कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है
विचलित मन ने बेबस हो
प्रतीक्षा की बिखरी
किरचों को समेट
किरचों को समेट
बीते लम्हों से कुछ बात की है..
यादो के गलियारे से निकल
ख्वाइशों के अधूरे प्रतिबिम्बों ने
रुसवा हो उपहास की बरसात की है
ख्वाइशों के अधूरे प्रतिबिम्बों ने
रुसवा हो उपहास की बरसात की है
धुली शाम के सौन्दर्य को
दरकिनार कर उड़ते धुल के
चंचल गुब्बार ने दायरों को लाँघ
दिन मे ही रात की है
दरकिनार कर उड़ते धुल के
चंचल गुब्बार ने दायरों को लाँघ
दिन मे ही रात की है
http://swargvibha.0fees.net/july2009/Kavita/tarapne%20ki.html
54 comments:
कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है
बहुत ही गहन अभिव्यक्ति, बेहद मुखर भाव. और दोनों ही चित्र सामयिक और सुंदर. शुभकामनाएं.
रामराम.
आप नियमित और निरंतर अपनी भावनाओं को शब्दों में उतारती हैं, यह संवेदनात्मक अनुशासन रंग ला रहा है.छंद में रचना कठिन है , परतु आप के लिए नहीं. चित्र भी सुंदर !
बधाई !
वाह अद्भुत प्रभाव उत्पन्न करती कविता !
एक त़ड़पन..एक कसमसाहट है इसमें..इन पंक्तियों की तलहटी में..कैसे उठते हैं यह भाव दिल की जुबां से.. मजबूर हूँ सोचने को.
सुन्दर अभिव्यक्ति...
कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है
दरखास्त कबूल.
ऐसी सुन्दर भावनात्मक रचना पर बधाई न कि उपहास.
चन्द्र मोहन गुप्त
DARD KO EK KHUBSURAT BHAV SE PESH KARNAA... YE SIRF AAP HI KAR SAKTI HAI ... AAPKE IS ANDAAJ PE TO KYA KAHE.. DHERO BADHAAYEE.. AAPKO
ARSH
बहुत ही सुन्दर. खलबली मच गई दिलो दिमाग में. देर से ही सही जन्म दिन पर आयुषी को हमारी भी शुभकामनायें.
samveg-purn darkhwast hai.sachmuch.
माशाअल्लाह
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है
ख्वाइशों के अधूरे प्रतिबिम्बों ने
रुसवा हो उपहास की बरसात की है
shaandaar panktiyan
jo mujhe mahsoos hui
thanks
कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है
मुखड़े ने ही गहरा असर किया है...
बहुत सुंदर... लिखा है...
जारी रहे...
मीत
बहुत सुंदर...
आप अद्भुत लिखती हैं...शब्द कम पढ़ते हैं प्रशंशा के लिए...और साथ में दिए गए चित्र उस पर चार चाँद लगा देते हैं...
नीरज
कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है
bahut khoob.......
सीमा जी, यूँ तो कविता लिखने का काम बहुत लोग करते हैं, पर असली कविता वहीं होती है, जो बिम्बों और प्रयोगों के सहारे कही जाती है। और यकीन जानिए, इस मामले में आपका कोई जवाब नहीं।
-जाकिर अली रजनीश
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SBAI / TSALIIM
कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है
bahut hi zyaada achha hai..."kirchon" ka arth samajh nai aaya vaise..kya hota hai??
बहुत ही अच्छा शब्द जाल बुना है आपने..जिसमे तमाम भाव उलझे हुए है..विचारों की सुन्दर परिकल्पना..
सरस्वती बैठी है आपकी कलम पर.
कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है.
क्या गजब लिखा है आपने ,
जाने ये खलिश कहाँ से आती है ...
कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है
खूबसूरत और अनोखे एहसास से भरी है ये रचना...........
सचमुच अल्फाज जब तड़पते हैं तभी कागज़ पर इतनी गहरी, इतनी जज्बात से भरी नज्म निकलती है .........लजवाब
कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है
विचलित मन ने बेबस हो
सीमा जी हमेशा की तरह बेहतरीन और साथ में बेहतरीन पेंटिंग
Sunder Kavita hai
BADHAI...
उड़ते धुल के
चंचल गुब्बार ने दायरों को लाँघ
दिन मे ही रात की है ....
बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति .
वाह बहुत खूबसूरत ..
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
आपकी कविता सजीव है अभिव्यक्ति सरस है सीमा जी
ग़ज़लों का सा सौंदर्य इस "तड़पने की दरखास्त" में और कम शब्दों में सारी बात कह जाने की अद्भुत कला दिल को छू गयी मैम...
"ख्वाइशों के अधूरे प्रतिबिम्बों ने
रुसवा हो उपहास की बरसात की है"
ऐसे अनूठे बिम्ब आप ही ला सकती हो, मैम
seema ji ,
bahut kam shabdo me aapne itni gahri baat kah di hai .. aapko dil se bahdai .. impressions bahut acche ban padhe hai ...
