5/11/2009

तड़पने की दरखास्त

"तड़पने की दरखास्त"

कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है

विचलित मन ने बेबस हो
प्रतीक्षा की बिखरी
किरचों को समेट

बीते लम्हों से कुछ बात की है..
यादो के गलियारे से निकल
ख्वाइशों के अधूरे प्रतिबिम्बों ने
रुसवा हो उपहास की बरसात की है

धुली शाम के सौन्दर्य को
दरकिनार कर उड़ते धुल के
चंचल गुब्बार ने दायरों को लाँघ
दिन मे ही रात की है


http://swargvibha.0fees.net/july2009/Kavita/tarapne%20ki.html

54 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है


बहुत ही गहन अभिव्यक्ति, बेहद मुखर भाव. और दोनों ही चित्र सामयिक और सुंदर. शुभकामनाएं.

रामराम.

siddheshwar singh said...

आप नियमित और निरंतर अपनी भावनाओं को शब्दों में उतारती हैं, यह संवेदनात्मक अनुशासन रंग ला रहा है.छंद में रचना कठिन है , परतु आप के लिए नहीं. चित्र भी सुंदर !
बधाई !

Arvind Mishra said...

वाह अद्भुत प्रभाव उत्पन्न करती कविता !

Udan Tashtari said...

एक त़ड़पन..एक कसमसाहट है इसमें..इन पंक्तियों की तलहटी में..कैसे उठते हैं यह भाव दिल की जुबां से.. मजबूर हूँ सोचने को.

रंजन said...

सुन्दर अभिव्यक्ति...

Mumukshh Ki Rachanain said...

कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है

दरखास्त कबूल.

ऐसी सुन्दर भावनात्मक रचना पर बधाई न कि उपहास.

चन्द्र मोहन गुप्त

"अर्श" said...

DARD KO EK KHUBSURAT BHAV SE PESH KARNAA... YE SIRF AAP HI KAR SAKTI HAI ... AAPKE IS ANDAAJ PE TO KYA KAHE.. DHERO BADHAAYEE.. AAPKO


ARSH

P.N. Subramanian said...

बहुत ही सुन्दर. खलबली मच गई दिलो दिमाग में. देर से ही सही जन्म दिन पर आयुषी को हमारी भी शुभकामनायें.

रवीन्द्र दास said...

samveg-purn darkhwast hai.sachmuch.

Vinay said...

माशाअल्लाह

Anonymous said...

लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है

ख्वाइशों के अधूरे प्रतिबिम्बों ने
रुसवा हो उपहास की बरसात की है

shaandaar panktiyan
jo mujhe mahsoos hui

thanks

मीत said...

कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है
मुखड़े ने ही गहरा असर किया है...
बहुत सुंदर... लिखा है...
जारी रहे...
मीत

समयचक्र said...

बहुत सुंदर...

नीरज गोस्वामी said...

आप अद्भुत लिखती हैं...शब्द कम पढ़ते हैं प्रशंशा के लिए...और साथ में दिए गए चित्र उस पर चार चाँद लगा देते हैं...
नीरज

डॉ .अनुराग said...

कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है

bahut khoob.......

admin said...

सीमा जी, यूँ तो कविता लिखने का काम बहुत लोग करते हैं, पर असली कविता वहीं होती है, जो बिम्‍बों और प्रयोगों के सहारे कही जाती है। और यकीन जानिए, इस मामले में आपका कोई जवाब नहीं।

-जाकिर अली रजनीश
----------
SBAI / TSALIIM

Sajal Ehsaas said...

कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है

bahut hi zyaada achha hai..."kirchon" ka arth samajh nai aaya vaise..kya hota hai??

RAJNISH PARIHAR said...

बहुत ही अच्छा शब्द जाल बुना है आपने..जिसमे तमाम भाव उलझे हुए है..विचारों की सुन्दर परिकल्पना..

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

सरस्वती बैठी है आपकी कलम पर.

अमिताभ भूषण"अनहद" said...

कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है.
क्या गजब लिखा है आपने ,
जाने ये खलिश कहाँ से आती है ...

दिगम्बर नासवा said...

कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है

खूबसूरत और अनोखे एहसास से भरी है ये रचना...........
सचमुच अल्फाज जब तड़पते हैं तभी कागज़ पर इतनी गहरी, इतनी जज्बात से भरी नज्म निकलती है .........लजवाब

मोहन वशिष्‍ठ said...

कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है
विचलित मन ने बेबस हो

सीमा जी हमेशा की तरह बेहतरीन और साथ में बेहतरीन पेंटिंग

योगेन्द्र मौदगिल said...

Sunder Kavita hai

BADHAI...

डॉ. मनोज मिश्र said...

उड़ते धुल के
चंचल गुब्बार ने दायरों को लाँघ
दिन मे ही रात की है ....
बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति .

अनिल कान्त said...

वाह बहुत खूबसूरत ..

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आपकी कविता सजीव है अभिव्यक्ति सरस है सीमा जी

गौतम राजऋषि said...

ग़ज़लों का सा सौंदर्य इस "तड़पने की दरखास्त" में और कम शब्दों में सारी बात कह जाने की अद्‍भुत कला दिल को छू गयी मैम...
"ख्वाइशों के अधूरे प्रतिबिम्बों ने
रुसवा हो उपहास की बरसात की है"
ऐसे अनूठे बिम्ब आप ही ला सकती हो, मैम

vijay kumar sappatti said...

seema ji ,
bahut kam shabdo me aapne itni gahri baat kah di hai .. aapko dil se bahdai .. impressions bahut acche ban padhe hai ...

