दमे फिराक था की लम्हा क़यामत का कसूर क्या था मेरी नादान मुहब्बत का लिखी हैं सिर्फ मेरी बेगुनाही की सजाएँ कानून अजब गजब है उनकी अदालत का .......... आपको बहुत से बधाइयाँ आप हर रोज बेहतर से बेहतरीन लिखते जा रहे हों.
आपसे एक गुज़ारिश है सीमाजी, या तो आप उड़ कर सामने आ जाइए, या हमारे क़त्ल को ख़ंजर भिजवा दीजिये. जज़्बात का इतना खूबसूरत खज़ाना हमने नहीं देखा है जी . हम बारहा आपके कायल हुए जाते हैं. मालिक बड़ी उम्र दराज़ करे आपकी .
महोदय ,जय श्रीकृष्ण =मेरे लेख ""ज्यों की त्यों धर दीनी ""की आलोचना ,क्रटीसाइज्, उसके तथ्यों की काट करके तर्क सहित अपनी बिद्वाता पूर्ण राय ,तर्क सहित प्रदान करने की कृपा करें
29 comments:
दम -ऐ -फिराक मे निकली थी जान मेरी ,
फ़िर क्यूँ लिखी गईं सजाएं नाम पे तेरी ???
आज की मैंने ये पहली पोस्ट पढी है !
मेरे पास तारीफ़ के लिए शब्द नही है !
सिर्फ़ इतना ही ...लाजवाब ! ..
शुभकामनाएं !
"Tau Je, thanks a lot for your wish along a word of appreciation early morning"
Regards
सजाएँ मिलती हैं, यही है दस्तूर |
हो या ना हो आपका कसूर |
अच्छी अभिव्यक्ति है, आपने दो पंक्तियों में ही काफी कुछ कह दिया है
on today's post i m speechless.
this is owesome
best wishes
Rakesh Kaushik
sirf yahi kahunga mukkamal likha hai aapne fir se seema ji.......... badhai swikaren..
regards
हमेशा की ही तरह.. लाजबाब
सजाएँ होती है फ़िर समझ लो जिन्दगी उनकी,
अगर मरने वाला हो ह्रदय की बंदगी उनकी.
यही जीवन है, जो आपने कहा है. बस एक पल है जिसके दायरे में हम जीते है.
इन छोटी सी लाइनों की तारीफ के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं....
पर फ़िर भी इतना कह देता हूँ की..
सुभान अल्लाह...
दमे फिराक था की लम्हा क़यामत का
कसूर क्या था मेरी नादान मुहब्बत का
लिखी हैं सिर्फ मेरी बेगुनाही की सजाएँ
कानून अजब गजब है उनकी अदालत का ..........
आपको बहुत से बधाइयाँ आप हर रोज बेहतर से बेहतरीन लिखते जा रहे हों.
सुन्दर
सजाएँ मिलती हैं, यही है दस्तूर |
हो या ना हो आपका कसूर
वाह जी बहुत ही लाजवाव
सुंदर अतिसुंदर,सुंदरतम!!
बहुत खूब !
अजी जान तो आप साथ मे ले गई फ़िर सजा केसी , बहुत खुब
धन्यवाद
wah-wah
lajawab, ati sundar.
मैं ताऊ से सहमत हूँ !
दम -ऐ -फिराक मे निकली थी जान मेरी ,
फ़िर क्यूँ लिखी गईं सजाएं नाम पे तेरी ???
the above need to be understand
between the lines u r still live
regards
दम -ऐ -फिराक मे निकली थी जान मेरी,
फ़िर क्यूँ लिखी गईं सजाएं नाम पे तेरी.
वाह लाजवाब.शुभकामनाएं.
very nice
आपसे एक गुज़ारिश है सीमाजी, या तो आप उड़ कर सामने आ जाइए, या हमारे क़त्ल को ख़ंजर भिजवा दीजिये. जज़्बात का इतना खूबसूरत खज़ाना हमने नहीं देखा है जी . हम बारहा आपके कायल हुए जाते हैं. मालिक बड़ी उम्र दराज़ करे आपकी .
वाह!आप वाक़ई दाद की हक़दार हैं।
अगर आप मेरी बात को मज़ाक़ में ना उड़ा दें तो यह कहूंगा कि आप को 'मलिका-ए-तख़्खयुल' कह दिया जाए तो ग़लत नहीं होगा।
कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया आपने। बधाई।
'i am highly obliged and thank ful to all of you for your support and encouragement. ' with Regards
महोदय ,जय श्रीकृष्ण =मेरे लेख ""ज्यों की त्यों धर दीनी ""की आलोचना ,क्रटीसाइज्, उसके तथ्यों की काट करके तर्क सहित अपनी बिद्वाता पूर्ण राय ,तर्क सहित प्रदान करने की कृपा करें
वाह...........
दो पंक्तिंया सिर्फ आपके लिये..
सुराही में समंदर दीखता है
मुझे तुझ में कलंदर दीखता है
--yM
ये तो माइक्रो गजल हो गई। सुन्दर!
beutiful lines
badhiya
दम भर को जरा दम भी ले-ले ओ फिराक .....
मैं जो आऊंगा .....
तेरी जान निकल जायेगी !!
(भूत जो हूँ )
Post a Comment