"कैसे जान पाओगे"
खामोश खडे हैं स्वर ये सारे
शब्द बेबस हैं नजर चुराने को
ऑंखें भी प्रतिज्ञाबद्ध हो रही
अश्को को कोरो तले छुपाने को
भाव भंगिमा ने श्रृंगार कर लिया
दाग-ऐ-दर्द मिटाने को
हरकते भी चंचल हो गयी कुछ
दाग-ऐ-दर्द मिटाने को
हरकते भी चंचल हो गयी कुछ
झूठी उमंग लहर दर्शाने को
बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है
http://swargvibha.freevar.com/may2009/Kavita/seemagupta.html
37 comments:
शुक्र है कुछ नया तो लिखा मिला
बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को ...........
उम्दा लाइने हैं .
जान सकोगे कैसे रह गया खुला है
जख्म कोई सिल जाने को .....
दर्द में डुबोकर तो दुनिया लिखती होगी .....पर दर्द को लफ्ज़ बना कर इतनी सुन्दरता से कलात्मक रूप देने का हुनर दुनिया में सिर्फ दो ही लोगों को है ...एक सीमा और दूसरी भी खुद सीमा ......यानि सिर्फ आप.........
बहुत खुबसूरत रचना .....अप्रैल शोवेर की तरह शकुन भरी
हमेशा की तरह एक अप्रतिम रचना मैम....और क्लाइमेक्स तो "जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है / जख्म कौन सा सिल जाने को" बस उफ़्फ़्फ़...
ऑंखें भी प्रतिज्ञाबद्ध हो रही
अश्को को कोरो तले छुपाने को
---सुन्दर भाव हैं..कितनी बेबस होंगी वो आँखें!
बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है
जख्म कौन सा सिल जाने को ?..........
-बहुत ही खूबसूरत कविता है.
अंतर मन की कशमकश को संवार -सहेज दिया हो जैसे शब्दों में.
[व्योम के पार ...आप के हस्ताक्षर की प्रतीक्षा में है.]
आपके लेखन में कुछ अजीब सी बात होती है जो हर बार कुछ नया दे जाती है... बहोत ही खुबसूरत लगे ये रचना ... बहोत बधाई..
अर्श
बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है
जख्म कौन सा सिल जाने को ?..........
waah sunder bhav
बहुत गहन और मार्मिक अभिव्यक्ति. बहुत धन्यवाद इस सशक्त संप्रेषण के लिये.
रामराम.
हमेशा की तरह ही एक बेहतरीन भावपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकार करें....
भावों को इतने कलात्मक रूप में प्रकट करना आप के ही वश की बात है सीमाजी। बहुत बहुत और बहुत ही मनोरम रचना। वाह वाह!
seema ji ,
once again a great work of words by you ...poori ki poori nazm me aapne jaan daal di hai .. waah ji waah .. dil se badhai sweekar karen..
बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है
जख्म कौन सा सिल जाने को ?..........
i cant express my feelings
बहुत शानदार अभिव्यक्ति
बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है
जख्म कौन सा सिल जाने को ?..........
आभार..
जान सकोगे कैसे रह गया खुला है
जख्म कोई सिल जाने को .....
वाह वाह!
बेहतरीन भावपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकार करें....
भाव भंगिमा ने श्रृंगार कर लिया
दाग-ऐ-दर्द मिटाने को
हरकते भी चंचल हो गयी कुछ
झूठी उमंग लहर दर्शाने को
बहुत अच्छा लिखा है...
मीत
बहुत ही खूबसूरत रचना, उस पहले चित्र से भी ज्यादा. आभार.
बहुत मनोरम रचना. गहरे भाव. धन्यवाद.
बहुत खूब, और हाँ, फोटो भी लाजवाब हैं।
----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
क्या सुन्दर शब्द जाल बुना है. वाह.
खामोश खडे हैं स्वर ये सारे
शब्द बेबस हैं नजर चुराने को
ऑंखें भी प्रतिज्ञाबद्ध हो रही
अश्को को कोरो तले छुपाने को
-भावपूर्ण खूबसूरत रचना,फोटो भी लाजवाब,बधाई स्वीकार करें....
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है
जख्म कौन सा सिल जाने को ?
बहुत सुन्दर!
बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है
जख्म कौन सा सिल जाने को ?..........
बेहद मार्मिक चित्रण हमेशा की तरह
विगत एक माह से ब्लॉग जगत से अपनी अनुपस्तिथि के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ
खामोश खडे हैं स्वर ये सारे
शब्द बेबस हैं नजर चुराने को
ऑंखें भी प्रतिज्ञाबद्ध हो रही
अश्को को कोरो तले छुपाने को
बहुत सुन्दर शब्द हैं.........मौन रह कर ही कुछ kahne की chaah नज़र आती है इन shabdon में
lajawaab rachna है, madur ehsaas है इस rachna में
बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है
जख्म कौन सा सिल जाने को ?..........
बहुत खूब ...कई दिनों बाद आपकी कविता पढ़ी .....इन शब्दों ने मन को छु लिया है
it's just outstanding,
very beautil lines after a long time!
Keep it up.
बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है
जख्म कौन सा सिल जाने को ?..........
वाह जी सीमा जी हर बार की तरह बेहतरीन शब्दों को पिरोया है आपने बहुत बहुत आभारी हैं हम
वाह - वाह!
Always beautiful
सभी पहले ही तारीफ कर चुके हैं .....खूबसूरत अल्फाज़
बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है
जख्म कौन सा सिल जाने को ?..........
kyaa kahu bahut umda likha he aapne..
me sirf TALLIYAA baja sakta hoo.
वाह वाह और वाह..
बहुत बहुत खूबसूरत रचना.. और प्रस्तुति भी उतनी ही प्यारी... ढेरों बधाई!
बेहतरीन भावपूर्ण रचना ..
दर्द की सघन अभिव्यक्ति।
इतने दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आया
तो पाया कि मेरा कर्सर दिल बनकर धड़क रहा है मगर ये दिल सिर्फ आपके ब्लॉग पर ही धड़कता है, ऐसा क्यों :)
Sundar rachanaa...
Achaa hai
jari rahe safar
mana ke chupa le gaye har dard, khushee se ,
seene me chubha hoga to askon me bahega .
kagad pe chalak jayega jo man me dukhega.
aapki kavitayen to gazab ki hain....
aapko kisi sahityek patrika me nahi pada.....
Post a Comment