रुसवा हो उपहास की बरसात की है
धुली शाम के सौन्दर्य को
दरकिनार कर उड़ते धुल के
चंचल गुब्बार ने दायरों को लाँघ
दिन मे ही रात की है
मोहक।
बहुत सुन्दर।
यादो के गलियारे से निकल
ख्वाइशों के अधूरे प्रतिबिम्बों ने
रुसवा हो उपहास की बरसात की है
-गज़ब की पंक्तियाँ है ये..अद्भुत कल्पना है भाव भरी इस कविता में.
bahut hi badhiya rachna . aap bahut hi umda likhti hain :)
मन की व्यथा को बड़े ही सुंदर ढंग से और प्रभावाली शब्दों में
उजागर करती हुई एक सशक्त रचना है।
विचलित मन ने बेबस हो
प्रतीक्षा की बिखरी
किरचों को समेट
बीते लम्हों से कुछ बात की है..
बधाई।
महावीर शर्मा
कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है...kabhi tadpane se hi aaraam milta hai.....boht achha likhtee hai aap
वाह..बहुत सुन्दर रचना..जब भी मैं आपके किसी रचना को पढता हूँ तो कुछ खाली सा लगता है पता नहीं क्यों?
अच्छा ब्लॉग है बधाइयां
मैं भी नई-ब्लॉगर हूँ कभी
देखिये मेरा ब्लॉग
सादर
अंशु जबलपुर
अच्छा ब्लॉग है बधाइयां
मैं भी नई-ब्लॉगर हूँ कभी
देखिये मेरा ब्लॉग
सादर
अंशु जबलपुर
लाजवाब, हमेशा की तरह.
'.धुली शाम के सौन्दर्य को
दरकिनार कर उड़ते धुल के
चंचल गुब्बार ने दायरों को लाँघ
दिन मे ही रात की है '
- वास्तव में यह रात नहीं है, रात होने का भ्रम है. हमें इस भ्रम के धोखे में न आ सतर्क रहने की जरूरत है.
bahut hi sundar bhav....
bahut hi khubsurat rachna hai...
Aapka shabd chayan adbhut hai.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
भाव-प्रवणता आपका वैशिष्ट्य है, छांदस रचनाओं में यह गुण निखरता है...प्रयास करें.
bahut hi sunder rachna
kiya bhav hai
dhero subhkamnyae
अरविन्द मिश्रा जी के ब्लॉग के माध्यम से आपके अस्वस्थ्य होने की सूचना मिली. मैं हैरान हूँ कि मेरे द्वारा टिप्पणि में उद्धृत पंक्तियाँ और उस पर दी गयी टिप्पणि आपके अस्वस्थ्य हो जाने और स्वास्थ्य लाभ करने पर भी लागू होती है-
धुली शाम के सौन्दर्य को
दरकिनार कर उड़ते धुल के
चंचल गुब्बार ने दायरों को लाँघ
दिन मे ही रात की है '
- वास्तव में यह रात नहीं है, रात होने का भ्रम है. हमें इस भ्रम के धोखे में न आ सतर्क रहने की जरूरत है.
आपके शीघ्र पूर्ण स्वास्थ्य लाभ की कामना करता हूँ.
गज़ब की तपन सीमा जी ....हमेश की तरह .
शीघ्रस्वास्थ्य लाभ पायेन आप ......will be in my prayers .
कलम से लफ़्ज़ों के माध्यम से ही जज़बातों की अभिव्यक्ति संभव है. मगर तडपने के लिये गुज़ारिश एक मौलिक विचार है.
आपके स्वास्थ्य लाभ के लिये कामना.
आपकी तबियत कैसी है !
मैं बहुत दिन से पूछना चाहता था लेकिन आपके इतने सारे ब्लॉग हैं कुछ समझ नहीं पा रहा था !
आशा है अब आप पूर्णतयः स्वस्थ और प्रसन्न
होंगी !
कागज की सतह पर बैठ
लफ़्ज़ों ने जज़्बात से
तड़पने की दरख़्वास्त की है
वाह वाह वाह यह तो सिर्फ़ आप ही कह सकती हैं सीमाजी। बहुत ऊँचा ख़याल लिखा है जी। बहुत बहुत बधाई इसके लिए।
बहुत सुंदर लिखा है, और तस्वीर तो लाजवाब है।
ummeed karta hoon jaldi hi aap blogging ki duniya me vaapas aaye :)
कागज की सतह पर बैठ
लफ्जो ने जज्बात से
तड़पने की दरखास्त की है
Waah
Seene mein koi sailaab apne samast bandh todkar apni seemaon ki hadon se sarhad ki or bad raha hai.
anupam abhivyakti
Daad ke saaath
Devi nangrani
wah wah jawab nahi shabdon ka anupam samavesh wah!!!!!
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