बिखेरता रहा वादों के पुष्प वो
मै आँचल यकीन का बिछाये
उन्हें समेटती रही....
अपने स्पर्श की नमी से वो
उन पुष्पों को जिलाता रहा
मै मासूम शिशु की तरह
उन्हें सहेजती रही......
हवाओं को रंगता रहा वो
इन्द्रधनुषी ख्वाबो की तुलिका से
मै बंद पलकों मे
उन्हें बिखेरती रही ....
आज सभी वादों का वजूद
अपना आस्तित्व खोने लगा .......
मै अवाक टूटते मिटते हुए
उन्हें देखती रही........
http://swargvibha.0fees.net/july2009/Kavita/seema%20gupta.html
42 comments:
मै अवाक टूटते मिटते हुए
उन्हें देखती रही........
बहुत सुन्दर रचना. आभार.
'........मासूम शिशु की तरह
उन्हें सहेजती रही...... '
bahut hi khubsurat
bhaav-abhivyakti hai.
Sundar rachna hai Seema ji.
आज सभी वादों का वजूद
अपना आस्तित्व खोने लगा .......
मै अवाक टूटते मिटते हुए
उन्हें देखती रही........
--वाकई एक मासूम अभिव्यक्ति--बेहतरीन!!
आज सभी वादों का वजूद
अपना आस्तित्व खोने लगा .......
मै अवाक टूटते मिटते हुए
उन्हें देखती रही........
bahut khub . sundar bhav . badahi
सीमा जी,
होली की मौज मस्ती के बाद हर किसी ब्लोगर के शेर, ग़ज़ल, कवितायेँ सत्य के इतने करीब क्यों पहुँच गई? आप भी समय के साथ महसूस होने वाले सत्य को ही शब्द दे ही उठी............
आज सभी वादों का वजूद
अपना आस्तित्व खोने लगा .......
पूर्ण कविता जिन्दगी के सच को ही उजागर कर रही है.
सुन्दर, सत्य प्रस्तुति पर नमन.
चन्द्र मोहन गुप्त
shishu wali lines waah,sunder bhav,sunder rachana.
"मै आँचल यकीन का बिछाये..." ये शब्द कई बार लगता है जैसे गुलाम हों आपके। मन में उमड़ते कुछ को एकदम उकेर पाना....
इतने सहज कोमल हो कर
वाह
आखिरी पैराग्राफ़ छोड़कर बाकी सब जारी रहे। सुन्दर भाव!
मै आँचल यकीन का बिछाये ...ye sentance mujhe jhakjhor ke rakh diya ... kya kamaal ki parikalpana hai .itani umda baat aapke lekhani se hi baahar aasakti hai.... ati sundar..
badhaee
arsh
हमेशा की तरह रेशमी ज़ज़बात शब्दों में पिरो दिए हैं आपने...बेहद खूबसूरत रचना...वाह.
नीरज
बहुत सुन्दर रचना है!
इक प्रश्न पूछू क्या आप मुझसे नाराज़ हो?
---
गुलाबी कोंपलें
" @ विनय आपसे कोई नाराजगी नहीं है....इधर कुछ दिनों से काम में अधिक व्यस्त होने की वजेह से ब्लॉग पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाई और आपकी कई रचनाये शायद नहीं देख पाई..."
Regards
Bahut khub !
हवाओं को रंगता रहा वो
इन्द्रधनुषी ख्वाबो की तुलिका से
मै बंद पलकों मे
उन्हें बिखेरती रही ....
बहुत सुंदर... शब्द....
मीत
आज सभी वादों का वजूद
अपना आस्तित्व खोने लगा .......
मै अवाक टूटते मिटते हुए
उन्हें देखती रही........
बहुत खूब सीमा जी ...बहुत ही सुन्दर रचना है !!!!!!!!
sirf wwwwwaaaaaaaaaaaaaahhhhhhhhhhhhhhh.
sirf wwwwwaaaaaaaaaaaaaahhhhhhhhhhhhhhh.
बहुत ही खूबसूरत भाव.
फ़ुरसतिया जी से सहमत.हमको ये वाले तक ही आकर रुकना पडा .
हवाओं को रंगता रहा वो
इन्द्रधनुषी ख्वाबो की तुलिका से
मै बंद पलकों मे
उन्हें बिखेरती रही ....
नायाब रचना.
रामराम.
बहुत सुन्दर रचना है!
बेहद खूबसूरत रचना...
अपने स्पर्श की नमी से वो
उन पुष्पों को जिलाता रहा
मै मासूम शिशु की तरह
उन्हें सहेजती रही......
वाह क्या बात है, बहुत ही सूंदर.
