"तन्हाई"
"तन्हाई"
ये नजरें जहाँ तक मुझको ले जांयें ,
हर तरफ बसी क्यों है सूनी सी तन्हाई,
इस दिल की अगन पहले क्या कम थी ,
मेरे साथ सुलगने लगती क्यों है तन्हाई
आंसू जो छुपाने लगता हूँ सबसे ,
बेबाक हो रो देती क्यों है तन्हाई
तुझे दिल से भुलाना चाहता हूँ ,
यादों के भंवर मे उलझा देती क्यों है तन्हाई
एक पल चैन से सोंना चाहता हूँ ,
मेरी आँखों मे जगने लगती क्यों है तन्हाई
तन्हाई से दूर नही अब रह सकता,
मेरी सांसों मे, इन आहों मे,
मेरी रातों मे, हर बातों मे,
मेरी आखों मे, इन ख्वाबों मे,
कुछ अपनों मे, कुछ सपनो मे ,
मुझे अपनी सी लगती क्यों है तन्हाई ????
http://www.sahityakunj.net/LEKHAK/S/SeemaGupta/tanhai.htm
http://swargvibha.t35.com/kavita/all%20kavita/Seema%20Gupta/Tanhai.htm
(http://www.swargvibha.tk/)
http://kavimanch.blogspot.com/
12 comments:
Again, a Poem which stands still and alone in mob of emotions..
Truly Seemafied Poem..
Well Written Seema, We Love You
-- (One of Your FAN, Amit Verma)
Thanks for sending a very sensetive and touching poem "Tanhie". All your poems have some special message and lot of pain. I am really surprise that from where you get all these pain which is flowing in words in your poems. Want to read all your collection. Tell me from where i can get the same. I really want to read them. A admirer - KBC
hi,
seen both the sites. nice ones.
tumne kafi mehnat ki hi jo ki nazer aa rahi hi. that is why u r getting good remarks from your so many frnds. best of luk.
love n luck
Vipul
Very very nice, yaad aa gaya wo gujra jamana........
Rakesh Verma
realy nice poeam thanks lot
same same like my life is your poeam touch my heart . life is like this just passing lonly, and kisi ki yadoo main,Jnae bale to chala jate hain lekin uski yadhe to hamesa rehata hian na . """"""""""" Life Isn't Like Thinking """"""""""""""
keep it, best of luck from my side,God bless you seem ji
Thank you .
Best Regards :-
Ritesh Kumar Chaudhary .
Doha,Qatar
Hai re hai kaisi hai yeh tanhai....
jane aapko yeh kis disha me le aayee
ki ab apni si lagne lagi hai yeh tanhai....
tanhai to kabhi kisi ki nahi hoti hai
yeh jiske sath ho to phir bas kisi ki kami si hoti hai
par shayad yahi hai deemag aur dil ki ladai
ke bhid me humare sath hoti hai sirf aur sirf yeh TANHAI
Parbha dash
बहुत खूबसूरत..आंसू जो छुपाने लगता हूँ सबसे ,
बेबाक हो रो देती क्यों है तन्हाई
आपका ब्लॉग दूर से ही बिलकुल अलग सा नजर आता है। कारण कविताओं के साथ चित्र संयोजन बहुत ही प्यारा होता है।
"मुझे अपनी सी लगती क्यों है तन्हाई ????"
सुंदर कविता की उपरोक्त पंक्तियों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया और जो समझ में आया वो इस प्रकार है :
हम वयस्क होते ही, यादों से भावुक हो, चाहत ( चाहे किसी भी क्षेत्र में हो) में असफलता के मलाल जैसे ही किसी न किसी कारण से उपजी एक मनोवृत्ति के कारण ही तनहाइयों में अपने आप को बद्ध पाते है, जिसकी गिरफ्त में रहना या न रहना व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर करता है. कभी किसी बच्चे को देखें तो कह उठेंगी :
क्यों किसी बच्चे को नही घेरती तन्हाई
हर पल रहा व्यस्त, क्या जाने तन्हाई
हम पढ़े -लिखे समझदार है, अपने आप को तन्हाई में पाना शायद हमारी हार है.
चन्द्र मोहन गुप्त
ह्म्म, तनहाई हमेशा अपनी सी ही लगती है, क्योंकि इस तनहाई में हम अपनी तनहाई के साथ ही होते है और इस दौरान हम अक्सर वही सोचते हैं जो सोचना चाहते हैं,
सवाल तो यह होना चाहिए कि क्यों अक्सर हम अपनी तनहाई में अपने आप से रोमांसिंग पर होते हैं। अपने आप से भी और उस से भी जिसे हम अपने ख्यालों में अक्सर हावी होता हुआ पाते हैं।
तनहाई एक ऐसा शब्द है जिस पर कई पन्ने लिखे जा सकते हैं बहरहाल कविता बड़ी अच्छी लिखी है आपने।
" thanks a lot for your encouragement"
Regards
इस दिल की अगन पहले क्या कम थी ,
मेरे साथ सुलगने लगती क्यों है तन्हाई
bahut hi kuhbsurat. badhaiya
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