एक अधूरे गीत का
मुखडा मात्र हूँ,
तुम चाहो तो
छेड़ दो कोई तार सुर का
एक मधुर संगीत में
मै ढल जाऊंगा ......
खामोश लब पे
खुश्क मरुस्थल सा जमा हूँ
तुम चाहो तो
एक नाजुक स्पर्श का
बस दान दे दो
एक तरल धार बन
मै फिसल जाऊंगा......
भटक रहा बेजान
रूह की मनोकामना सा
तुम चाहो तो
हर्फ बन जाओ दुआ का
ईश्वर के आशीर्वाद सा
मै फल जाउंगा.....
मै फल जाउंगा.....
राख बनके अस्थियों की
तुम चाहो तो
थाम ऊँगली बस
एक दुलार दे दो
बन के शिशु
मातृत्व की ममता में
मै पल जाऊंगा .....
http://www.sahityakunj.net/LEKHAK/S/SeemaGupta/tum_chaho_to.htm
53 comments:
राख बनके अस्थियों की
तिल तिल मिट रहा हूँ
तुम चाहो तो
थाम ऊँगली बस
एक दुलार दे दो
बन के शिशु
मातृत्व की ममता में
मै पल जाऊंगा .....
नायाब रचना. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
अरे पहली टिप्पणी तो कहीं और हो गयी इस कविता पर ! हाँ यह आपकी बेहतरीन कविताओं मे से एक होने जा रही है -बधाई !
Duaao ke liye aamin, ichchhao ke liye shubh kaamnaye...
sundar abhivyakti, badhaai.
बढ़िया है। सारी तमन्नायें पूरी हों!
आपकी रचनाएं बहेतरीन होती हैं । ये कविता भी उनमें से एक है । बधाई
भटक रहा बेजान
रूह की मनोकामना सा
तुम चाहो तो
हर्फ बन जाओ दुआ का
ईश्वर के आशीर्वाद सा
मै फल जाउंगा.....
नायब तरीके लिखा है आपने ,बहोत ही खुबसूरत अल्फाजों से सजी कविता....उतने ही सुन्दर भाव
अर्श
बहुत सुन्दर शब्दों से पिरोई बढ़िया रचना . धन्यवाद.
इस बार कुछ कहने का नहीं अपितु बस पढ़ते रहने का मन कर रहा है.
अति सुन्दर !!!!
खामोश लब पे
खुश्क मरुस्थल सा जमा हूँ
तुम चाहो तो
एक नाजुक स्पर्श का
बस दान दे दो
एक तरल धार बन
मै फिसल जाऊंगा......
बहुत सुन्दर शब्दों से पिरोई बढ़िया रचना
हर्फ बन जाओ दुआ का
ईश्वर के आशीर्वाद सा
मै फल जाउंगा.....
भावपूर्ण कविता.
गहराई समेटे हुए.
वाह सीमा जी, बेहतरीन समर्पण गीत.... बधाई स्वीकारें..
बन के शिशु
मातृत्व की ममता में
मै पल जाऊंगा waah behad sundar bhav,sundar kavita bahut badhai.
Aadarneey Seema ji ,
Sorry for late arrival, I was on tour for so many days...
ek bahut pyaari si nazm , jiska har lafz kabile tareef hai .. aur specially ...ye lines
राख बनके अस्थियों की
तिल तिल मिट रहा हूँ
तुम चाहो तो
थाम ऊँगली बस
एक दुलार दे दो
बन के शिशु
मातृत्व की ममता में
मै पल जाऊंगा .....
sach hi to hai .. kya behatreen likha hai ... padhkar bada sakun mila....
aapki lekhni ko salaam ..
maine bhi kuch naya likha hai , krupya padhiyenga ...
aapka
vijay
राख बनके अस्थियों की
तिल तिल मिट रहा हूँ
तुम चाहो तो
थाम ऊँगली बस
एक दुलार दे दो
बन के शिशु
मातृत्व की ममता में
मै पल जाऊंगा .....
shayad koi naari hi aisi sneh bhari paati likh sakti thi...