Kavi Kulwant said...

रुसवा हो उपहास की बरसात की है

धुली शाम के सौन्दर्य को
दरकिनार कर उड़ते धुल के
चंचल गुब्बार ने दायरों को लाँघ
दिन मे ही रात की है

जितेन्द़ भगत said...

मोहक।

Gyan Dutt Pandey said...

बहुत सुन्दर।

Alpana Verma said...

यादो के गलियारे से निकल
ख्वाइशों के अधूरे प्रतिबिम्बों ने
रुसवा हो उपहास की बरसात की है

-गज़ब की पंक्तियाँ है ये..अद्भुत कल्पना है भाव भरी इस कविता में.

Bhawna Kukreti said...

bahut hi badhiya rachna . aap bahut hi umda likhti hain :)

महावीर said...

मन की व्यथा को बड़े ही सुंदर ढंग से और प्रभावाली शब्दों में
उजागर करती हुई एक सशक्त रचना है।

विचलित मन ने बेबस हो
प्रतीक्षा की बिखरी
किरचों को समेट
बीते लम्हों से कुछ बात की है..
बधाई।
महावीर शर्मा

डिम्पल मल्होत्रा said...

कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है...kabhi tadpane se hi aaraam milta hai.....boht achha likhtee hai aap

satish kundan said...

वाह..बहुत सुन्दर रचना..जब भी मैं आपके किसी रचना को पढता हूँ तो कुछ खाली सा लगता है पता नहीं क्यों?

स्ट्रक्चर said...

अच्छा ब्लॉग है बधाइयां
मैं भी नई-ब्लॉगर हूँ कभी
देखिये मेरा ब्लॉग
सादर
अंशु जबलपुर

स्ट्रक्चर said...

अच्छा ब्लॉग है बधाइयां
मैं भी नई-ब्लॉगर हूँ कभी
देखिये मेरा ब्लॉग
सादर
अंशु जबलपुर

Smart Indian said...

लाजवाब, हमेशा की तरह.

hem pandey said...

'.धुली शाम के सौन्दर्य को
दरकिनार कर उड़ते धुल के
चंचल गुब्बार ने दायरों को लाँघ
दिन मे ही रात की है '

- वास्तव में यह रात नहीं है, रात होने का भ्रम है. हमें इस भ्रम के धोखे में न आ सतर्क रहने की जरूरत है.

RAJNISH PARIHAR said...

bahut hi sundar bhav....

Rajat Narula said...

bahut hi khubsurat rachna hai...

admin said...

Aapka shabd chayan adbhut hai.

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Divya Narmada said...

भाव-प्रवणता आपका वैशिष्ट्य है, छांदस रचनाओं में यह गुण निखरता है...प्रयास करें.

Mukesh Garg said...

bahut hi sunder rachna

kiya bhav hai

dhero subhkamnyae

hem pandey said...

अरविन्द मिश्रा जी के ब्लॉग के माध्यम से आपके अस्वस्थ्य होने की सूचना मिली. मैं हैरान हूँ कि मेरे द्वारा टिप्पणि में उद्धृत पंक्तियाँ और उस पर दी गयी टिप्पणि आपके अस्वस्थ्य हो जाने और स्वास्थ्य लाभ करने पर भी लागू होती है-

धुली शाम के सौन्दर्य को
दरकिनार कर उड़ते धुल के
चंचल गुब्बार ने दायरों को लाँघ
दिन मे ही रात की है '

- वास्तव में यह रात नहीं है, रात होने का भ्रम है. हमें इस भ्रम के धोखे में न आ सतर्क रहने की जरूरत है.

आपके शीघ्र पूर्ण स्वास्थ्य लाभ की कामना करता हूँ.

RAJ SINH said...

गज़ब की तपन सीमा जी ....हमेश की तरह .
शीघ्रस्वास्थ्य लाभ पायेन आप ......will be in my prayers .

दिलीप कवठेकर said...

कलम से लफ़्ज़ों के माध्यम से ही जज़बातों की अभिव्यक्ति संभव है. मगर तडपने के लिये गुज़ारिश एक मौलिक विचार है.

आपके स्वास्थ्य लाभ के लिये कामना.

प्रकाश गोविंद said...

आपकी तबियत कैसी है !

मैं बहुत दिन से पूछना चाहता था लेकिन आपके इतने सारे ब्लॉग हैं कुछ समझ नहीं पा रहा था !

आशा है अब आप पूर्णतयः स्वस्थ और प्रसन्न
होंगी !

बवाल said...

कागज की सतह पर बैठ
लफ़्ज़ों ने जज़्बात से
तड़पने की दरख़्वास्त की है
वाह वाह वाह यह तो सिर्फ़ आप ही कह सकती हैं सीमाजी। बहुत ऊँचा ख़याल लिखा है जी। बहुत बहुत बधाई इसके लिए।

जितेन्द़ भगत said...

बहुत सुंदर लि‍खा है, और तस्‍वीर तो लाजवाब है।

Sajal Ehsaas said...

ummeed karta hoon jaldi hi aap blogging ki duniya me vaapas aaye :)

Devi Nangrani said...

कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है
Waah

Seene mein koi sailaab apne samast bandh todkar apni seemaon ki hadon se sarhad ki or bad raha hai.

anupam abhivyakti
Daad ke saaath

Devi nangrani

Unknown said...

wah wah jawab nahi shabdon ka anupam samavesh wah!!!!!