अंतर्मन की ,
विवश व्यथित वेदनाएं
धूमिल हुई तुम्हे
भुलाने की सब चेष्टाएँ,
मौन ने फिर खंगाला
बीते लम्हों के अवशेषों को
खोज लाया
कुछ छलावे शब्दों के,
अश्कों पे टिकी ख्वाबों की नींव,
कुंठित हुए वादों का द्वंद ,
सुधबुध खोई अनुभूतियाँ ,
भ्रम के द्वार पर
पहरा देती सिसकियाँ..
आश्वासन की छटपटाहट
"और"
सजा दिए मानसपट की सतह पर
फ़िर विवश व्यथित वेदनाएं
धूमिल हुई तुम्हे
भुलाने की सब चेष्टाएँ,
48 comments:
सुन्दर रचना!!
इतना कम क्यूँ लिखा जा रहा है आजकल!! सब ठीक तो है?
खूबसूरत भावाभिव्यक्ति।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
विवश व्यथित वेदनाएं ...
इतनी पीडा क्यों...??
आप चाहें तो हमसे बाँट सकती हैं ..!!
bahut sundar.
आदरणीय समीर जी , यहाँ सब ठीक है बस कुछ काम का बोझ बढ़ गया है आजकल कंपनी मे और समय अभाव के कारण ब्लॉग पर ज्यादा लिखना पढना नहीं हो पा रहा, आपकी इस आत्मीयता के लिए आभार...
regards
गहनतम अनुभूतियों को इतने सहज शब्दों में कैसे व्यक्त कर देती है सीमा जी आप ? बहुत खूबसूरत !
बहुत ही सुक्ष्म अनुभुतियों को आपने सुंदर तरीके से इस रचना में पिरो दिया है. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत सुंदर रचना !!
अति सुन्दर अभिव्यक्ति !
अंतर्मन की ,
विवश व्यथित वेदनाएं
धूमिल हुई तुम्हे
भुलाने की सब चेष्टाएँ,
अंतर्मन की ,
विवश व्यथित वेदनाएं बहुत ही भावपूर्ण रचना . आभार.
पीडा को शब्द दे दिये
दर्द को दिये अक्षर
एक एक शब्द चुभ गया
छलनी कर गया अंतर ।
धूमिल हुई तुम्हे
भुलाने की सब चेष्टाएँ,
Now when the rain is gone
Far-far away from me.
Leaving no drop of water
Anywhere around me.
Not a single cloud in sight
I long for rain, I really long.
very nice lines......
एक बार फिर बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति
बहुत ही उम्दा कविता लिखी है....
चित्र बेहद अच्छा लगा...
keep it up
मीत
HI,
U have done it again. u made ur style in a very special taste.
Totally Seema Gupta Style Lines.
It's Fantastics. touch our heart continuously.
Rakesh Kaushik
अत्यंत प्रभावशाली
एहसास की कविता
खूबसूरत भावाभिव्यक्ति।
आशा है आगे भी आप ऐसी ही पठनीय रचनाएं लिखती रहेंगी !
सीमा जी सचमुच विरह गीतो को बडे सुन्दर ढन्ग से लिखती है आप.
आपकी कविता "अंतर्मन" सचमुच बहुत सुन्दर है , एक विरहन के ह्र्दय के भावो का बडा सुन्दर चित्रण
विवश व्यथित वेदनाएं
धूमिल हुई तुम्हे
भुलाने की सब चेष्टाएँ,
हम जिन्हे भुलाने की चेष्टा करते है, वे हमे बरबस याद हो आते है,
मौन ने फिर खंगाला
बीते लम्हों के अवशेषों को
खोज लाया
कुछ छलावे शब्दों के,
अश्कों पे टिकी ख्वाबों की नींव,
कुंठित हुए वादों का द्वंद ,
सुधबुध खोई अनुभूतियाँ ,
क्या कहू सभी पन्क्तिया बेहद सुन्दर.
बधाई स्वीकारे.
