4/06/2009

"कैसे जान पाओगे"


"कैसे जान पाओगे"

खामोश खडे हैं स्वर ये सारे
शब्द बेबस हैं नजर चुराने को
ऑंखें भी प्रतिज्ञाबद्ध हो रही
अश्को को कोरो तले छुपाने को

भाव भंगिमा ने श्रृंगार कर लिया
दाग-ऐ-दर्द मिटाने को
हरकते भी चंचल हो गयी कुछ

झूठी उमंग लहर दर्शाने को

बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है

जख्म कौन सा सिल जाने को ?..........


http://swargvibha.freevar.com/may2009/Kavita/seemagupta.html

37 comments:

अभिन्न said...

शुक्र है कुछ नया तो लिखा मिला

डॉ. मनोज मिश्र said...

बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को ...........
उम्दा लाइने हैं .

अभिन्न said...

जान सकोगे कैसे रह गया खुला है
जख्म कोई सिल जाने को .....
दर्द में डुबोकर तो दुनिया लिखती होगी .....पर दर्द को लफ्ज़ बना कर इतनी सुन्दरता से कलात्मक रूप देने का हुनर दुनिया में सिर्फ दो ही लोगों को है ...एक सीमा और दूसरी भी खुद सीमा ......यानि सिर्फ आप.........
बहुत खुबसूरत रचना .....अप्रैल शोवेर की तरह शकुन भरी

गौतम राजऋषि said...

हमेशा की तरह एक अप्रतिम रचना मैम....और क्लाइमेक्स तो "जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है / जख्म कौन सा सिल जाने को" बस उफ़्फ़्फ़...

Alpana Verma said...

ऑंखें भी प्रतिज्ञाबद्ध हो रही

अश्को को कोरो तले छुपाने को
---सुन्दर भाव हैं..कितनी बेबस होंगी वो आँखें!

बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है

जख्म कौन सा सिल जाने को ?..........

-बहुत ही खूबसूरत कविता है.
अंतर मन की कशमकश को संवार -सहेज दिया हो जैसे शब्दों में.

[व्योम के पार ...आप के हस्ताक्षर की प्रतीक्षा में है.]

"अर्श" said...

आपके लेखन में कुछ अजीब सी बात होती है जो हर बार कुछ नया दे जाती है... बहोत ही खुबसूरत लगे ये रचना ... बहोत बधाई..


अर्श

mehek said...

बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है

जख्म कौन सा सिल जाने को ?..........
waah sunder bhav

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत गहन और मार्मिक अभिव्यक्ति. बहुत धन्यवाद इस सशक्त संप्रेषण के लिये.

रामराम.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

हमेशा की तरह ही एक बेहतरीन भावपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकार करें....

बवाल said...

भावों को इतने कलात्मक रूप में प्रकट करना आप के ही वश की बात है सीमाजी। बहुत बहुत और बहुत ही मनोरम रचना। वाह वाह!

vijay kumar sappatti said...

seema ji ,

once again a great work of words by you ...poori ki poori nazm me aapne jaan daal di hai .. waah ji waah .. dil se badhai sweekar karen..

Anonymous said...

बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है
जख्म कौन सा सिल जाने को ?..........


i cant express my feelings

Ashish Khandelwal said...

बहुत शानदार अभिव्यक्ति

बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है
जख्म कौन सा सिल जाने को ?..........


आभार..

Mumukshh Ki Rachanain said...

जान सकोगे कैसे रह गया खुला है
जख्म कोई सिल जाने को .....

वाह वाह!

बेहतरीन भावपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकार करें....

मीत said...

भाव भंगिमा ने श्रृंगार कर लिया
दाग-ऐ-दर्द मिटाने को
हरकते भी चंचल हो गयी कुछ
झूठी उमंग लहर दर्शाने को
बहुत अच्छा लिखा है...
मीत

PN Subramanian said...