भटक रहा बेजान
रूह की मनोकामना सा
तुम चाहो तो
हर्फ बन जाओ दुआ का
ईश्वर के आशीर्वाद सा
मै फल जाउंगा.....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...
मीत
गुनगुनाने के लिये एक सुन्दर भावप्रद गीत..
बन के शिशु
मातृत्व की ममता में
मै पल जाऊंगा ....
क्या कहने हैं...वाह वा....लिखते रहिये...ऐसे ही...शुभकामनाएं.
नीरज
बहुत सुन्दर..
अंतिम पंक्तिया दिल को छु गई..
Great One,
An absolute sitter..
Amit verma
राख बनके अस्थियों की
तिल तिल मिट रहा हूँ
तुम चाहो तो
थाम ऊँगली बस
एक दुलार दे दो
बन के शिशु
मातृत्व की ममता में
मै पल जाऊंगा .....
बहुत सुन्दर विचार हैं, हार्दिक बधाई।
तुम चाहो तो
एक नाजुक स्पर्श का
बस दान दे दो....
मातृत्व की,
आशीष की,
अभिव्यक्ति की,
....दिनों बाद एक शिशु-उच्छ्वास से ओतप्रोत मां के शब्दार्थ. और वे पंक्तियां..
मां मुझे
मत भूल जाना,
याद आना इस तरह
जैसे सुबह की
ओस,
नभ की रोशनी
या हृदय में उतरी हुई
अमराइयां...
अथाह हार्दिक अभिव्यक्ति पर बधाई!
खामोश लब पे
खुश्क मरुस्थल सा जमा हूँ
तुम चाहो तो
एक नाजुक स्पर्श का
बस दान दे दो
एक तरल धार बन
मै फिसल जाऊंगा.....
आपकी कविताओं में जो गहरा एहसास होता है वो इस कविता की हर छंद में बखूबी नज़र आता है..........
लगता है जैसे स्वतः ही बहती हुयी आ रही कविता, अनुपम कृति है यह आपकी
खामोश लब पे
खुश्क मरुस्थल सा जमा हूँ
तुम चाहो तो
एक नाजुक स्पर्श का
बस दान दे दो
एक तरल धार बन
मै फिसल जाऊंगा......
बहुत खूब।
राख बनके अस्थियों की
तिल तिल मिट रहा हूँ
तुम चाहो तो
थाम ऊँगली बस
एक दुलार दे दो
बन के शिशु
मातृत्व की ममता में
मै पल जाऊंगा .....
kya baat he..lazavaab..
antim panktiyo ne mujhe vakai me aanand aa gaya..iske nepathya me jo mene vichaar kiya usane mujhe darshanlok me daal diya..
लाजबाब...अति सुन्दर.
बहुत सुन्दर रचना ....
बन के शिशु
मातृत्व की ममता में
मै पल जाऊंगा .....
आप की इस कविता के लिये तो तारीफ़ के शव्द भी कम पड रहे है, बहुत ही सुंदर.
धन्यवाद
बहुत सुन्दर. अपूर्णता से पूर्णता की ओर किसी का साथ लेकर.
avarnniya, adbhut, avismarniya
भटक रहा बेजान
रूह की मनोकामना सा
तुम चाहो तो
हर्फ बन जाओ दुआ का
ईश्वर के आशीर्वाद सा
मै फल जाउंगा.....
वाह जी वाह आपकी हर रचना बेहतरीन होती है और यह कविता भी उन्हीं बेहतरीन मोतियों में से एक है बारम्बार बधाई अच्छी कविता के लिए
देरी के लिए माफी
खामोश लब पे
खुश्क मरुस्थल सा जमा हूँ
तुम चाहो तो
एक नाजुक स्पर्श का
बस दान दे दो
एक तरल धार बन
मै फिसल जाऊंगा......
जितनी नाज़ुक ख्वाहिश, उतनी नाज़ुक कविता.
बेमिसाल
!!!!!!!!!!!!!!!!
