"कभी यूँ भी हो "
कभी यूँ भी हो
देखूं तुम्हे ओस में भीगे हुए
रेशमी किरणों के साए तले सारी रात
चुन लूँ तुम्हारी सिहरन को
हथेलियों में थाम तुम्हारा हाथ
महसूस कर लूँ तुम्हारे होठों पे बिखरी
मोतियों की कशमश को
अपनी पलकों के आस पास
छु लूँ तुम्हारे साँसों की उष्णता
रुपहले स्वप्नों के साथ साथ
ओढ़ लूँ एहसास की मखमली चादर
जिसमे हो तुम्हरी स्निग्धता का ताप
कभी यूँ भी हो .....
देखूं तुम्हे ओस में भीगे हुए
रेशमी किरणों के साए तले सारी रात
23 comments:
"ओढ़ लूँ एहसास की मखमली चादर
जिसमे हो तुम्हरी स्निग्धता का ताप"
सुन्दर रचना और सुन्दर अभिव्यक्ति.
khubshurat .........:)
ek pyari ahsaas dilati rachna!!
its so beautiful...!
wah...........behad khoobsoorat ahsaas...........sundar bhav sanyojan.
Kya baat hai. madam
Fantastic. Owesome
Realy close to the thought of many lovers!
Rakesh Kaushik
bahut sundar..
dil ko chuti hui rachna!
बहुत सुन्दर ।
बहुत ही रोमानी, आपकी यह कविता आपकी अन्य कविताओं की तरह नहीं है ,बहुत बहुत बहुत ही अच्छी लगी यह कविता . निम्न पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगी
लूँ तुम्हारी सिहरन को
हथेलियों में थाम तुम्हारा हाथ
और;
महसूस कर लूँ तुम्हारे होठों पे बिखरी
मोतियों की कशमश को
अपनी पलकों के आस पास
उम्मीद है आपके अगले संग्रह में इसी तरह की कविताये पढने को मिलेंगी
bhn simaa ji aapki rchnaa pdh kr aesaa lgaa ke ise baar baar pdho or men baar baar pdhta rhaa hr baar nyin umng,nyaaflsfaa,nyaa ehsaas nye alfaaz nyaa andaaz maashaa allah mzaa agyaa bdhaayi ho. akhtar khan akeal kota rajsthan
wah!! kabhee yoon bhee ho ki itanee khoobsoorat panktiya ek ke baad ek lagatar padhne ko miltee rahen
bahut sundar likha hai
बहुत सुन्दर और नाजुक!
और कभी यूँ भी हो कि.......
तुम्हारे अहसासों में बीत जाए ये रात
और सुबह को जिस्म में भरा हो उसांसों का ताप
जब उठूँ तो तुम्हारी आँखें मुझे देखती मिले
और एक नया सवेरा देखूं उन नवीली आँखों से....... !!
ओढ़ लूँ एहसास की मखमली चादर
जिसमे हो तुम्हरी स्निग्धता का ताप ..
कभी यूँ भी हो ....
बहुत ही गहरी और लाजवाब ... किसी ख्वाब की तरह मखमल सी नर्म नज़्म .... अंदर तक एहसास में डुबो जाती है ...
So nice!
बहुत सुन्दर और नाजुक!
मेरी और से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर बहुत बहुत बधाई !
jajbaat nahi
ye
mahsoosna
hai
सुन्दर रचना और सुन्दर अभिव्यक्ति.
अरसे बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ .और अनुभूति के एक गहरे एहसास के साथ लिखी कुछ पंक्तियों में लिपटी सघनता मन छू गयी .
बहुत ही सुन्दर !
छु लूँ तुम्हारे साँसों की उष्णता
रुपहले स्वप्नों के साथ साथ
very nice seema ji congrats
"ओढ़ लूँ एहसास की मखमली चादर
जिसमे हो तुम्हरी स्निग्धता का ताप"
.............................
सुन्दर रचना और सुन्दर अभिव्यक्ति....बहुत ही सुन्दर !
बहुत खूब, हर बार की तरह।
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ब्लॉगर्स की इज्जत का सवाल है।
कम उम्र में माँ बनती लड़कियों का एक सच।
seemaji aapki kalpnasheelta ka koi jabab nahi hai
सीमा जी,
कविता अच्छी करती हैं आप
बधाई
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