी मंजील ही नही,
आती जाती कोई कोई अब साँस है ,
एक बार दिल भर के काश देखूं तुझे,
मगर तू मेरा मुक्कदर नही ,
क्यों दिले नादाँ ये राज समझा नही ..............
http://kavimanch.blogspot.com/
11 comments:
magar tu mera muqqadar nahi kyon dil e nadan ye raj samjha nahi....... bahut sunder
मगर तू मेरा मुकद्दर नही ..बहुत सुन्दर लिखा है आपने
rahnuma ye kaha se laya hain kalam,
ki har baar padhta hun to naya nazar aata hain...
really very nice poem
pyar kyun hota hai?? aur kisi ek khaas se he kyun hojata hai?? what a wonderfully miraculous happenning it is and then your kavita isee ko bayan kartee hueey.
Aap kahti hai aap ne andaze bayan sikha naheen to kaise aap itne jazbaat ko kaghaz par uker lati hain..........................
Aap ko aur aap ki lekhni ko salaam
magar tu mera mukkadar nahi......sach me badi baat kah di aapne....
ek bar dil bhar kar kash dekhun tujhe..
magar too mera muqaddar nahin..
kyon ye dile nadan ye raj samjha nahin...
touchin heart..
keep it up
lovely expressions
बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई
बहुत उम्दा, क्या बात है!
बहुत मजेदार.... बहुत सुन्दर ..........
देखा तुम्हें , चाहा तुम्हें ,
सोचा तुम्हें , पूजा तुम्हें,
किस्मत मे मेरी इस खुदा ने ,
क्यों तुम्हें कहीं भी लिखा नहीं .
रखा है दिल के हर तार मे ,
तेरे सिवा कुछ भी नही ,
...बहुत ही दर्द और शिकायत भरी पंक्तियाँ है
कैसे तुम्हें दर्द दिखलाऊं मैं ,
अंदाजे बयान मैंने सीखा नही.
....कमाल का अंदाजे बयां है
बहुत ही बहुत प्रभावपूर्ण रचना है
इसे क्या कहूं ग़जल है या हलचल
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