धन्यवाद
SEEMA JEE ,
JAB KABHEE AAPKE BLOG PAR
AANE KAA SUAVSAR MILTAA HAI,KOEE
N KOEE "SUCHCHA"MOTEE HAATH MEIN
LAG HEE JAATAA HAI.AB DEKHIYE N,
AAPKEE NIMN PANKTIYON KO KAUN PADH-
SUNKAR SAHEJNE KEE KAUSHISH NAHIN
KAREGA---
BIKHERTAA RAHAA
VAADON KE PUSHP VO
MAIN AANCHAL YAQEEN
KAA BICHHAYE
UNHEN
SAMETTEE RAHEE
KHOOB!BAHUT KHOOB!!BAHUT HEE KHOOB!
अनुभूति के स्तर पर आपकी कवितायें बहुत मारक हैं -इसलिए एक बार मैंने कहा था (याद हो या न याद हो! ) मुझे आपकी कवितायेँ पढने में डर सा लगता है क्योंकि ये सहज ही संवाद बनाती हैं और आत्मोत्सर्ग ( एल्त्रुइज्म ) प्रवृत्ति को सहसा ही दुलरा जाती हैं !
यह कविता भी मारकता की वही रुख अख्तियार किये है !
बहुत ही सुन्दर भाव है..और उतनी ही गहराई भी...!हम न जाने कितनी चीज़ों को रोजाना टूटते बिखरते देखते है....अवाक्....खड़े हुए....!धन्यवाद..
ख्वाब, वादे, स्पर्श....अस्तित्व ....गहरी सोच और खूबसूरत एहसास से भरी नज़्म.........
अक्सर इंसान के जीवन में कितनी ही विश्वास, कितनी ही सचाई रो टूट ती और जुड़ती रहती है
आपकी रचनाओं में अजीब सी बैचनी छटपटाहट दिखाई देती है जो आपके लेखन की सार्थक्त को प्रगट करती है
सीमा जी आपने बेहतरीन कविताई सोच लिखी है । पढ़कर काफी अच्छा लगा । खासकर ये पंक्तिया मुझे काफी बेहतर लगा ।
बिखेरता रहा वादों के पुष्प वो
मै आँचल यकीन का बिछाये
उन्हें समेटती रही....शुक्रिया
beutifully expressed through words & submitted photos
वादोँ के पुष्प
यादोँ मेँ समेटते रहे
सार्थक ओर सारगर्भित
रोचक ओर साहित्यिक
सुन्दर शब्द संयोजन
वायदे ओर यकीं
पुष्प ओर आँचल
..........लाजवाब
वाह बहुत ही खूबसूरत कविता! एक-एक पंक्ति बेहतर से बेहतरीन।
बड़ी नाज़ुक सी कविता... बधाई!
दर्द की अभिव्यक्ति में आपको महारत हासिल है.
सुन्दर शब्द संयोजन है ...शुक्रिया.
बिखेरता रहा वादों के पुष्प वो
मै आँचल यकीन का बिछाये
उन्हें समेटती रही....
अपने स्पर्श की नमी से वो
उन पुष्पों को जिलाता रहा
मै मासूम शिशु की तरह
उन्हें सहेजती रही......
बहुत ही खूबसूरत रचना....वाह ...!!
मै मासूम शिशु की तरह
उन्हें सहेजती रही...... बहुत सुन्दर रचना
कोमल संवेदनाओं का बेहतरीन चित्रण...
हवाओं को रंगता रहा वो
इन्द्रधनुषी ख्वाबो की तुलिका से
मै बंद पलकों मे
उन्हें बिखेरती रही ....
खूबसूरत रचना.... लाजवाब
आज सभी वादों का वजूद
अपना आस्तित्व खोने लगा .......
मै अवाक टूटते मिटते हुए
उन्हें देखती रही........
जिंदगी की कटु सच्चाइयों को रेखांकित करती कविता।
बेहतरीन.............. वाह..
Aadarniya seemaajee, itanaa behatareen kyon likh deteen hain aap ? haa haa. Hamaaree taraf se bahut bahut badhaaiyaan. is atisundar kavitaa ke liye.
आज सभी वादों का वजूद
अपना आस्तित्व खोने लगा .......
मै अवाक टूटते मिटते हुए
उन्हें देखती रही........
हकीकत के करीब ले जाती कविता।
आज सभी वादों का वजूद
अपना आस्तित्व खोने लगा .......
मै अवाक टूटते मिटते हुए
उन्हें देखती रही........
बेहतरीन लिखा आपने
har line har sabd itna accha hai ki sabd hi nhi hai mere pass tariff ke liye.
dhero badhiyo ke sath dhero subhkamnayae
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