बहुत ही खूबसूरत रचना, उस पहले चित्र से भी ज्यादा. आभार.

दीपक "तिवारी साहब" said...

बहुत मनोरम रचना. गहरे भाव. धन्यवाद.

Science Bloggers Association said...

बहुत खूब, और हाँ, फोटो भी लाजवाब हैं।

----------
तस्‍लीम
साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

क्या सुन्दर शब्द जाल बुना है. वाह.

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

खामोश खडे हैं स्वर ये सारे

शब्द बेबस हैं नजर चुराने को

ऑंखें भी प्रतिज्ञाबद्ध हो रही

अश्को को कोरो तले छुपाने को
-भावपूर्ण खूबसूरत रचना,फोटो भी लाजवाब,बधाई स्वीकार करें....

Smart Indian said...

जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है
जख्म कौन सा सिल जाने को ?

बहुत सुन्दर!

प्रदीप मानोरिया said...

बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है
जख्म कौन सा सिल जाने को ?..........
बेहद मार्मिक चित्रण हमेशा की तरह
विगत एक माह से ब्लॉग जगत से अपनी अनुपस्तिथि के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ

दिगम्बर नासवा said...

खामोश खडे हैं स्वर ये सारे
शब्द बेबस हैं नजर चुराने को
ऑंखें भी प्रतिज्ञाबद्ध हो रही
अश्को को कोरो तले छुपाने को

बहुत सुन्दर शब्द हैं.........मौन रह कर ही कुछ kahne की chaah नज़र आती है इन shabdon में
lajawaab rachna है, madur ehsaas है इस rachna में

डॉ .अनुराग said...

बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है
जख्म कौन सा सिल जाने को ?..........



बहुत खूब ...कई दिनों बाद आपकी कविता पढ़ी .....इन शब्दों ने मन को छु लिया है

Rakesh Kaushik said...

it's just outstanding,
very beautil lines after a long time!

Keep it up.

मोहन वशिष्‍ठ said...

बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है
जख्म कौन सा सिल जाने को ?..........

वाह जी सीमा जी हर बार की तरह बेहतरीन शब्‍दों को पिरोया है आपने बहुत बहुत आभारी हैं हम

Malaya said...

वाह - वाह!

इरशाद अली said...

Always beautiful

अनिल कान्त said...

सभी पहले ही तारीफ कर चुके हैं .....खूबसूरत अल्फाज़

अमिताभ श्रीवास्तव said...

बोझिल होकर अधरों ने हाँ कर दी
मुस्कान सुधा छलकाने को
जान सकोगे कैसे, रह गया खुला है

जख्म कौन सा सिल जाने को ?..........


kyaa kahu bahut umda likha he aapne..

me sirf TALLIYAA baja sakta hoo.

Shikha .. ( शिखा... ) said...

वाह वाह और वाह..
बहुत बहुत खूबसूरत रचना.. और प्रस्तुति भी उतनी ही प्यारी... ढेरों बधाई!

महेन्द्र मिश्र said...

बेहतरीन भावपूर्ण रचना ..

जितेन्द़ भगत said...

दर्द की सघन अभि‍व्‍यक्‍ति‍।

इतने दि‍नों बाद आपके ब्‍लॉग पर आया
तो पाया कि‍ मेरा कर्सर दि‍ल बनकर धड़क रहा है मगर ये दि‍ल सि‍र्फ आपके ब्‍लॉग पर ही धड़कता है, ऐसा क्‍यों :)

आशीष कुमार 'अंशु' said...

Sundar rachanaa...

Girish Kumar Billore said...

Achaa hai
jari rahe safar

RAJ SINH said...

mana ke chupa le gaye har dard, khushee se ,

seene me chubha hoga to askon me bahega .
kagad pe chalak jayega jo man me dukhega.

स्वप्निल said...

aapki kavitayen to gazab ki hain....
aapko kisi sahityek patrika me nahi pada.....