8/30/2010

"कभी यूँ भी हो "


"कभी यूँ भी हो "

कभी यूँ भी हो
देखूं तुम्हे ओस में भीगे हुए
रेशमी किरणों के साए तले सारी रात


चुन लूँ तुम्हारी सिहरन को
हथेलियों में थाम तुम्हारा हाथ

महसूस कर लूँ तुम्हारे होठों पे बिखरी
मोतियों की कशमश को
अपनी पलकों के आस पास

छु लूँ तुम्हारे साँसों की उष्णता
रुपहले स्वप्नों के साथ साथ

ओढ़ लूँ एहसास की मखमली चादर
जिसमे हो तुम्हरी स्निग्धता का ताप

कभी यूँ भी हो .....
देखूं तुम्हे ओस में भीगे हुए
रेशमी किरणों के साए तले सारी रात


23 comments:

P.N. Subramanian said...

"ओढ़ लूँ एहसास की मखमली चादर
जिसमे हो तुम्हरी स्निग्धता का ताप"
सुन्दर रचना और सुन्दर अभिव्यक्ति.

मुकेश कुमार सिन्हा said...

khubshurat .........:)

ek pyari ahsaas dilati rachna!!

Parul kanani said...

its so beautiful...!

vandana gupta said...

wah...........behad khoobsoorat ahsaas...........sundar bhav sanyojan.

Rakesh Kaushik said...

Kya baat hai. madam

Fantastic. Owesome


Realy close to the thought of many lovers!


Rakesh Kaushik

रोहित said...

bahut sundar..
dil ko chuti hui rachna!

विवेक सिंह said...

बहुत सुन्दर ।

अभिन्न said...

बहुत ही रोमानी, आपकी यह कविता आपकी अन्य कविताओं की तरह नहीं है ,बहुत बहुत बहुत ही अच्छी लगी यह कविता . निम्न पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगी
लूँ तुम्हारी सिहरन को
हथेलियों में थाम तुम्हारा हाथ
और;
महसूस कर लूँ तुम्हारे होठों पे बिखरी
मोतियों की कशमश को
अपनी पलकों के आस पास
उम्मीद है आपके अगले संग्रह में इसी तरह की कविताये पढने को मिलेंगी

आपका अख्तर खान अकेला said...

bhn simaa ji aapki rchnaa pdh kr aesaa lgaa ke ise baar baar pdho or men baar baar pdhta rhaa hr baar nyin umng,nyaaflsfaa,nyaa ehsaas nye alfaaz nyaa andaaz maashaa allah mzaa agyaa bdhaayi ho. akhtar khan akeal kota rajsthan

mai... ratnakar said...

wah!! kabhee yoon bhee ho ki itanee khoobsoorat panktiya ek ke baad ek lagatar padhne ko miltee rahen
bahut sundar likha hai

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर और नाजुक!

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

और कभी यूँ भी हो कि.......
तुम्हारे अहसासों में बीत जाए ये रात
और सुबह को जिस्म में भरा हो उसांसों का ताप
जब उठूँ तो तुम्हारी आँखें मुझे देखती मिले
और एक नया सवेरा देखूं उन नवीली आँखों से....... !!

दिगम्बर नासवा said...

ओढ़ लूँ एहसास की मखमली चादर
जिसमे हो तुम्हरी स्निग्धता का ताप ..

कभी यूँ भी हो ....
बहुत ही गहरी और लाजवाब ... किसी ख्वाब की तरह मखमल सी नर्म नज़्म .... अंदर तक एहसास में डुबो जाती है ...

zeashan haider zaidi said...

So nice!

Hindi Tech Guru said...

बहुत सुन्दर और नाजुक!

मेरी और से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर बहुत बहुत बधाई !

Anonymous said...

jajbaat nahi
ye
mahsoosna
hai

रचना दीक्षित said...

सुन्दर रचना और सुन्दर अभिव्यक्ति.

RAJ SINH said...

अरसे बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ .और अनुभूति के एक गहरे एहसास के साथ लिखी कुछ पंक्तियों में लिपटी सघनता मन छू गयी .

बहुत ही सुन्दर !

मोहन वशिष्‍ठ said...

छु लूँ तुम्हारे साँसों की उष्णता
रुपहले स्वप्नों के साथ साथ

very nice seema ji congrats

डॉ. मोनिका शर्मा said...

"ओढ़ लूँ एहसास की मखमली चादर
जिसमे हो तुम्हरी स्निग्धता का ताप"
.............................
सुन्दर रचना और सुन्दर अभिव्यक्ति....बहुत ही सुन्दर !

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बहुत खूब, हर बार की तरह।
---------
ब्लॉगर्स की इज्जत का सवाल है।
कम उम्र में माँ बनती लड़कियों का एक सच।

जयकृष्ण राय तुषार said...

seemaji aapki kalpnasheelta ka koi jabab nahi hai

मनोज अबोध said...

सीमा जी,
कविता अच्‍छी करती हैं आप
बधाई