"वक़्त की कोख में नहीं..."
शाम ढले ही
ख़ामोशी के तहखानों में
कुछ वादों के उड़ते से गुब्बार
समेट लेते हैं मेरे आस्तीत्व को
फिर अनजानी ख्वाइशों की आंखे
कतरा कतरा सिहरने लगती हैं
और रात के आंचल की उदासी
सूनेपन के कोहरे में सिमट
अपनी घायल सांसो से उलझती
ओस के सीलेपन से खीज कर
युगों लम्बे पहरों में ढलने लगती है
तब मीलों भर का एकांत
तेरी विमुखता की क्यारियों से
अपना बेजार दामन फैला
अधीरता के दायरों का स्पर्श पा
ढूंढ़ लाता है कुछ अस्फुट स्वर .....
" तुम्हे भूल पाऊं कभी,
वो पल वक़्त की कोख में नहीं..."
35 comments:
" तुम्हे भूल पाऊं कभी,
वो पल वक़्त की कोख में नहीं..."
-कोमल अहसास!! सुन्दर अभिव्यक्ति!!
गहन अहसास की कुदरत के बिम्बों से सराबोर प्रस्तुति में आपकी कोई सानी नहीं मल्लिकाए पोएट्री !
" तुम्हे भूल पाऊं कभी,
वो पल वक़्त की कोख में नहीं..."..
बेहतरीन लाइनें.
सुन्दर अभिव्यक्ति.
क्या बात है, सच में लाजवाब लिखती हैं आप ।
सुनहरी यादों में डूबी इन लाइनों के लिए शुभकामनायें !
" तुम्हे भूल पाऊं कभी,
वो पल वक़्त की कोख में नहीं..."
बहुत ही नाजुक भाव, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
सुंदर अभिव्यक्ति के साथ ...बहुत सुंदर रचना....
तुम्हे भूल पाऊं कभी,
वो पल वक़्त की कोख में नहीं....
जिसकी यादें गहरे समाई हों .......... जो रोम रोम में रहता हो .......... हर लम्हा जिसकी खुश्बू ताज़गी का एहसास देती हो .......... उसको भुलाना मुमकिन नही होता ......... अपनी साँसों को कोई आज तक भुला पाया है ......... बहुत भीनी रचना .......
तुम्हे भूल पाऊं कभी,
वो पल वक़्त की कोख में नहीं...
मेम आपने तो ताऊ के प्रमाण पत्रों की झड़ी लगा राखी है...
बधाई हो...
मीत
सुन्दर भाव भरी रचना है..
बस एक बिन मांगा सुझाव दे रहा हूं.. हिन्दी और उर्दू के मेल मे थोडी गडबड हो जाती है.. जैसे अस्तित्व, विमुखता, कोख, अधीरत खालिस हिन्दी शब्द हैं जबकि ख्वाहिशें, गुब्बार, बेजान आदि उर्दू के लफ़्ज.. आप किसी एक यदि सिर्फ़ हिन्दी अथवा उर्दू के समानार्थक शब्द चुन लेती तो कविता में दूनी जान आ जाती.
दखल अंदाजी के लिये माफ़ी चाहूंगा.. मगर जो दिल में आया उसे रोक न सका.
इस ठितुरती सर्दी में 'सूनेपन के कोहरे में'लिपटी आपकी ये रचना 'मीलों भर का एकांत'सफ़र तय करती हुई हर कविता प्रेमी तक अपना सन्देश पहुँचाने में समर्थ तो है ही साथ ही साथ नए वर्ष में मेरे लिए तो पहली सर्वोतम रचना है जिसको पढ़ कर मन किसी की 'विमुखता की क्यारियों'में एक पर कटी तितली की भांति अधीर हो उठता है हाँ एक बात ओर :
" तुम्हे भूल पाऊं कभी,
वो पल वक़्त की कोख में नहीं..."
बहुत ही शानदार जानदार पंक्तियाँ है
तुम्हे भूल पाऊं कभी,
वो पल वक़्त की कोख में नहीं...
बहुत ही खूबसूरती अभिव्यक्ति.
-भूलना चाहो भी तो भुला ना सकें वक़्त ने देखो कैसे हालात किए..!-
तुम्हे भूल पाऊं कभी,
वो पल वक़्त की कोख में नहीं...
बहुत सुंदर रचना
तब मीलों भर का एकांत
तेरी विमुखता की क्यारियों से
अपना बेजार दामन फैला
अधीरता के दायरों का स्पर्श पा
ढूंढ़ लाता है कुछ अस्फुट स्वर .....
