मंजिल नहीं थी कोई मगर गामज़न हुए
ख़ुद राह चुन के तेरी तमन्ना लिए हुए
फिर साया मेरा देके दगा चल दिया किधर
हम आईने को तकते रहे जाने किस लिए
दिलदार ने भुला दिया पर हमने उसको यूँ
सजदे सुकून-ऐ-दिल के लिए कितने कर लिए
अल्फाज़ धोका दे गए जब आखिरश हमें
हमने भी उम्र भर के लिए होंठ सी लिए
24 comments:
it seems a lot to go ....everyday a finest one....how u maintain it......very nice yaar
अल्फाज़ धोका दे गए जब आखिरश हमें
हमने भी उम्र भर के लिए होंठ सी लिए
i think this is the heart of this n it had lots of pain .
beautiful
Rakesh Kaushik
फिर साया मेरा देके दगा चल दिया किधर
हम आईने को तकते रहे जाने किस लिए
बेहतरीन बात लिख दी यहॉं आपने।
बहुत ही अच्छा।
मंजिल नहीं थी कोई मगर गामज़न हुए
ख़ुद राह चुन के तेरी तमन्ना लिए हुए
well said.....
फिर साया मेरा देके दगा चल दिया किधर
हम आईने को तकते रहे जाने किस लिए
behtreen lines!!!!!!!!!
अल्फाज़ धोका दे गए जब आखिरश हमें
हमने भी उम्र भर के लिए होंठ सी लिए
very heavy sh'er!
मंजिल नहीं थी कोई मगर गामज़न हुए
ख़ुद राह चुन के तेरी तमन्ना लिए हुए
फिर साया मेरा देके दगा चल दिया किधर
हम आईने को तकते रहे जाने किस लिए
bahut hi behtreen likha hai....
bdhai ho
hamesha ki tarah sundar lafz, sundar chayan
दिलदार ने भुला दिया पर हमने उसको यूँ
सजदे सुकून-ऐ-दिल के लिए कितने कर लिए
वाह ! किसी सूफी फकीर की याद आगई ताऊ को !
शुभकामनाएं
बहुत सुंदर और भावमयी रचना !
धन्यवाद !
अल्फाज़ धोका दे गए जब आखिरश हमें
हमने भी उम्र भर के लिए होंठ सी लिए
bahut umda aur bahut hi achchhi shayari pesh ki hai aapne,humne bhi umr bhar ke liye hoth si liye....bahut hi sundar bahut hi achchha.
thanx for such a heart twisting creation
sabhi posts me painting ka chayan kabile tarif he.
hoth chup hue
to nigahon ne kiya bayan
armaa dil ke khatam to n hue
अल्फाज़ धोका दे गए जब आखिरश हमें
हमने भी उम्र भर के लिए होंठ सी लिए.
Alfaaj behatareen lage.badhai.
बहुत बेहतरीन!!!
अल्फाज़ धोका दे गए जब आखिरश हमें
हमने भी उम्र भर के लिए होंठ सी लिए
अरे वाह ! क्या बात हे
धन्यवाद सुन्दर शेरॊ के लिये
बेहतरीन ग़ज़ल है सीमा जी ! धन्यवाद
Priy Seema jee, mere janmdin 4th september aur aajkee aapkee rachnayain padhkar dil bahut khush hua. Aapne bahut sunder rachnayain prastut kee. Bahut badhai aur dheron shubhkaamnayain.
मंजिल नहीं थी कोई मगर गामज़न हुए
ख़ुद राह चुन के तेरी तमन्ना लिए हुए
फिर साया मेरा देके दगा चल दिया किधर
हम आईने को तकते रहे जाने किस लिए
बहुत सुंदर!
seema ji me aapka blog lagatar padhata aaya hun magar is ghazal me mukhada aur antare me thora samanjasya kam dikha muje isliye maine esa kaha wese hamesha ki tarah isme bhi bejor prastuti di hai aapne.like.......
फिर साया मेरा देके दगा चल दिया किधर
हम आईने को तकते रहे जाने किस लिए
ese umda rachana ke liye badhai.......
regards
Arsh
बहुत अच्छा लिखा है। बधाई
सीमा जी आप की गज़लों में एक दर्द दिखाई देता है। मुझे लगता है कियह दर्द केवल अकेले का नही हो सकता है यही सभी का हालहै। बहुत अच्छी है आप कि ग़ज़लें
अल्फाज़ धोका दे गए जब आखिरश हमें
हमने भी उम्र भर के लिए होंठ सी लिए
seema ji hoth see sakte hai par hatho ko kesse roka ja sakta hai. we to dil ki baat hotho se na keh kar apni baat likh hi dete hai..
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