सादर
राकेश
सजा दिए मानसपट की सतह पर
फ़िर विवश व्यथित वेदनाएं
धूमिल हुई तुम्हे
भुलाने की सब चेष्टाएँ
सहज शब्दों में कही गहरी बात..........सच में भूलना इतना आसान नहीं होता.............. मन फिर से उन्ही यादों में लोटने को चाहता है........... लाजवाब अभिव्यक्ति है
विवश व्यथित वेदनाएं
bahut hi alankarik shabd.yadi kabhi kisi ne blog jagat ke rachnakaron par koi ek shabd ki paribhasha likhi to aap ke naam ke aage hoga- dard ka dost
Tatsam sabdaavali men bhi dil ko chhu gavi ye kavita.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }</a
सजा दिए मानसपट की सतह पर
फ़िर विवश व्यथित वेदनाएं
धूमिल हुई तुम्हे
भुलाने की सब चेष्टाएँ
बहुत कुछ तो ब्यान करती है यह रचना ........इन पंक्तियो मे जो मजबूरी बयान करी है आपने वह सिर्फ एक रुह का दुसरे रुह मे आवस्थित हो जाने कए बाद ही ऐसी हालत होती है लाख मजबूरी हो पर कुछ भी नही हो सकता ......यादे ही यादे होती है .....बहुत ही सुन्दर मन के भावना जहा सिर्फ प्यार होता है .....बहुत ही सुन्दर
bhaav purn rachna
shabad kosh aapka bahut vishaal hai
दिल छू लेने वाली उत्कृष्ट रचना
---
1. चाँद, बादल और शाम
2. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
behad sunder ,gehre bhav,badhai
बहुत सुंदर भाव।
आपकी व्यस्तता कम हो मेरी शुभकामना:)
शब्द पीडा में ढल गए है.
पढने के बाद आपकी कविता
एक बार फिर से
हम तनहा रह गए है
http://som-ras.blogspot.com
क्या बात है कितनी गहरी बात कही है आपने अपने इस रचना में बेहद ही खूबसूरती से कही है आपने दर्द को आपने ... नतमस्तक हो गया जी....बहोत बहोत बधाई इस नायाब रचना के लिए
अर्श
""कुछ छलावे शब्दों के,
अश्कों पे टिकी ख्वाबों की नींव,
कुंठित हुए वादों का द्वंद ,
सुधबुध खोई अनुभूतियाँ ,
भ्रम के द्वार पर
पहरा देती सिसकियाँ..
आश्वासन की छटपटाहट""
इन लाइनों की जितनी तारीफ की जाय कम है.अतीव सुंदर रचना.
भावात्मक अभिव्यक्ति..... वाह...
बहुत सुंदर अभियक्ति ! शुभकामनायें !
आदरणीय सीमाजी,
आपकी इस बेहद सुन्दर रचना और आपके सम्मान में आज सर नतमस्तक हुआ जाता है। मालिक आपको मसरूफ़ियत से नजात दिलाए ताकि आप और जल्द ब्लाग पर लिख सकें। शुभकामनाओं सहित।
बहुत अच्छी कविता, मस्तिष्क को कुछ पल रुक कर सोचने को मजबूर करती हुई !
aapki kavita me prem ki ek sacchi gaatha kahi jaa rahi hai ... maun ke apne shbd hote hai aur aapki kavita yahi kah rahi hai ..
regards
vijay
please read my new poem " झील" on www.poemsofvijay.blogspot.com
दिल को छू गयी रचना.
{ Treasurer-T & S }
bahut hi kuhbsurat rachna
badhai
sammohit sa kar diya.Shubkamnayen.
सुंदर अभिव्यक्ति।
कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामना और ढेरो बधाई .
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। जय श्री कृष्ण!
बहुत अच्छी रचना है
तेज धूप का सफ़र
बहुत अच्छी रचना है
तेज धूप का सफ़र
"सजा दिए मानसपट की सतह पर
फ़िर विवश व्यथित वेदनाएं
धूमिल हुई तुम्हे
भुलाने की सब चेष्टाएँ"
वाह... वाह-वाह... वाह-वाह-वाह....लाजवाब
विवश व्यथित वेदनाएं
धूमिल हुई तुम्हे
भुलाने की सब चेष्टाएँ,
अति भावपूर्ण पंक्तियाँ.
बधाई सुन्दर रचना पर.
Wow!! As always mind blowing. I have always loved reading you... and i always will.
Hope you r doing well??
TC
"धूमिल हुई तुम्हे
भुलाने की सब चेष्टाएँ"
Khoobsurat!
aapki ye rachna bhi bahut acchhi lagi! ( ek blog pe aapke comment se li gayee hai)-
" ढूँढ़ा खुदको को दिन रातो में
ख्वाबों ख्यालों जज्बातों में
उलझे से कुछ सवालातों में
खुदको पाया खुदको पाया
तेरी साँसों की लय में बातों में '
Nice
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