2/23/2009

"झील को दर्पण बना "

"झील को दर्पण बना"

रात के स्वर्णिम पहर में
झील को दर्पण बना

चाँद जब बादलो से निकल
श्रृंगार करता होगा
चांदनी का ओढ़ आँचल
धरा भी इतराती तो होगी...


मस्त पवन की अंगडाई
दरख्तों के झुरमुट में छिप कर

परिधान बदल बदल
मन को गुदगुदाती तो होगी.....

नदिया पुरे वेग मे बह
किनारों से टकरा टकरा

दीवाने दिल के धड़कने का
सबब सुनाती तो होगी .....
खामोशी की आगोश मे रात
जब पहरों में ढलती होगी
ओस की बूँदें दूब के बदन पे
फिसल लजाती तो होगी ......

दूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....


http://hindivangmay1.blogspot.com/2009/02/blog-post_27.html

51 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

दूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....

वाह वाह सुंदरतम रचना. बहुत बधाई.

रामराम.

MANVINDER BHIMBER said...

रात के स्वर्णिम पहर में
झील को दर्पण बना

चाँद जब बादलो से निकल

श्रृंगार करता होगा
चांदनी का ओढ़ आँचल
धरा भी इतराती तो होगी...

bahut sunder bhaaw hai...dil ko chu gae

मुंहफट said...

अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी..... कोई संदेश कहीं दूर तक गूंज जाता है.

Anonymous said...

romani,behad khubsurat

P.N. Subramanian said...

" खामोशी की आगोश में अनजानी सी कोई आहट". वाकई मजा आ गया. हमने लाइन बदल डाली. आभार.

Udan Tashtari said...

चांदनी का ओढ़ आँचल
धरा भी इतराती तो होगी...


-वाकई....

बहुत खूब कल्पनाशीलता है. आनन्द आ गया रचना पढ़कर.

Rakesh Kaushik said...

hahahaha
sach me ek anjani se soch bas yunhi aankho k saamne se gujar jati hai
in panktiyon me dil ko chune wali vo ajeeb si megnate hai.

it's really very very nice

Anonymous said...

आज तो बिल्कुल अलग अंदाज.. बे्हररीन..

Anonymous said...

jab sath hotaa hai chsmaa aankhon par
kaiton ko maine dhoondhte dekh
jabki wo rahaa apni jagah par

Himanshu Pandey said...

"दूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी....."

सुन्दर अभिव्यक्ति, भावपूर्ण पंक्तियां.

महेन्द्र मिश्र said...

सुन्दर अभिव्यक्ति
महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामना .

"अर्श" said...

bahot hi khubsurati se likha gaya... behad umda rachana....


arsh

मीत said...

आपके इस शाब्दिक चित्रण से मन एकदम उसी समां में जा पहुँचा जो चित्रण आपने किया है...
बहुत सुंदर...
मीत

Arvind Mishra said...

प्रकृति के बिम्बों के जरिये श्रृंगार का मुखर स्वर- संदेश !

Mohinder56 said...

सुन्दर भावभरी अभिव्यक्ति

मेरे शब्दों में

झील तेरी आंखें हैं
प्यार परछांई है
दिल की बातें सभी
लफ़्जों में सिमट आई हैं

रंजू भाटिया said...

दूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....

बहुत रूमानी भाव हैं सुंदर लगी आपकी यह कविता

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

jheel,darpan,chandani rat, chand,yad,payal bansi.sab kuchh ek saath. narayan narayan

Manuj Mehta said...

wah seema ji
kya romance hai aapki is kavita mein
bahut hi khoobsurati se sajaya hai isey aapne.
itni sunder rachna ke liye badhai aur dhanyawad

manuj mehta

Anonymous said...

वाह वाह क्या तुकबन्दी है।

राज भाटिय़ा said...

मस्त पवन की अंगडाई
दरख्तों के झुरमुट में छिप कर

परिधान बदल बदल
मन को गुदगुदाती तो होगी.....
वाह सीमा जी आप ने कलपना को कविता मै बदल दिया. बहुत ही सुंदर लगा.
धन्यवाद

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

इन पन्नों पर यह कविता पढ़कर ऐसा लगा जैसे ऊमस भरे गर्म दिन के बाद अचानक बारिश की रिमझिम शुरू हो जाय और ठण्डी हवा बहने लगे।

आपने दुःख के बादलों के बीच से निकलकर यह जो प्यार से सहलाती गुदगुदाती रचना पढ़वायी है वह एक अलग एहसास दे गयी।

धन्यवाद।

सुशील छौक्कर said...

सुन्दर अति सुन्दर।

दूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....

मीठा सा अहसास।

नीरज गोस्वामी said...

कोमल भाव लिए एक बहुत प्यारी रचना... बधाई...

नीरज

डॉ .अनुराग said...

दूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....

romantic......

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

धरा भी इतराती तो होगी...
मन को गुदगुदाती तो होगी.....
सबब सुनाती तो होगी .....
फिसल लजाती तो होगी ......
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....

सीमाजी
हमेशा कि तरह आज भी सुन्दर- मन को भाने वाली रचना। बहुत ही अच्छी कविता। मै तो आपके इस ब्लोग पर अक्सर आके कभी कभी चोरी-चोरी एक दो लाईन चुरा लेता हु और दोस्तो को पत्नि को सुना देता हु - खुश हो जाते है। मेरा काम बन जाता है।

आप के नई पोस्ट का इन्तजार रहता है। हार्दिक मगलभावना सहीत।

जय हिन्द॥॥।

गर्दूं-गाफिल said...

PRAKRUTI CHITRAN PRBHWSALI HAI

Alpana Verma said...

दूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी
-वाह!!!!!!!!!!

