वक़्त की गर्द से परे
एक पल तुमको सुन लेती
तारो की आगोश में छिप पर
अक्स तुम्हारा मन में धर लेती
प्रेम ठिठोली चंदा की अठखेली
संग तुम्हारे अंक में भर लेती..
एक पल तुमको सुन लेती.....
नदिया की धारा जुगनु तारा
प्रीत से बोझिल आलम सारा
शीत पवन की तन्हाई को
संग तुम्हारे सुर में सुर देती
एक पल तुमको सुन लेती....
25 comments:
सुन्दर अभिव्यक्ति.....
संग तुम्हारे सुर में सुर देती
एक पल तुमको सुन लेती....
दिल की गहराई से निकले भाव!
प्रेम ठिठोली चंदा की अठखेली
संग तुम्हारे अंक में भर लेती..
एक पल तुमको सुन लेती.....
बहुत सुंदर पंक्तियों के साथ..... यह कविता दिल को छू गई.....
bahut sundar
puri tarh achhi rachna
वही कसक वही साध वही याद वही ललक वही अतृप्ति वही रिक्तक्ता वही तड़प वही विछोह वही विरह वही पीड़ा
आपके सृजन का वही जज्बा ! सलाम !
सुन्दर अभिव्यक्ति,एक प्रेयसी की उत्कट अभिलाषा, कोमल मन और जज्बातो के अनुपम समन्वय को शब्दो का स्वरूप देती आपकी पन्क्तिया, पूर्व की कविताओ की तरह फिर से मन मे वही रोमान्च पैदा कर गयी... एक बार पुन: बधाई.
That is fantastic, asusual, words with feeling and meaning.
Lovely.
waah bahut sundar...
bahut sundar abhivyakti.
सुंदर।
मन की तड़प, चाह को जिस तरीके उपमाएं देकर शब्दों में पिरोया गया है, बढ़िया
तारो की आगोश में छिप पर,अक्स तुम्हारा मन में धर लेती...
बहुत अच्छी रचना
शीत पवन की तन्हाई को
संग तुम्हारे सुर में सुर देती
प्रेम की कोमल भावनाओं में रची लाजवाब रचना है ... पवन की तरह बहती .. संगीत छेड़ती ... सुंदर अभिव्यक्ति है ...
संग तुम्हारे सुर में सुर देती
khaaskar bhaa gayi ye pankti...pyaari rachna
रचना आमँत्रण की शक्ति और जिजीविषा की अभिव्यक्ति है ।
ek pal tum ko sun leti :)
Yet another master piece from You seema
Thanks for sharing.
Love & Piece
वक़्त की गर्द से परे... या भी हो सकता था.
बहुत बढ़िया!
कल्पना की मोहक उड़ान।
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क्या आप जवान रहना चाहते हैं?
ढ़ाक कहो टेसू कहो या फिर कहो पलाश...
शीत पवन की तन्हाई को
संग तुम्हारे सुर में सुर देती
एक पल तुमको सुन लेती....'
- सुन्दर.
सीमा जी..अब तो किताबों में भी ऐसा पूर्ण समर्पण नहीं मिलता.दिल को छूती लाजवाब रचना.
Sunder Rachna Hai Ji....WAHwa..
SEEMA.....KYA AB VIRAH KEE GAHARAAYIYON KO BHI LAANGHNE KAA IRADA HAI....AISA MAT KARO PLIZ....VAISE EK BAAT BATAAUN......SACH LIKHI BAHUT ACCHHI HAI TUMNE YE KAVITA....JABARDAST....VAAH...VAAH....!!!!!
बहुत खूबसूरत भाव
प्रेम और कल्पना इनका अद्भुत समन्वय है आपकी इस रचना में.
भावपूर्ण रचना।
nayaa bck ground achcha lagaa.naye colors kaafi comfortable lagte hain. ghaalib kee ek ghazal hai:
कभी नेकी भी उसके जी में गर आ जाए है मुझसे
जफ़ाएं करके अपनी याद शर्मा जाए है मुझसे;
खुदाया ! जज्बा -ए-दिल की मगर तासीर उल्टी है
कि जितना खींचता हूँ और खिंचता जाए है मुझसे;
वोह बद _ख़ू और मेरी दास्ताँ -ए -इश्क तुलानी
इबारत मुख्तसर , कासिद भी घबरा जाए है मुझसे ;
उधर वोह बद _गुमानी है , इधर यह नातवानी है
न पुछा जाए है उससे , न बोला जाए है मुझसे;
संभलने दे मुझे ऐ ना _उम्मीदी क्या क़यामत है
कि दामान -ए -ख़याल -ए -यार छूता जाए है मुझसे;
तकल्लुफ बरतरफ नज्ज़ारगी में भी सही , लेकिन
वोह देखा जाए , कब ये ज़ुल्म देखा जाए है मुझसे ;
हुए हैं पाँव ही पहले नाबार्ड -ए -इश्क में ज़ख़्मी
ना भागा जाए है मुझसे , ना ठहरा जाए है मुझसे ;
क़यामत है के होवे मुद्दई का हम _सफ़र 'ग़ालिब '
वोह काफिर , जो खुदा को भी ना सौंपा जाए है मुझसे;
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