" तुम्हे भूल पाऊं कभी,
वो पल वक़्त की कोख में नहीं..."
मीलों भर का एकांत
विमुखता की क्यारियां
और शायद भूलना मुमकिन ही नहीं
हर पंक्ति गहरी हर पंक्ति दर्द के तार झनझनाती हुई
खुबसूरत रचना के लिए
बहुत बहुत बधाई...........
ek or behtrin kavita.
aap jo image dalti hai or saath me jo upmaye deti hai ve lajwab hai.
Rakesh Kaushik
आपजो शब्द और भाव का मेल करती हैं अपनी रचना में वो अद्भुत है...प्रशंशा के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास...
नीरज
बहुत सुंदर रचना, तारीफ़ के शव्द भी कम पडते है
तुम्हे भूल पाऊं कभी,
वो पल वक़्त की कोख में नहीं.
वजन दार रचना लिखती हैं !सचमुच ना भूलने के जो kaaran बताये है बेमिशाल!!!
वाह और उफ
अदभुत विचार, शानदार अभिव्यक्ति।
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अपना ब्लॉग सबसे बढ़िया, बाकी चूल्हे-भाड़ में।
ब्लॉगिंग की ताकत को Science Reporter ने भी स्वीकारा।
बहुत सुन्दर रचना.
सुंदर अभिव्यक्ति के साथ ...बहुत सुंदर रचना....
बहुत ही सुन्दर और मनोहारी रचना...
बहुत ही सुन्दर और मनोहारी रचना...
बहुत ही सुन्दर और मनोहारी रचना...
आदरणीय सीमाजी,
आप ना बस, क्या कहें ? अल्फ़ाज़ लाएँ तो कहाँ से ?
अत्यंत सुन्दर भावपूर्ण कविता।
तुम्हे भूल पाऊं कभी,
वो पल वक़्त की कोख में नहीं
अहा ! क्या ही सुन्दरता से कही गई बात।
हमारा सादर प्रणाम स्वीकार कीजिएगा और मकर संक्रांति पर्व पर आपको बहुत बहुत बधाइयाँ।
bahut achhi post hai aapki seema ji...
achha laga jaan kar ke aap bhi gurgaon mein hain....
hum bhi aapke padosi hain...
seema ji, bahut bahut shukriyaa mere blog pa aane ke liye aur apne comments dene ke liye...
aapka follower bann raha hoon so aata rahunga, aap bhi darshan dete rahiyega...
shukriyaa.
cheers!
surender chawla
वह पल वक्त की कोख में नहीं- वाह क्या कहने।
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति
सर्वप्रथम प्रतिक्रिया मे विलम्ब के लिये क्षमा कीजीयेगा, कुछ व्यक्तिगत कारणो से इन दिनो व्यस्त रहा.
किसी स्त्री के बेपनाह मुहब्बत को अभिव्यक्त करती आपकी कविता मुझे हर बार उसे पुन: पढने को ना जाने क्यो बार बार विवश करती है और हर बार एक पन्क्ति मेरे मन मष्तिष्क मे कौन्ध सी जाती है और मै कई दिनो तक उसे गुनगुनाते रहता हू, मुझे याद है आपकी एक कविता की अन्तिम पन्क्तिया मेरे होठो पर बरबस आज भी दस्तक दे देती है-
रीती हुई मन की गगरिया,
भाव शून्य हो गये,
खामोशी के आवरण मे ,
मौन करवट बदलता नहीं....
उसी तरह इस कविता की यह पन्क्ति शायद मुझे लम्बे समय तक गुनगुनाने को विवश करता रहे और शायद यह किसी रचनाकार के लिये बडी सफलता है-
" तुम्हे भूल पाऊं कभी,
वो पल वक़्त की कोख में नहीं..."
लाजवाब पन्क्ति... ढेरो बधाईया
aaj kee subah nay phir
yeh punah kaha mujhsay
kyuoon kisee ki aasha par
ho gayee sazaa mujhsay...........
dekh kar naheen chaltaa
chhot kyun lagaataa hai
kyuoon naheen sunaayee dee
cheekhtee sadaa mujhsay............
ab kay dekho tumsay mil
dil bhi ho gaya bhaari
tum ko ho sukoon mujhsay
ho rahee dua mujhsay..........
" तुम्हे भूल पाऊं कभी,
वो पल वक़्त की कोख में नहीं..."
लाजवाब - गुलाबी एहसास.
kya baat hai...kyaa baat hai...kyaa baat hai....laajawaab....!!
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