-रूमानी कविता :)

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

दूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....
........................उसी की इक आहट की झलक पाकर किसी के भीतर कोई कविता खिलखिलाती होगी.....किसी की याद रुलाती भी होगी....तो यह कह कर ढाढस भी बंधाती होगी कि ज़रा ठहर ना कि अभी वह आती ही होगी......आती ही होगी....आती ही होगी.......!!

महावीर said...

सीमा जी की हर कविता में एक कशिश होती है, भावों और शब्दों के चुनाव में ऐसा आकर्षण है जो पाठक को
रचना को बार बार पढ़ने में बाध्य कर देता है। उनकी अन्य रचनाओं की भांति "झील को दर्पण बना" भी बहुत सुंदर रचना है।
महावीर शर्मा

प्रताप नारायण सिंह (Pratap Narayan Singh) said...

और जग के सघन रव के बीच जगकर
रागिनी मेरी कभी अंगडाई लेकर
प्यास से सूखे तुम्हारे तप्त अधरों पर
राग कोई चाह की गाती तो होगी

बवाल said...

आज अल्फ़ाज़ ही नहीं मिल रहे सीमाजी आपकी इस अतिसुन्दर रचना की तारीफ़ के लिए।

Gyan Dutt Pandey said...

सुन्दर।

Anonymous said...

This poetry is really picturesque and creates a pictre before my eyes for each and every line, it has.
Keep on amazing us with power of your writings

amit...

Prem Farukhabadi said...

Seema ji,

Your blog is live blog.It refreshes me. Nice poem .

अमिताभ श्रीवास्तव said...

आ. महावीरजी की टिपण्णी जैसी है बस वही मुझे कहना है....

खामोशी की आगोश मे रात
जब पहरों में ढलती होगी
ओस की बूँदें दूब के बदन पे
फिसल लजाती तो होगी ......

आप बहुत सुन्दर रचनाकार है...

योगेन्द्र मौदगिल said...

इस मुखर अभिव्यक्ति के लिये बधाई सीमा जी...

Smart Indian said...

"तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी....."
बहुत सुन्दर!

Science Bloggers Association said...

बहुत सुंदर कविता है, बधाई।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

चांदनी का ओढ़ आँचल
धरा भी इतराती तो होगी...

अति सुन्दर...........

गौतम राजऋषि said...

चालीस टिप्पणियों तले दबा
कह रहा हूँ बात एक
इस कलम के जादू से
हो रही बरसात एक
डूबता जाता है मन
"रात के स्वर्णिम पहर"
चांद निकल कर आयेगा
ढ़ायेगा फिर एक कहर...

admin said...

दूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी....

सुन्दर भाव, खूबसूरत कविता।

दिगम्बर नासवा said...

दूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....

शब्दों को खूबसूरत ख्याल में पिरो कर सुनहरे एहसास में बांधा है आपने.
जगजीत जी की ग़ज़ल की याद दिला गयी यह कविता

बहुत खूबसूरत

अभिन्न said...

दूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....
बहुत ही हृदय स्पर्शी बात कही है ...उपरोक्त उपमाओं के अतिरिक्त भी बहुत से ऐसे उपमान ओर बातें होती है जो यादों को तरोताजा कर देती है पर उनको याद कैसे करे जो भुलाये ही न जाते हो. न जिनको भुलाना चाहते है . नदिया का पूरा वेग ओर मस्त पवन अपने काम कर जाते है कविता का शीर्षक बहुत अच्छा लगा ओर चित्र के तो क्या कहने इस तरह की भावः पूर्ण रचनाओं को पाठको के सम्मुख लाने के लिए आप सदैव बधाई की पात्रा रहोगी .महान विचारों से भरी आपकी रचनात्मकता को साहित्य के एक पाठक की तरफ से अनेकों साधुवाद

अभिन्न said...

रात के स्वर्णिम पहर में
झील को दर्पण बना
चाँद जब बादलो से निकल
श्रृंगार करता होगा
चांदनी का ओढ़ आँचल
धरा भी इतराती तो होगी...
.......धरा अवश्य इतराती होगी ......ओर चाँद का श्रंगार करना झील को दर्पण बनाकर उसमे देखना ....सौन्दर्य का इससे बेहतर नमूना मैंने आज तक नहीं पढ़ा ओर न ही महसूस किया
आप की इस रचना को मेरी तरफ से ओस्कर ओर गोल्डन ग्लोब ....स्वीकार करें

Science Bloggers Association said...

दूर बजती किसी बंसी की धुन
पायल की रुनझुन और सरगम
अनजानी सी कोई आहट आकर
तुम्हे मेरी याद दिलाती तो होगी.....

दिल में उतर जाने वाली पंक्तियॉं है, बधाई।

कडुवासच said...

मस्त पवन की अंगडाई
दरख्तों के झुरमुट में छिप कर
परिधान बदल बदल
मन को गुदगुदाती तो होगी.....
.....!!!!!

मोहन वशिष्‍ठ said...

रात के स्वर्णिम पहर में
झील को दर्पण बना
चाँद जब बादलो से निकल
श्रृंगार करता होगा
चांदनी का ओढ़ आँचल
धरा भी इतराती तो होगी.


वाह सीमा जी लाजवाव
देरी के लिए माफी बहुत ही सुंदर रचना है

अनूप शुक्ल said...

धरा इसे पढ़ती तो और इतराने लगती। सुन्दर!

Mukesh Garg said...

bahut hi sunder or kiya kehte hai wo "romani" kavita likhi hai

very nice seema ji

बवाल said...

बहुत ही लाजवाब कहा सीमाजी।

अनूप शुक्ल said...

अरे वाह! बहुत खूब! एकदम याद आती होगी। ऐसे में तो याद आये बिना रह ही नहीं सकती!