राख बनके अस्थियों की
तिल तिल मिट रहा हूँ
तुम चाहो तो
थाम ऊँगली बस
एक दुलार दे दो
बन के शिशु
मातृत्व की ममता में
मै पल जाऊंगा .....
सुन्दर रचना कही है आपने। बधाई।
हर्फ बन जाओ दुआ का
ईश्वर के आशीर्वाद सा
मै फल जाउंगा.....
kaafi dino baad duaaon ki viraasat mili
compliments for a good poetry
beautiful poetry
good relections of feelings
aaya tow kafi dino baad pr kawita ko pdhkr aisa lga jaise roj hi pdhta hoon aur roj hi padhta rhoon .
aaya tow kafi dino baad pr kawita ko pdhkr aisa lga jaise roj hi pdhta hoon aur roj hi padhta rhoon .
ागर बेहतरीन से बढकर कोई ओर शब्द होता तो मैं वो ही प्रयोग करता........आभार
आप का रोमांटिक ब्लॉग देखा तो अच्छा लगा कि
रोमांटिक के कितने दीवाने है
कितने परवाने है
पर........ कितने अपने है
कितने बेगाने है
इस भीड़ में कई तराने है
पर अफशोश
सब अनजाने है
आप का . . . . .
adv.ambrish@gmail.com
सच
प्रेम के कितने रंग होते हैं
सच
प्रेम कितना तरल होता है
सच
आप कितना अच्छा लिखती हैं
सच
आप का ब्लॉग कितना सुंदर है
सच
आपके भीतर का कलाकार कितना सुघर है
सच
सब आपकी रचनाओं जितना सुंदर
सच
आपके ब्लॉग जितना सुंदर
सच
आपकी रचनाओं जितना सुंदर
सच
आपके गहरे एहसास जितना सुंदर
सच
आपके अंदर की ममता जितना सुंदर
सच
आपके अंतरात्मा जितना सुंदर
सच
आपकी संपूर्णता जितना सुंदर
पहली-पहली बार
पहली-पहली टिप्पणी
पहली-पहली भावनाएं
पहली-पहली बार ढेरों सम्मान
आपके लिए.
बन के शिशु
मातृत्व की ममता में
मै पल जाऊंगा .....
हमने दीर्घ निश्वास लेकर शांति का अनुभव किया. बहुत सुन्दर रचना.
"तुम चाहो तो
थाम ऊँगली बस
एक दुलार दे दो
बन के शिशु
मातृत्व की ममता में
मै पल जाऊंगा ....."
पूरी रचना को कई बार पढ गया. बहुत सशक्त और भावपूर्ण तरीके से की गई रचना!!
सस्नेह -- शास्त्री
-- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.
महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)
सचमें अजब केमिस्ट्री है साथ, स्पर्ष और स्नेह की!
राख बनके अस्थियों की
तिल तिल मिट रहा हूँ
तुम चाहो तो
थाम ऊँगली बस
एक दुलार दे दो
बन के शिशु
मातृत्व की ममता में
मै पल जाऊंगा .....
फिर फिर बधाई इस सुंदर कविता के लिए।
wow...wonderfull......
खामोश लब पे
खुश्क मरुस्थल सा जमा हूँ
तुम चाहो तो
एक नाजुक स्पर्श का
बस दान दे दो
एक तरल धार बन
मै फिसल जाऊंगा......
meri man pasand panktiyan. badhaai ho.
अंतिम पैराग्राफ तो कमाल का है
आपको पता है सीमाजी आप अब अजब लिखने लगी हैं। बहुत ही लाजवाब रच बैठी हैं जी आप! क्या कहा जाए आपकी तारीफ़ में बडी़ ही मुश्किल आन पड़ी है। आप से ही पूछ कर नए शब्द गढ़ने पड़ेंगे आप की रचना की तारीफ़ के लिए। हा हा।
classical one
bahut sunder
कोमल सी मन को छू लेनेवाली रचना।
रंगों के पर्व होली की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामना .
shuru se ant tak zordaar hai..mujhe shuruvaat aur ant ki panktiyaan sabse achhi lagi
bahut hi kuhb surat bahut hi umda dhero badhiya
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